ड्रेस चेकिंग, महसा अमीनी की मौत... विवादों भरी है ईरानी मॉरैलिटी पुलिस की हिस्ट्री

ईरान की मॉरैलिटी पुलिस को औपचारिक रूप से गश्त-ए-इरशाद या गाइडेंस पेट्रोल के नाम से भी जाना जाता है. इसी पुलिस ने महसा अमीनी को बीते सितंबर में ईरान के सख्त ड्रेस कोड के उल्लंघन और अनुचित तरीके से हिजाब पहनने के आरोप में गिरफ्तार किया था, जिसकी तीन बाद हिरासत में ही मौत हो गई थी.

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ईरान में हिजाब विरोधी क्रांति (Photo: AP) ईरान में हिजाब विरोधी क्रांति (Photo: AP)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 05 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 1:26 PM IST

ईरान में इस साल सितंबर में 22 साल की महसा अमीनी को सही तरीके से हिजाब नहीं पहनने के आरोप में मॉरैलिटी पुलिस ने गिरफ्तार किया था. बाद में पुलिस हिरासत में अमीनी की मौत के बाद हो गई थी. अमीनी की मौत के बाद मॉरैलिटी पुलिस चर्चा में आई. अमीनी की मौत का आरोप इसी पुलिस पर लगा. आलम यह था कि हिजाब और मॉरैलिटी पुलिस के विरोध में महिलाएं सड़कों पर उतर आईं और इसे भंग करने की मांग करने लगी. महिलाओं के इस आंदोलन ने ईरान सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया, जिसका नतीजा यह रहा कि मॉरैलिटी पुलिस को भंग कर दिया गया है. 

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मॉरैलिटी पुलिस के प्रमुख कर्नल अहमद मिरजाई को इन विरोध प्रदर्शनों के मद्देनजर दो दिन पहले ही सस्पेंड कर दिया गया है. ईरान की मॉरैलिटी पुलिस को औपचारिक रूप से गश्त-ए-इरशाद या गाइडेंस पेट्रोल के नाम से भी जाना जाता है. इसी पुलिस ने महसा अमीनी को बीते सितंबर में ईरान के सख्त ड्रेस के कोड के उल्लंघन और अनुचित तरीके से हिजाब पहनने के आरोप में गिरफ्तार किया था, जिसकी तीन बाद हिरासत में ही मौत हो गई थी. इस इकाई की 2006 में स्थापना की गई थी.

क्या है मॉरैलिटी पुलिस 

ईरान की मॉरैलिटी पुलिस देश की पुलिस व्यवस्था का ही हिस्सा है, जो देश में इस्लामिक कानूनों और डेस कोड को लागू करना सुनिश्चित करती है. इसे BASIJ भी कहा जाता है. यह दरअसल उन लोगों का समूह है, जो ईरान की सरकार के प्रति वफादार है और खुद को अर्धसैनिकबलों की तरह पेश करता है. ईरान में बासिज पिछले दो दशकों से सरकार के खिलाफ किसी भी असंतोष को खत्म करने में अहम भूमिका निभाता रहा है. 

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ईरान में 1995 में ऐसा कानून बनाया गया, जिसके तहत अफसरों को 60 साल तक की औरतों को बिना हिजाब निकलने पर जेल में डालने का अधिकार है. इतना ही नहीं, ईरान में हिजाब न पहनने पर 74 कोड़े मारने से लेकर 16 साल की जेल तक की सजा हो सकती है. 

ईरानी यूनिवर्सिटीज में मॉरैलिटी पुलिस की तैनाती

ईरान में सार्वजनिक स्थानों पर बुर्का या हिजाब पहनने का कानून इतना सख्त है. मॉरैलिटी पुलिस को बकायदा देशभर के स्कूलों और यूनिवर्सिटीज में तैनात किया गया ताकि वे वहां छात्राओं के ड्रेस कोड पर करीब से नजर रख सके. 

कैसी काम करती है मॉरैलिटी पुलिस?

मॉरैलिटी पुलिस आमतौर पर एक वैन का इस्तेमाल करती है, जिसमें पुरुष और हिजाबधारी महिला सदस्य होते हैं. इनका काम शॉपिंग सेंटर्स, सबवे स्टेशन सहित सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं पर नजर रखना है. बिना बुर्का या हिजाब पहने महिलाओं को ये देखते ही तुरंत हिरासत में ले लेते हैं. इन पर ड्रेस कोड नियमों के उल्लंघन का आरोप लगा जेल में डाल दिया जाता है. 

अगर हिरासत में ली गई महिला को जेल में नहीं डाला जाता, तो उन्हें सुधारगृह भेजा जाता है, जहां उन्हें सिखाया जाता है कि हिजाब कैसे पहनना है. 

अमीनी के मामले में उसे सीधे पुलिस स्टेशन ले जाया गया था. पुलिस ने अमीनी के परिवार से कहा था कि हिजाब के बारे में उसे पाठ पढ़ाने के बाद ही रिहा किया जाएगा. लेकिन बाद में उसे कोमा की स्थिति में पास के अस्पताल में भर्ती कराया गया. सीटी स्कैन में अमीनी के सिर में फ्रैक्चर, ब्रेन हेमरेज और ब्रेन एडीमा का पता चला था. 

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मॉरैलिटी पुलिस का इतिहास

ईरान में पहलवी वंश के पहले राजा रेजा शाह पहलवी ने 1925 से 1941 तक ईरान पर राज किया. उन्होंने आठ जनवरी 1936 में एक आदेश पारित किया था, जिसमें महिलाओं के हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया था. शाह आधुनिक और धर्मनिरपेक्ष समाज के हितायती थे. हिजाब पर प्रतिबंध का सख्ती से पालन किया गया. पुलिस हिजाब पहनने वाली महिलाओं के हिजाब उतारने लगी. लेकिन रेजा शाह का यह फरमान उनके लिए मुसीबत बना. उन्हें निर्वासित होना पड़ा. उनके बाद उनका बेटा गद्दी पर बैठा. 

लेकिन बाद में उनका यही कानून उनकी सरकार के लिए मुसीबत बन गया. बाद में ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खौमेनी ने सत्ता में आने के बाद महिलाओं के हिजाब पहनने को अनिवार्य कर दिया. उन्होंने हिजाब का क्रांति के प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल किया. लेकिन हिजाब और बुर्के पर प्रतिबंध का समाज के कुछ वर्गों ने विरोध किया. इस वजह से मर्दों ने अपने घर की महिलाओं के बाहर जाने पर बैन भी लगा दिया गया था. 1979 की ईरान क्रांति के बाद से मॉरैलिटी पुलिस के कई प्रारूप सामने आए. 

1979 की ईरान क्रांति के बाद ईरान ने 1981 में एक कानून पारित किया, जिसमें कहा गया कि महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब पहनना पड़ेगा. सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के हिजाब पहनना सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी मॉरैलिटी पुलिस को सौंपी गई. 

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इस कानून के पारित होने के 41 साल बाद देश में हिजाब के विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं. सही तरीके से हिजाब नहीं पहनने पर 22 साल की महसा अमीनी की पुलिस हिरासत में मौत ने मॉरैलटी पुलिस को कटघरे में खड़ा कर दिया. 

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