सत्ता हाथ से फिसलते देख नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली हर दांव आजमा रहे हैं. सत्तारूढ़ पार्टी के भीतर ओली के इस्तीफे की बढ़ती मांग के बीच गुरुवार को राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने संसद के चल रहे बजट सत्र को रद्द कर दिया. राष्ट्रपति ने कहा कि ऐसा कैबिनेट की मांग पर किया गया है. कहा जा रहा है कि ओली के पास बहुमत नहीं है और अविश्वास प्रस्ताव से बचने के लिए उन्होंने संसद सत्र रद्द करवाया.
सरकार अल्पमत में ना आए, इसके लिए अब ओली विपक्षी दल नेपाली कांग्रेस के नेताओं से भी समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक, ओली नेपाली कांग्रेस में शेर बहादुर देउबा और माधव कुमार नेपाल गुट से संपर्क में हैं. अगर ओली के पास कोई विकल्प नहीं बचता है तो वह पार्टी विभाजन पर कदम आगे बढ़ा सकते
हैं.
चूंकि अब संसद सत्र रद्द हो गया है तो ओली के पास 'पॉलिटिकल पार्टीज ऐक्ट (2073)' में संशोधन करने के लिए अध्यादेश लाने का बेहतरीन मौका होगा. इस नए अध्यादेश से उनके लिए पार्टी का विभाजन करना आसान हो जाएगा. बता दें कि पार्टी के अध्यक्ष और नेपाल के पूर्व
प्रधानमंत्री
पुष्प कमल दहल प्रचंड, वरिष्ठ नेता माधव कुमार नेपाल, झाला नाथ खनल और
बामदेव गौतम
ओली पर प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष दोनों पद से इस्तीफा देने के लिए
दबाव बना रहे हैं.
पार्टी के सूत्रों का कहना है कि ओली ने अपनी चाल चल दी है और अब विरोधी गुट की बारी है. पार्टी की स्टैंडिंग कमिटी के सदस्य मणि थापा ने काठमांडू पोस्ट से कहा, अब गेंद प्रचंड-माधव नेपाल के पाले में है. ओली ने प्रचंड-नेपाल गुट पर दबाव बढ़ा दिया है और अब वे कोई भी कदम उठाते हैं तो उन्हें पार्टी विभाजन के लिए भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. थापा ने बुधवार को ओली और प्रचंड की अलग-अलग बैठकों में हिस्सा लिया. थापा ने कहा, अगर प्रचंड-माधव नेपाल गुट इस्तीफे के लिए दबाव बढ़ाना जारी रखता है तो ओली पार्टी विभाजन करने से नहीं हिचकेंगे.
संसद में दो-तिहाई बहुमत के बावजूद, पार्टी के भीतर प्रचंड और नेपाल गुट के विरोध की वजह से ओली के इस्तीफा देने की नौबत आ गई थी. हालांकि, आखिरी वक्त में ओली ने पार्टी विभाजित करने का दांव चल दिया. ओली को पार्टी के 78 से 80 सांसदों का समर्थन मिल सकता है. नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के कुल 174 सांसद हैं जिसमें से 53 प्रचंड के साथ हैं और 43 माधव नेपाल के साथ हैं. यानी ओली के विरोधी गुट के पास करीब 96 सांसदों का समर्थन है. ओली को संसद में बहुमत साबित करने के लिए 138 सांसदों की जरूरत है.
पार्टी
के सूत्रों के मुताबिक, ओली सदन में बहुमत साबित करने के लिए विपक्षी दल
कांग्रेस पार्टी के समर्थन पर निर्भर हो गए हैं जिसके पास 63 सीटें हैं. वह
नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा के साथ कुछ वक्त से संपर्क
में हैं. नेपाली कांग्रेस के उपाध्यक्ष बिमलेंद्र निधि ने काठमांडू पोस्ट
से बताया कि अगर ओली चाहेंगे तो कांग्रेस उनका समर्थन करेगी लेकिन उनकी
पार्टी सरकार में शामिल नहीं होगी.
पिछले सप्ताह 44 सदस्यीय स्टैंडिंग कमिटी की बैठक में करीब 30 सांसदों ने ओली के पार्टी प्रमुख और प्रधानमंत्री पद से इस्तीफे की मांग की थी. गुरुवार को स्टैडिंग कमिटी की बैठक से पहले ओली ने अचानक कैबिनेट बैठक बुला ली और आनन-फानन में संसद सत्र रद्द कराने का फैसला किया. कैबिनेट बैठक से पहले ओली ने राष्ट्रपति बिद्या भंडारी से भी मुलाकात की थी. कहा जा रहा है कि इस मुलाकात में ओली ने संसद सत्र रद्द कराने की अपनी योजना के बारे में चर्चा की. कुछ घंटों बाद प्रचंड दहल ने भी राष्ट्रपति से मुलाकात की.
पार्टी के प्रवक्ता नारायण काजी श्रेष्ठ के मुताबिक, इस मुलाकात के दौरान प्रचंड ने राष्ट्रपति से अनुरोध किया कि वह पार्टी विभाजन के लिए अध्यादेश ना लाने दें. राष्ट्रपति ने दहल से कहा कि उनके पास अभी तक अध्यादेश नहीं आया है. इन घटनाक्रमों के बाद गुरुवार शाम को स्टैंडिंग कमिटी की बैठक शुरू हुई. प्रचंड ने नेताओं को बताया कि ओली ने प्रधानमंत्री और पार्टी प्रमुख पद से इस्तीफा देने और बैठक में आने से इनकार कर दिया है. स्टैडिंग कमिटी की बैठक के बाद श्रेष्ठ ने कहा, पार्टी के भीतर एक बहुत बड़ा संकट पैदा हो गया है. इस संकट को टालने के लिए पार्टी के दोनों प्रमुख (ओली और प्रचंड दहल) और अन्य नेता शनिवार को एक बैठक करेंगे.
ओली पार्टी को विभाजित करने के लिए अध्यादेश लाने की तैयारी में हैं. नेपाल के कानून के मुताबिक, पार्टी विभाजन के लिए 40 प्रतिशत संसद सदस्य और 40 प्रतिशत पार्टी की केंद्रीय समिति के सदस्य के समर्थन की आवश्यकता होती है, लेकिन नए अध्यादेश में इन दोनों में से किसी एक का भी समर्थन होने पर पार्टी विभाजन को मान्यता दे दी जाएगी. ओली गुट को पता है कि केंद्रीय समिति में उनकी संख्या कमजोर है इसीलिए वे इस अध्यादेश को लाना चाह रहे हैं. 445 सदस्यीय केंद्रीय समिति में ओली को सिर्फ 30 फीसदी लोगों का ही समर्थन हासिल है. जबकि नेपाल की सत्तारूढ़ पार्टी के पास संसद में कुल 174 सीटें हैं और इसमें से ओली के गुट को 78 से 80 सांसदों का समर्थन है. ऐसे में वह 40 फीसदी वोट आसानी से जुटा लेंगे.
ओली के पार्टी विभाजन की योजना को जानने के बाद अब प्रचंड गुट इस तरह की परिस्थिति को टालने की कोशिश कर रहा है. अगर ओली इस्तीफा देने के लिए तैयार नहीं होते हैं तो प्रचंड गुट के पास खुद को सांत्वना देने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह जाएगा. पार्टी के सूत्रों का कहना है कि फिर दोनों नेता एक समझौते पर पहुंच सकते हैं- दहल पार्टी चलाएं और ओली सरकार.
हालांकि, प्रचंड गुट के लिए चिंता की बात ये है कि नेपाली कांग्रेस भी इस खेल में शामिल हो गई है. अगर नेपाली कांग्रेस ओली को अपना समर्थन देने के लिए तैयार हो जाती है तो फिर प्रचंड धड़े के पास कोई विकल्प नहीं बचा रह जाएगा. पार्टी के कुछ नेताओं का कहना है कि ओली और प्रचंड के लिए यही बेहतर होगा कि दोनों मेल-मिलाप कर लें. स्टैडिंग कमिटी के एक सदस्य अस्त लक्ष्मी शाक्य ने काठमांडू पोस्ट से कहा, "अगर पार्टी टूटती है तो हमें बड़ी मुश्किलों से गुजरना होगा. ओली को अपनी कार्यशैली को बदलना चाहिए और पार्टी की बात सुननी चाहिए. प्रचंड को भी कोई रास्ता निकालना चाहिए."