आंग सान सू ची पर भारी पड़ा रोहिंग्या मामला, एमनेस्टी ने वापस लिया सर्वोच्च सम्मान

रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ म्यामां सेना की कथित कार्रवाई के खिलाफ समुचित कदम न उठाने पर अमनेस्टी इंटरनेशनल ने यह कदम उठाया है. पिछले साल ऑक्सफोर्ड सिटी काउंसिल ने भी अपना सम्मान वापस ले लिया था.

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आंग सान सू की (फोटो-रॉयटर्स) आंग सान सू की (फोटो-रॉयटर्स)

रविकांत सिंह

  • यंगून,
  • 13 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 9:07 AM IST

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने सोमवार को आंग सान सू ची से अपना सर्वोच्च सम्मान वापस ले लिया है. रोहिंग्या मुस्लिमों के खिलाफ म्यामां की सेना की ओर से किए अत्याचारों पर कोई कार्रवाई न करने को लेकर सम्मान वापस लिया गया है.

लंदन स्थित वैश्विक मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा कि वह सू ची को दिया गया ‘एंबेसडर ऑफ कॉनशंस अवार्ड’ वापस ले रहा है जो उसने उन्हें 2009 में उस समय दिया था जब वह घर में नजरबंद थीं.

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एमनेस्टी इंटरनेशनल प्रमुख कूमी नायडू की ओर से लिखे खत में कहा गया है, ‘आज हम काफी निराश हैं कि आप अब आशा, साहस और मानवाधिकारों की रक्षा की प्रतीक नहीं हैं.’ एमनेस्टी ने कहा कि उसने अपने फैसले के बारे में सू ची को रविवार को ही बता दिया था. उन्होंने इस बारे में अब तक कोई सार्वजनिक प्रतिक्रिया नहीं दी है.  

पिछले साल  सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड की ओर से सू ची को दिया गया सम्मान रोहिंग्या मुसलमानों की दुर्दशा पर उनके कदम नहीं उठाने पर वापस ले लिया गया. ऑक्सफोर्ड सिटी काउंसिल ने म्यामां की इस नेता को लोकतंत्र के लिए लंबा संघर्ष करने को लेकर वर्ष 1997 में ‘फ्रीडम ऑफ ऑक्सफोर्ड’ अवॉर्ड प्रदान किया था. परिषद ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया कि उनके पास यह सम्मान होना अब उपयुक्त नहीं है.

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ऑक्सफोर्ड सिटी काउंसिल के नेता बॉब प्राइस ने उनका सम्मान वापस लेने के कदम का स्वागत किया और इस बात की पुष्टि की कि यह स्थानीय प्रशासन के लिए अप्रत्याशित कदम है. सिटी काउंसिल इस बात के सत्यापन के लिए 27 नवंबर को एक विशेष बैठक करेगी कि यह सम्मान वापस लिया जाए.

नोबेल शांति पुरस्कार विजेता सू ची का सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड से गहरा नाता रहा है. वह अपने परिवार के साथ पार्क टाउन में रह चुकी हैं और वह साल 1964-67 के दैरान सेंट ह्यू कॉलेज गई थीं. सिटी काउंसिल के इस कदम से पहले सेंट ह्यू कॉलेज अपने प्रवेश द्वार से उनकी तस्वीर हटा चुका है. म्यामार में सेना के अभियान के बाद से  करीब पांच लाख रोहिंग्या मुसलान विस्थापित हो चुके हैं.

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