श्रीलंका में सियासी संकट पर विदेश मंत्रालय की पैनी नजर

श्रीलंका में पैदा हुए राजनीतिक संकट पर भारत करीब से निगाह बनाए हुए है. विदेश मंत्रालय ने कहा कि हम श्रीलंका में लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक प्रक्रिया के सम्मान की उम्मीद करते हैं.

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महिंदा राजपक्षे और पीएम मोदी (ट्विटर फोटो- @PresRajapaksa) महिंदा राजपक्षे और पीएम मोदी (ट्विटर फोटो- @PresRajapaksa)

राम कृष्ण

  • नई दिल्ली,
  • 28 अक्टूबर 2018,
  • अपडेटेड 1:23 PM IST

श्रीलंका में अचानक उपजे राजनीतिक संकट पर भारत बेहद पैनी नजर बनाए हुए है. विदेश मंत्रालय ने कहा कि श्रीलंका में हाल ही में पैदा हुए राजनीतिक उथल-पुथल पर भारत करीब से निगाह रख रहा है. एक लोकतंत्र और पड़ोसी दोस्त के रूप में हम उम्मीद करते हैं कि श्रीलंका में लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक प्रक्रिया का सम्मान किया जाएगा. हम श्रीलंका के लोगों के विकास में सहयोग देना लगातार जारी रखेंगे.

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बता दें कि भारत के पड़ोसी मुल्क श्रीलंका में राजनीतिक संकट पैदा हो गया है. वहां के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना ने रानिल विक्रमसिंघे को हटाकर पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को नया प्रधानमंत्री बना दिया है. राजपक्षे वही हैं, जिनको मौजूदा राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने पिछले राष्ट्रपति चुनावों में हराया था.

विक्रमसिंघे की सुरक्षा भी वापस ले ली गई है. हालांकि रानिल विक्रमसिंघे का कहना है कि वो अब भी संवैधानिक तौर पर श्रीलंका के प्रधानमंत्री हैं. उनका दावा है कि 225 सदस्यीय सदन में उनके पास अब भी बहुमत है.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि राजपक्षे को प्रधानमंत्री बनाने के सिरिसेना के कदम से संवैधानिक संकट पैदा हो सकता है, क्योंकि संविधान में 19वां संशोधन बहुमत के बिना विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री पद से हटाने की अनुमति नहीं देगा. श्रीलंका की संसद में राजपक्षे व सिरिसेना की कुल 95 सीटें हैं और बहुमत से पीछे हैं. वहीं, विक्रमसिंघे की UNP के पास अपनी खुद की 106 सीटें हैं और बहुमत से केवल सात कम हैं.

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इससे पहले यूएनपी ने कहा कि राष्ट्रपति के पास प्रधानमंत्री रानिल विक्रमासिंघे को हटाने का कोई अधिकार नहीं है. इसके अलावा गठबंधन सरकार में मंत्री रही यूनाइटेड नेशनल पार्टी (UNP) के मंगला समरवीरा ने महिंदा राजपक्षे की नियुक्ति को असंवैधानिक बताया.

उन्होंने ट्वीट किया, 'राजपक्षे की प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्ति असंवैधानिक और गैरकानूनी है. ये लोकतंत्र विरोधी तख्तापलट है.' बता दें कि साल 2015 के चुनाव में मैत्रीपाला ने रानिल विक्रमसिंघे की UNP के साथ मिलकर सरकार बनाई थी.

वहीं, श्रीलंका में राजनीतिक उठापटक के चलते सिरिसेना ने संसद को 16 नवंबर तक निलंबित कर दिया, क्योंकि विक्रमसिंघे ने बहुमत साबित करने के लिए आपात सत्र बुलाने की मांग की थी. साथ ही राष्ट्रपति ने विक्रमसिंघे की निजी सुरक्षा और वाहनों को उनके 72 वर्षीय उत्तराधिकारी महिंदा राजपक्षे को सौंपने के लिए वापस लिया.

स्टालिन ने भारत सरकार की चुप्पी पर उठाए थे सवाल

श्रीलंका के राजनीतिक हालात पर डीएमके के कार्यकारी अध्यक्ष स्टालिन ने भारत सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाए थे. उन्होंने कहा था कि दुनियाभर के लोग श्रीलंका के मौजूदा राजनीतिक हालात और तमिलनाडु के मुछआरे की रिहाई को लेकर हो रही देरी से हैरान हैं. क्या इस पर केंद्र का ध्यान गया है?

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