दुनिया भर में धार्मिक स्वतंत्रता की निगरानी करने वाली संस्था अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग के शीर्ष अधिकारी ने कहा है कि अमेरिका ने भारत में मुस्लिमों के उत्पीड़न और बयानबाजी से जुड़ीं दुर्भाग्यपूर्ण खबरें देखी हैं. अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग के अमेरिकी राजदूत सैम ब्राउनबैक ने कहा कि सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों और गलत सूचना की वजह से भी भारत में मुस्लिमों के खिलाफ दुर्भावना बढ़ी है. हालांकि, अमेरिकी राजदूत ने कोरोना वायरस महामारी के दौर में भारत के वरिष्ठ अधिकारियों की एकता बनाए रखने की अपील की सराहना की.
ब्राउनबैक गुरुवार को दुनिया भर के धार्मिक अल्पसंख्यकों पर कोरोना वायरस के असर को लेकर पत्रकारों से बात कर रहे थे. उन्होंने कहा, 'हमने भारत में कोविड-19 को लेकर खास तौर पर मुस्लिम समुदाय के खिलाफ बयानबाजी और उत्पीड़न से जुड़ी खबरें देखीं हैं. कई ऐसी घटनाएं सामने आईं जिनमें कोरोना वायरस संक्रमण फैलाने का आरोप लगाकर मुस्लिमों पर हमले किए गए.' अमेरिकी अधिकारी ने कहा, हालांकि भारत के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा एकता की अपील से जुड़े बयानों से हमारा भारत पर भरोसा बढ़ा है. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा है कि कोविड-19 धर्म, भाषा, सीमा नहीं देखता, जो कि बिल्कुल सही बात है.
भारत कोरोना वायरस के फैलने को लेकर मुस्लिमों की प्रताड़ना वाली सोशल मीडिया पोस्ट्स को खारिज करते हुए इसे 'दुष्प्रचार' करार दिया है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने पिछले महीने कहा था, आपने जो देखा है, उनमें से अधिकतर अपने हितों को साधने के लिए किया गया दुष्प्रचार है. किसी भी ट्वीट को उठाकर उनसे इन देशों के साथ हमारे द्विपक्षीय संबंधों को परिभाषित नहीं किया जा सकता है. उनका यह बयान ऐसे समय में आया था, जब अरब देशों के कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और हस्तियों ने ट्वीट करके ये आरोप लगाए थे कि भारत में कोविड-19 महामारी फैलाने के लिए मुसलमानों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है.
अमेरिकी अधिकारी ने पाकिस्तान, चीन और श्रीलंका के अल्पसंख्यकों की स्थिति को लेकर भी चिंता जताई और कहा कि इन देशों में अल्पसंख्यकों के लिए बेहद मुश्किल हालात हैं. उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों की समस्या को पांच हिस्सों में बांटा जा सकता है. एक- सरकारें खुद धार्मिक अल्पसंख्यकों का दमन करने में लगी हुई हैं, दूसरा स्वास्थ्य सेवाओं में उनके साथ भेदभाव होना, तीसरा अफवाहों और फर्जी खबरों के जरिए अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना जैसे कोरोना वायरस फैलने के लिए उन्हें जिम्मेदार बता देना. चौथा-सोशल मीडिया पर भड़काऊ भाषणों का मौजूद होना और आखिरी- अल्पसंख्यकों के दमन, भेदभाव और निगरानी के लिए तकनीक का इस्तेमाल किया जाना.
उन्होंने कहा कि धार्मिक अल्पसंख्यकों के मामले में पाकिस्तान में ईसाई सफाईकर्मियों का उदाहरण लिया जा सकता है. उन्होंने कहा, पाकिस्तान में ज्यादातर सफाईकर्मी ईसाई है इसलिए अस्पतालों में सफाई के दौरान उनके संक्रमित होने के खतरे को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए. सरकार को इन सफाईकर्मियों को पर्सनल प्रोटेक्टिव एक्विपमेंट उपलब्ध कराने चाहिए.
ब्राउनबैक ने कहा, चीन में कोरोना वायरस की वजह से जब सख्त लॉकडाउन था तो भी चीन ने तिब्बत में 10 लाख पुलिसकर्मियों को कैंपेन चलाने के लिए भेजा. महामारी के दौरान तिब्बतियों पर सख्ती लागू की गई. यहीं नहीं, उइगर मुस्लिमों को कोरना वायरस के खतरे के बावजूद काम करने के लिए मजबूर किया गया.