Hajj 2022: मुक्केबाज मोहम्मद अली ने क्यों अपनाया था इस्लाम धर्म? मक्का की इस तस्वीर की हुई थी खूब चर्चा

मशहूर मुक्केबाज मोहम्मद अली ने 1972 में सऊदी अरब पहुंचकर हज यात्रा की थी. उनकी यह यात्रा काफी चर्चा में रही. इस दौरान काबा को चूमती उनकी तस्वीर भी काफी लोकप्रिय हुई थी. मोहम्मद अली का असली नाम कैसियस क्ले था और वह जन्म से ईसाई थे लेकिन बाद में उन्होंने इस्लाम धर्म अपना लिया.

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मोहम्मद अली (photo: About Islam) मोहम्मद अली (photo: About Islam)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 11 जुलाई 2022,
  • अपडेटेड 7:02 PM IST
  • मुक्केबाज मोहम्मद अली ने 1972 में हज यात्रा की थी
  • ईसाई से इस्लाम धर्म अपनाया था

सऊदी अरब में हज करने दुनिया भर से मुसलमान पहुंचे हैं. आज से ठीक पचास साल पहले 1972 में हज यात्रा करने के लिए दुनिया के महान मुक्केबाज मोहम्मद अली भी मक्का पहुंचे थे. उस समय सफेद कपड़े पहनकर काबा को चूमते मोहम्मद अली की तस्वीर चर्चा में रही थी.

हैवीवेट बॉक्सिंग चैंपियन रहे मोहम्मद अली अपने बेबाक बयानों के लिए जाने जाते थे. मोहम्मद अली का असली नाम कैसियस क्ले था और वह जन्म से ईसाई थे. ईसाई से इस्लाम धर्म अपनाने और इस प्रक्रिया में कैसियम क्ले से मोहम्मद अली बनने का उनका सफर विवादों से भरा हुआ है.

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उन्होंने 1972 में सऊदी अरब के मक्का जाकर हज यात्रा करने के अपने अनुभवों को शेयर करते हुए 1989 में कहा था, मेरी जिंदगी में कई अच्छे पल रहे लेकिन हज के दिन माउंट अराफात पर खड़े होने का अनुभव सबसे अलग था.

उन्होंने कहा था, मैं उस अध्यात्मिक माहौल में उत्साहित महसूस कर रहा था. इतनी बड़ी तादाद में हाजी अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांग रहे थे और रहमत की दुआ कर रहे थे.

हालांकि, मोहम्मद अली इस्लाम की जिस शाखा 'नेशन ऑफ इस्लाम' का पालन कर रहे थे, उसके विचार काफी विवादों में रहे. 

ईसाई परिवार में पैदा हुए अली अपनी मां से बहुत प्रभावित थे. उनकी मां ओडेसा क्ले नियमित तौर पर उन्हें केंटकी के लुइसविले में किंग सोलोमन मिशनरी बापटिस्ट चर्च ले जाती थी.

किशोरवास्था से ही धर्म को लेकर उनके विचारों में बदलाव आना शुरू हो गया. नस्लवाद और समाज से अलगाव ने उनके धार्मिक विचारों को भी बदला.

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कार्टून से प्रभावित होकर इस्लाम की ओर आकर्षित हुए

16 साल की उम्र में इस्लाम में धर्म परिवर्तन की यात्रा शुरू हो गई थी. वह अमेरिका में एक धार्मिक और राजनीतिक समूह नेशन ऑफ इस्लाम की ओर से अखबार में प्रकाशित कराए गए एक कार्टून से प्रभावित हुए. इस कार्टून में एक अश्वेत मुस्लिम गुलाम को उसके धर्म की वजह से श्वेत शख्स पीटता नजर आता है.

बाद में अली ने अपनी दूसरी पत्नी खलीलाह को लिखा था, जिस चीज ने मुझे धर्म की ओर आकर्षित किया, वह एक कार्टून था.

अमेरिका में श्वेत समाज को लेकर अली का गुस्सा 1960 में चरम पर था, जब वह 18 साल के थे. वह रोम में ओलंपिक खेलों में जीत का परचम लहराकर लौटे थे. उन्होंने मुक्केबाजी की लाइट हैवीवेट कैटेगरी में गोल्ड मेडल जीता था. 

उन्हें लगा था कि यह मुकाम हासिल करने के बाद समाज में उनके साथ बेहतर बर्ताव किया जाएगा लेकिन उन्हें उस समय धक्का लगा, जब उनके अश्वेत होने की वजह से उन्हें लुइसविले में एक रेस्तरां में घुसने नहीं दिया गया. 

ऐसी रिपोर्टें थी कि इस घटना के बाद उन्होंने ओहायो नदी में अपना मेडल फेंक दिया था. कई सालों बाद अली ने बताया था कि यही वह क्षण था, जब वह मुस्लिम बन गए थे.

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इसके बाद अली अपनी पहली खिताबी फाइट की ट्रेनिंग के लिए मियामी गए. इस दौरान उन्होंने पहली बार मियामी के अल अंसार मस्जिद में नमाज अदा की. इस मस्जिद का संचालन नेशन ऑफ इस्लाम करता था. वह अपने धर्म को इस वक्त तक राज ही बनाए रखे हुए थे. 

ऐतिहासिक जीत के बाद रखा मोहम्मद अली नाम

अली ने एक ऐतिहासिक मैच में सोन्नी लिस्टन को हरा दिया. उनकी इस जीत से बॉक्सिंग की दुनिया में तहलका मच गया था. इस ऐतिहासिक जीत के एक दिन बाद ही उन्होंने सार्वजनिक तौर पर ऐलान किया कि वह मुस्लिम हैं.

अली ने अपने असली नाम कैसियस क्ले को गुलामों का नाम बताया था. उन्होंने पैगंबर मोहम्मद के दामाद के नाम पर अपना नाम अली और उस समय नेशनल ऑफ इस्लाम के नेता एलिजा मोहम्मद के नाम पर अपना फर्स्ट नेम मोहम्मद रखा. इस तरह वे कैसियस क्ले से मुहम्मद अली बन गए.

दरअसल नेशन ऑफ इस्लाम अमेरिका में अश्वेत लोगों के उत्पीड़न से निकला था. नेशन ऑफ इस्लाम का दावा था कि याकूब नाम के एक वैज्ञानिक ने अश्वेतों के उत्पीड़न के लिए श्वेत लोगों को बनाया है.

अली ने मार्टिन लूथर किंग जैसे ईसाई नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ अलगाव का विरोध किया था. उन्होंने कहा था कि खुद के बलबूते ही अश्वेत अमेरिकी आगे बढ़ सकते हैं. उन्होंने श्वेतों को नीली आंखों और सुनहरे बालों वाला शैतान कहा था.

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जब हज के लिए मक्का पहुंचे अली

मोहम्मद अली ने धार्मिक आधार पर वियतनाम युद्ध के दौरान सेना में भर्ती होने से इनकार कर दिया था, जिसकी वजह से 1967 में उनके पदक उनसे छीन लिए गए थे.

उनके पदक के साथ ही उनका पासपोर्ट भी छीन लिया गया था लेकिन बाद में उनका पासपोर्ट लौटा दिया गया. इसके बाद वह जनवरी 1972 में हज करने मक्का गए थे. इस दौरान उन्होंने सऊदी अरब के शाही परिवार के सदस्यों से भी मुलाकात की थी. 

मुस्लिम और अरब समाज में मोहम्मद अली को सम्मान की नजरों से देखा जाने लगा था. अली ने एक बार कहा था कि मदीना में पैगंबर मोहम्मद के मकबरे पर जाने का उनके अनुभव ने उन्हें विश्वास दिया कि वह मुक्केबाज जो फ्रेजियर को हरा सकते हैं.

बता दें कि फ्रेजियर एक साल पहले ही उन्हें एक मुकाबले में हरा चुके थे.

समय के साथ-साथ मोहम्मद अली के धार्मिक विचारों में भी परिपक्वता आती गई. उनके पूर्व मेंटर मैल्कॉम एक्स नेशन ऑफ इस्लाम के विचारों की आलोचना करते हुए इससे अलग हो गए थे. बाद में 1965 में इस संगठन के ही तीन सदस्यों ने मैल्कॉम एक्स की हत्या कर दी थी.

हज की यात्रा करने के बाद मैल्कॉम एक्स सुन्नी बन गए थे. उनके नक्शेकदम पर चलते हुए अली भी 1975 में सुन्नी बन गए. अपनी जिंदगी के आखिरी सालों में मोहम्मद अली पार्किंसंस बीमारी से जूझ रहे थे. 

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उन्होंने 2004 में कहा था कि अब उनका झुकाव सूफीवाद की ओर है और बाद में सून्नी-सूफी इस्लाम की ओर उनका झुकाव हो गया. उन्होंने कहा था कि अब वह सभी धर्मों को लेकर सहिष्णु हो रहे हैं.

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