म्यांमार में सैन्य तानाशाही के 26 महीने... ताबड़तोड़ एयरस्ट्राइक और सेना के एक्शन में 3000 मौतें, 18 लाख लोग विस्थापित, भुखमरी के हालात

यूं तो म्यांमार में सैन्य शासन का इतिहास काफी पुराना है. इस देश ने 1962 से सेना की तानाशाही झेली है. लेकिन अब हालात बेहद खराब हो चुके हैं. सेना एयर स्ट्राइक कर बगावती जनता को शांत कराने की कोशिश कर रही है. दिन ब दिन मरने वालों की तादाद बढ़ रही है और लोकतंत्र समर्थक नेता आंग सान सू की अब भी जेल में ही हैं.

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aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 12 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 3:25 PM IST

मांडले, म्यांमार का दूसरा सबसे बड़ा शहर... यहां से 110 किलोमीटर दूर कनबालु टाउनशिप के पजीगी गांव में मंगलवार को सैंकड़ों लोगों की भीड़ जमा हुई. सागैंग प्रांत के इस गांव में म्यांमार की सेना (जुंटा) के खिलाफ लड़ रहे विद्रोही गुट राष्ट्रीय एकता सरकार (NUG) के कार्यालय का उद्घाटन होना था.

दर्जनों बच्चे भी इस कार्यक्रम में मौजूद थे. इन बच्चों को उद्घाटन के मौके पर आयोजित डांस कार्यक्रम में परफॉर्म करने के लिए बुलाया गया था. अचानक एक मिसाइल सीधे NUG कार्यालय पर गिरी. चारों तरफ चीख पुकार मच गई. इससे पहले कि लोग कुछ समझ पाते, कार्यालय के ठीक ऊपर एक हेलिकॉप्टर आया और अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. इस घटना में 100 से ज्यादा लोग मारे गए. इतने ही लोग इलाज के लिए इस वक्त अस्पताल में भर्ती हैं.

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म्यांमार के लोगों पर सेना की यह एयरस्ट्राइक पहली बार नहीं हुई है. इससे पहले भी वहां आर्मी आम लोगों को निशाना बनाती रही है. अब तक तीन हजार से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. ये आंकड़ा दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है. आइए आपको बताते हैं कि म्यांमार की सेना वहां के लोगों पर किस तरह कहर ढा रही है. 

> 13 हजार से ज्यादा लोगों को म्यांमार की सेना हिरासत में रखा है, जिन्हें अमानवीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है.

> सेना ने 100 से ज्यादा कैदियों को मौत की सजा सुनाई है. इन कैदियों को किसी भी वक्त फांसी पर लटकाया जा सकता है.

> सैन्य तख्तापलट का सबसे बुरा असर बच्चों पर पड़ा है. लोकतंत्र के खात्मे के बाद यहां 78 लाख बच्चों का स्कूल छूट गया है.

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> सेना के अत्याचारों से परेशान होकर 18 लाख लोगों को अपना घर बार छोड़कर कहीं और विस्थापित होना पड़ा है.

> म्यांमार में 1.7 करोड़ लोग भुखमरी की जद में आ गए हैं. उन्हें रोजमर्रा की जरूरतों की चीजें भी नसीब नहीं हो रही हैं.

आम नागरिकों का कत्लेआम क्यों?

म्यांमार की लोकतंत्र समर्थक नेता आंग सान सू की को सेना ने जबरदस्ती 2021 में सत्ता से हटा दिया. उन्हें हटाते समय सेना ने नहीं सोचा था कि जनता इतनी बड़ी तादाद में सड़कों पर उतरकर तख्तापलट का विरोध करेगी. जब लाखों लोग विरोध-प्रदर्शन करने लगे तो सेना को सैन्य ताकत ही इससे निपटने का सबसे अच्छा तरीका लगा. इसके बाद अचानक सैनिक यहां के गांवों में पहुंचते और ताबड़तोड़ गोलीबारी कर सैकड़ों लोगों को मार डालते. इसका असर यह हुआ कि आम लोगों ने भी सेना के खिलाफ हथियारबंद संघर्ष शुरू कर दिया. आज म्यांमार में कई ऐसे छोटे-बड़े समूह हैं, जो जंगलों में रहकर सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं. इन विद्रोहियों को खत्म करने के लिए ही सेना देश के किसी भी कोने पर कभी भी एयर स्ट्राइक कर देती है.

सू की के कई समर्थक भी जेल में

77 साल की लोकतंत्र समर्थक नेता आंग सान सू की ने 2020 में प्रचंड बहुमत से सत्ता हासिल कर सरकार बनाई. उनकी पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (NLD) ने 476 में से 396 सीटों पर जीत दर्ज की. लेकिन म्यांमार की सेना ने 1 फरवरी 2021 को तख्तापलट कर सत्ता हथिया ली. इसके बाद देश में इमरजेंसी लगा दी गई. तब से सू की सहित उनकी पार्टी के कई नेता जेल में हैं और सेना मनमानी के साथ देश पर राज कर रही है.

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न्यू ईयर के पहले हमले से सब हैरान

म्यांमार के लोगों पर हुआ सेना का हालिया हमला इसलिए भी हैरान करने वाला है, क्योंकि आज से ठीक एक दिन बाद (13 अप्रैल) म्यांमार के नव वर्ष की शुरुआत हो रही है. वहां के लोग 'थिंग्यान' को अपना न्यू ईयर मानते हैं, जो इस साल 13 से 16 अप्रैल तक मनाया जाना है. इस त्योहार को पूरे देश में सेलिब्रेट किया जाता है. इसलिए सेलिब्रेशन से एक दिन पहले हुए हमले से सभी लोग हैरान हैं.

कैसे हुई थिंग्यान की शुरुआत?

म्यांमार के लोगों का दावा है कि दुनिया में जल उत्सव (water festival) मनाने की शुरुआत 'थिंग्यान' के साथ ही हुई. यह दुनिया का सबसे पुराना जलोत्सव है. इसे हर साल अप्रैल महीने के मध्य में मनाया जाता है. इसे म्यांमार के टैगौंग साम्राज्य (Tagaung Kingdom) ने शुरू किया था. टैंगौंग साम्राज्य की शुरुआत 850 ईसा पूर्व में इरावदी नदी के पास हुई. आज भी म्यांमार के इस इलाके में टैगौंग नामक शहर है.

1989 में बदला देश का नाम

म्यांमार के बर्मन जातीय समूह की वजह से इस देश को पहले बर्मा कहा जाता था. सत्तारूढ़ जुंटा (आर्मी) ने लोकतंत्र समर्थक विद्रोह को कुचलने के एक साल बाद 1989 में देश का नाम अचानक बदलकर म्यांमार कर दिया. सैन्य नेताओं को लगा कि देश की छवि बदलने की जरूरत है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता हासिल करने की उम्मीद में नाम बदल दिया गया. तब सैन्य शासन ने कहा था कि देश गुलामी के दिनों को भूलना और जातीय एकता को बढ़ावा देना चाहता है.

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1962 से हुई सैन्य शासन की शुरुआत

म्यांमार में एक लंबे समय तक आर्मी का राज रहा है. साल 1962 से लेकर साल 2011 तक देश में 'मिलिट्री जुंटा' की तानाशाही रही. साल 2010 में म्यांमार में आम चुनाव हुए और 2011 में म्यांमार में नागरिक सरकार बनी. जिसमें जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों को राज करने का मौका मिला. नागरिक सरकार बनने के बाद भी असली ताकत हमेशा सेना के पास ही रही.

म्यांमार पर क्या है अमेरिका का रुख?

म्यांमार को लेकर अमेरिका के रुख में नरमी बहुत बाद में आई. 2012 में इस देश की यात्रा पर गए तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने बर्मा और म्यांमार दोनों नामों का इस्तेमाल किया. लेकिन अमेरिकी सरकार अब भी औपचारिक तौर पर इस देश का नाम बर्मा ही लिखती है. मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने बयान में बर्मा नाम का ही उल्लेख किया था.

म्यांमार के बारे में कुछ रोचक तथ्य

> भारत और म्यांमार 1,640 किमी लंबी बॉर्डर शेयर करते हैं.

> म्यांमार की 89 फीसदी जनता बौद्ध धर्म को मानती है.

> म्यांमार में रेगिस्तान के अलावा सबकुछ है.

> म्यांमार की जीडीपी का आधा हिस्सा खेती से आता है.

> चावल म्यांमार का प्रमुख खाद्य पदार्थ है.

> म्यांमार की इरावदी नदी को वहां सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है.

> यहां लोग सोमवार, शुक्रवार और जन्मदिन पर बाल नहीं कटवाते.

> म्यांमार में मोटापे को स्वास्थ्य का पैमाना माना जाता है.

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