पाकिस्तान और अफगानिस्तान में चल रहे तनाव के बीच हाल ही में संपन्न हुई शांति वार्ता बेनतीजा रही. क़तर और फिर तुर्की में हुई इस वार्ता के बाद कागज पर तो कुछ हासिल नहीं हुआ, लेकिन दो चौंकाने वाले खुलासों ने दोनों देशों के रिश्तों में आग लगा दी है.
पहला, यह कि अमेरिका अफगानिस्तान में ड्रोन हमलों के लिए पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल कर रहा है और इस्लामाबाद इसे रोकने में "बेबस" है. दूसरा, यह कि पाकिस्तान की सेना प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की नागरिक सरकार को दरकिनार कर काबुल के साथ टकराव को बढ़ावा दे रही है.
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इन खुलासों ने न सिर्फ काबुल-इस्लामाबाद संबंधों को और जटिल बना दिया है बल्कि पाकिस्तान की सिविल-मिलिट्री खाई को भी एक बार फिर उजागर कर दिया है.
ड्रोन हमलों का नया विवाद
तालिबान सरकार के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने कहा कि अमेरिकी ड्रोन लगातार पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र से होकर अफगानिस्तान में घुस रहे हैं. काबुल ने इस पर कई बार आपत्ति दर्ज कराई है, लेकिन पाकिस्तान का जवाब यह रहा कि उसके "एक विदेशी देश के साथ समझौते" के कारण वह इन ड्रोन को नहीं रोक सकता.
मुजाहिद ने कहा, "अमेरिकी ड्रोन पाकिस्तान के रास्ते से अफगान हवाई क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं. यह पाकिस्तान की संप्रभुता और हमारे क्षेत्रीय अधिकारों का उल्लंघन है." यह दावा ऐसे समय आया है जब अमेरिका ने अफगानिस्तान के रणनीतिक रूप से अहम बगराम एयरबेस पर "ऑपरेशनल कंट्रोल" की मांग दोबारा उठाई है. यही वह ठिकाना है जहां से अमेरिका ने दो दशक तक अपने अफगान ऑपरेशन संचालित किए थे.
पाक सेना बनाम नागरिक सरकार
तालिबान के इन आरोपों से एक और बड़ा सच सामने आया कि पाकिस्तान की सेना, फील्ड मार्शल आसिम मुनीर के नेतृत्व में, प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की सरकार को दरकिनार कर अफगानिस्तान के साथ संबंधों को अपने हिसाब से संचालित कर रही है.
जबीहुल्लाह मुजाहिद ने खुलासा किया कि "पाकिस्तान की नागरिक सरकार अफगानिस्तान के साथ बेहतर संबंध चाहती है, लेकिन सेना इसमें बाधा डाल रही है. कुछ वैश्विक शक्तियां पाकिस्तान की सेना के एक गुट को समर्थन दे रही हैं ताकि काबुल-इस्लामाबाद के रिश्ते और बिगड़ें."
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तालिबानी मंत्री ने यह भी बताया कि पाकिस्तान के विशेष दूत सादिक़ खान हाल ही में काबुल आए थे और सकारात्मक वार्ता हुई थी, लेकिन उसी दौरान पाकिस्तान ने अफगान इलाके में हवाई हमले कर दिए.
तनाव की असल वजह क्या है?
पिछले दो महीनों में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच स्थिति बेहद खराब रही है. सितंबर-अक्टूबर 2025 के दौरान पाकिस्तानी वायुसेना ने अफगानिस्तान के पूर्वी इलाके काबुल के बाहरी क्षेत्र और पकतीका प्रांत में बमबारी की, जिसमें दर्जनों नागरिकों की मौत हुई, जिनमें महिलाएँ और बच्चे भी शामिल थे.
इन हमलों में अब तक 250 से ज़्यादा लोगों की जान जा चुकी है. लगातार गोलाबारी और हवाई हमलों के बाद दोनों देशों ने बातचीत शुरू की, लेकिन अब तक किसी ठोस समाधान तक नहीं पहुंचे हैं.
पाक-अफगान तनाव कोई नया नहीं है. 1947 में खींची गई डुरंड लाइन ने पश्तून जनजातियों को दो देशों में बांट दिया, जो आज भी सीमा विवाद की जड़ है. 1980 के दशक में पाकिस्तान ने अमेरिका के साथ मिलकर सोवियत संघ के खिलाफ अफगान मुजाहिदीन को समर्थन दिया, लेकिन यही रणनीति बाद में पाकिस्तान के लिए आतंकवाद का कारण बनी.
9/11 के बाद पाकिस्तान ने अमेरिका का सहयोगी बनने का दावा किया, लेकिन तालिबान को आश्रय देता रहा. आज वही तालिबान सत्ता में है, और पाकिस्तान उस पर आतंकवादी संगठन टीटीपी को पनाह देने का आरोप लगा रहा है.
इमरान खान को लेकर अफगान मंत्री क्या बोले?
तालिबान प्रवक्ता ने यह भी कहा कि इमरान खान के दौर में दोनों देशों के बीच संबंध अपेक्षाकृत बेहतर थे. इमरान खान ने 2018 से 2022 तक एक नागरिक सरकार चलाई थी, लेकिन 2022 में उन्हें अविश्वास प्रस्ताव के ज़रिए हटा दिया गया, और ऐसा पाकिस्तान के इतिहास में यह पहली बार हुआ था.
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बाद में 2023 में उन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल भेज दिया गया, जिसे उनके समर्थक सेना द्वारा रचा गया राजनीतिक षड्यंत्र मानते हैं. इमरान खान का कसूर यही बताया गया कि उन्होंने सेना के खिलाफ लोकतांत्रिक अधिकारों की बात की.
अमेरिका का गुप्त रोल
तालिबान के आरोप यह भी संकेत देते हैं कि अमेरिका अभी भी अफगानिस्तान में अप्रत्यक्ष रूप से सक्रिय है. अमेरिकी ड्रोन, पाकिस्तान की मंज़ूरी से, अफगानिस्तान के भीतर "लक्षित हमले" कर रहे हैं. यह उस वादे के उलट है जिसमें अमेरिका ने 2021 में अफगानिस्तान छोड़ते वक्त किसी तीसरे देश के हवाई क्षेत्र का उपयोग न करने की बात कही थी.
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