किसान आंदोलन पर ब्रिटेन की संसद में चर्चा, ब्रिटिश मंत्री बोले- यह भारत का 'घरेलू मामला'

भारत की ओर से इस तरह की बहस पर कड़ी आपत्ति जताई गई है. लंदन में मौजूद भारतीय हाईकमीशन ने बयान दिया है कि ये सिर्फ एक गलत तथ्यों पर आधारित और एकतरफा बहस ही थी.

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दिल्ली में जारी है किसानों का आंदोलन (फोटो: PTI) दिल्ली में जारी है किसानों का आंदोलन (फोटो: PTI)

aajtak.in

  • नई दिल्ली ,
  • 09 मार्च 2021,
  • अपडेटेड 9:58 AM IST
  • किसान आंदोलन की ब्रिटिश संसद में गूंज
  • भारत ने ऐसी किसी भी बहस की निंदा की

भारत में जारी किसानों के आंदोलन के मसले पर बीते दिन ब्रिटेन की संसद में बहस हुई. एक पेटिशन पर लाखों साइन होने के बाद ब्रिटिश संसद में इस मसले को उठाया गया, जिसके बाद कल विस्तार से बहस हुई. हालांकि, भारत की ओर से इस तरह की बहस पर कड़ी आपत्ति जताई गई है. लंदन में मौजूद भारतीय हाईकमीशन ने बयान दिया है कि ये सिर्फ एक गलत तथ्यों पर आधारित और एकतरफा बहस ही थी.

भारतीय हाईकमीशन द्वारा बयान में कहा गया कि ब्रिटिश संसद में बिना तथ्यों के गलत आरोपों के साथ दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के विषय में चर्चा की गई, जो निंदनीय है. वहीं, ब्रिटिश सरकार में मंत्री नाइजल एडम्स का कहना है कि ये भारत का घरेलू मामला है.

ऐसा पहली बार नहीं है जब भारतीय हाईकमीशन ने ब्रिटेन द्वारा किसानों के आंदोलन का मुद्दा उठाए जाने पर अपनी प्रतिक्रिया दी हो. इससे पहले भी हाईकमीशन द्वारा साफ किया जा चुका है कि ये भारत का आंतरिक मसला है, ऐसे में गलत तथ्यों के साथ इसमें दखल ना दिया जाए.

बता दें कि ब्रिटिश संसद की वेबसाइट पर किसान आंदोलन पर चर्चा के लिए एक पेटिशन डाली गई थी, जिसमें एक लाख से अधिक साइन हुए थे. यही कारण रहा कि ब्रिटिश संसद को इस मसले पर बहस करनी पड़ी.

भारतीय हाईकमीशन ने साफ किया कि ब्रिटिश और दुनिया की मीडिया भारत में किसान आंदोलन को फॉलो कर रही है, जो दर्शाता है कि किसानों पर किसी तरह का दबाव नहीं बनाया जा रहा है. वहीं, ब्रिटिश सरकार की ओर से कहा गया कि भारत-ब्रिटेन की दोस्ती काफी पुरानी है और दोनों ही देश आपसी सहयोग से द्विपक्षीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा के लिए तैयार हैं.

आपको बता दें कि ब्रिटिश सांसदों की इस चर्चा में कई सांसदों ने हिस्सा लिया, कुछ लोग मीटिंग स्थल पर थे जबकि कुछ वर्चुअल तरीके से जुड़े थे. ये बहस करीब 90 मिनट तक चली थी. किसान आंदोलन से पहले भी ब्रिटिश संसद में जम्मू-कश्मीर का मुद्दा गूंज चुका है. 

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