पाकिस्तान में इन दिनों रोजगार से जुड़े एक विज्ञापन को लेकर बवाल मचा हुआ हुआ है. हंगामा नौकरी देने में भेदभाव से जुड़े विज्ञापन को लेकर खड़ा हुआ है. दक्षिणी कराची के स्वास्थ्य विभाग ने एसजीडी स्पेशल लेप्रोसी क्लीनिक में सफाई कर्मियों के 5 रिक्त पदों के लिए वैकेंसी निकाली गई थी. यह रिक्ति सिर्फ गैर मुस्लिम उम्मीदवारों के लिए थी जिस पर हिंदुओं और ईसाइयों के साथ भेदभाव को लेकर विवाद खड़ा हो गया.
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पाकिस्तान के स्वास्थ्य विभाग ने नोटिस में लिखा है कि यह वैकेंसी गैर मुस्लिमों यानी हिंदुओं और ईसाई उम्मीदवारों के लिए है. जबकि अन्य नौकरियों में इस तरह की कोई शर्त नहीं रखी जाती है. इस तरह के एक विज्ञापन में स्वास्थ्य विभाग ने लिखा कि मुसलमान 'गंदे काम' के लिए अयोग्य हैं और यह भर्ती सिर्फ गैर-मुस्लिम उम्मीदवारों के लिए है.
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इसी तरह का एक पक्षपातपूर्ण और भेदभावपूर्ण विज्ञापन सिंध सरकार के पशुधन और मत्स्य पालन विभाग की तरफ से भी जारी किया गया था. पशुपालन विभाग ने स्वीपर और सफाई कर्मियों के 42 रिक्तियों के लिए विज्ञापन निकाला. यह रिक्तियां सिर्फ गैर-मुस्लिमों के लिए जारी की गईं.
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पाकिस्तान में यह पहली दफा नहीं है जब सफाई कर्मियों के लिए नौकरी की रिक्तियों को गैर-मुस्लिमों के लिए आरक्षित किया गया था. सोशल मीडिया पर इस तरह के दो मामले सामने आने के बाद पाकिस्तान के हिंदू भेदभावपूर्ण विज्ञापन के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं. पाकिस्तान के हिंदू सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सवाल उठाया है कि ऐसी नौकरियां सिर्फ गैर-मुसलमानों को विशेष रूप से क्यों दी जाती हैं.
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हिंदू सामाजिक कार्यकर्ता कपिल देव ने कहा, 'पाकिस्तान में स्वच्छता संबंधी नौकरियां विशेष रूप से ईसाइयों और हिंदुओं के लिए हैं. सरकार जो बार-बार इस तरह का काम करती है वो बताता है कि बहुसंख्यक गंदगी करेगा, अल्पसंख्यक उस गंदगी को साफ करेंगे. वैसे बहुत गंदा कर रहे हो!! हम क्लीनर, स्वीपर और सफाईकर्मियों में मुस्लिमों के समान अनुपात की मांग करते हैं.'
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पत्रकार वींगास ने अफसोस जताया, "पाकिस्तान में सभी नागरिक एक-समान नहीं हैं- केवल गैर-मुसलमानों के लिए स्वीपर और सफाईकर्मी की नौकरी है."
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एमबीबीएस की छात्रा रेखा महेश्वरी ने ट्वीट किया, 'ऐसे भेदभावपूर्ण कार्य अपने तक ही रखें. हम अच्छी स्थिति में रहने के लिए रोज दिन कड़ी मेहनत करेंगे...तो क्या हुआ अगर हम प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति पद पर जीत नहीं सकते हैं, हम अच्छे से पढ़े-लिखे हैं और इस दुनिया में कहीं भी बसने की हैसियत रखते हैं. हम हमेशा एक अच्छे जीवन के लिए प्रयास करेंगे.'
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एक रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान में ईसाइयों और दलितों को हाथ से मैला ढोने का काम करने के लिए मजबूर किया जाता है. पाकिस्तान में नगरपालिकाएं हाथ से मैला ढोने के लिए ईसाइयों पर बहुत अधिक निर्भर हैं क्योंकि मुसलमान गटर साफ करने से इनकार कर देते हैं. वहीं पाकिस्तान में ईसाई अल्पसंख्यकों के पास रोजगार के बहुत कम विकल्प हैं. एक अनुमान के मुताबिक, पाकिस्तान की आबादी में ईसाइयों की हिस्सेदारी 1.6 प्रतिशत है जबकि 80 फीसदी सफाई का काम ईसाई करते हैं.
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पाकिस्तान में सफाई का बाकी 20 फीसदी बचा हुआ काम दलित करते हैं. हिंदू आबादी में दलितों की अनुपात काफी है, लेकिन अशिक्षा और आय का अन्य स्रोत न होने की वजह से पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को गटर और मेडिकल कचरे की सफाई का काम करना पड़ता है.
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