विश्व स्वास्थ्य संगठन की सोमवार से वार्षिक बैठक शुरू हो गई है. इस बैठक में कोरोना वायरस की महामारी का मुद्दा छाना स्वाभाविक है. कोरोना वायरस को लेकर दुनिया भर के कई देश चीन की भूमिका को संदिग्ध मान रहे हैं. कोरोना वायरस की महामारी और चीन की भूमिका को लेकर भारत अब तक चुप था लेकिन यह चुप्पी अब टूटती दिख रही है. सबसे पहले केंद्रीय परिवहन और सड़क निर्माण मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि यह वायरस प्राकृतिक नहीं है और इसे लैब में तैयार किया गया है.
नितिन गडकरी ने ये बयान दिया तो ऐसा लग रहा था कि यह उनकी निजी राय होगी और भारत सरकार उनसे सहमत नहीं होगी. लेकिन WHO की बैठक के लिए ड्राफ्ट प्रस्ताव के अनुसार भारत ने उस जांच का समर्थन किया है जिसमें पता करना है कि कोरोना वायरस जानवरों से इंसान में कैसे आया और विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस महामारी को लेकर भूमिका कितनी निष्पक्ष रही.
इससे पहले यूरोप और ऑस्ट्रेलिया की तरफ से इस तरह की जांच की मांग उठती रही
है. भारत ने पहली बार इस तरह की जांच में शामिल होने के लिए औपचारिक रूप
से हामी भरी है.
कोरोना वायरस का संक्रमण चीन के वुहान शहर से पिछले साल दिसंबर महीने में
शुरू हुआ था और अब तक इससे तीन लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है.
हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्च में जी-20 समिट में विश्व स्वास्थ्य
संगठन में सुधार और पारदर्शिता की बात कही थी.
चीन पर आरोप लगता रहा है कि उसने कोरोना वायरस के संक्रमण की शुरुआत में सूचनाओं को छुपाया और पारदर्शिता नहीं बरती इसलिए पूरी दुनिया में यह संक्रमण फैल गया. इसे लेकर अमेरिका और चीन के बीच जमकर कहासुनी भी हुई. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने खुलेआम कहा कि कोरोना वायरस चीन की लैब में पैदा किया गया और इसे लेकर उनके पास पर्याप्त सबूत हैं.
दूसरी तरफ चीन ने कहा कि वुहान में कोरोना वायरस अमेरिकी सैनिकों के जरिए आया और इसके लिए अमेरिका जिम्मेदार है. विश्व स्वास्थ्य संगठन पर भी ट्रंप ने आरोप लगाया कि वो चीन परस्त है. इसे लेकर ट्रंप ने WHO का फंड भी रोकने की घोषणा कर दी. ट्रंप ने कहा कि अमेरिका चीन से कई गुना ज्यादा फंड देता है लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन चीन का बचाव कर रहा है.
कोरोना वायरस महामारी की जांच का 62 देशों ने समर्थन किया है जिसमें भारत के साथ बांग्लादेश, कनाडा, रूस, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, यूके और जापान भी शामिल हैं. हालांकि, WHO के प्रस्ताव में चीन या वुहान का जिक्र नहीं है. लेकिन ये कहा गया है कि WHO इस बात की जांच करे कि वायरस कहां से पैदा हुआ और जानवर से इंसान में कैसे आया.
सात पन्नों के प्रस्ताव में WHO की भूमिका की भी जांच की बात कही गई है. कहा जा रहा है कि यह प्रस्ताव चीन के खिलाफ है और उसे जवाब देना होगा. कोरोना महामारी की उत्पत्ति को लेकर अंतरराष्ट्रीय जांच को समर्थन मिलने से चीन को अपनी छवि को नुकसान पहुंचने का भी डर है.
चीनी मीडिया में भी इस प्रस्ताव को लेकर खूब चर्चा है. चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि कोरोना वायरस महामारी के फैलने की जांच निष्पक्ष होनी चाहिए. अखबार का कहना है कि जांच राजनीतिक ना होकर वैज्ञानिक और पारदर्शी होनी चाहिए. ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, "चीन किसी भी वैज्ञानिक जांच को लेकर विरोध नहीं कर रहा है लेकिन अमेरिकी एजेंडे के हिसाब से जांच का विरोध करता है. जो देश अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के प्रोपेगैंडा में उसका साथ दे रहे हैं, उनकी चीन के प्रति राजनीतिक मंशा जाहिर हो जाती है."
दूसरी तरफ चीन ने कहा कि वुहान में कोरोना वायरस अमेरिकी सैनिकों के जरिए आया और इसके लिए अमेरिका जिम्मेदार है. विश्व स्वास्थ्य संगठन पर भी ट्रंप ने आरोप लगाया कि वो चीन परस्त है. इसे लेकर ट्रंप ने WHO का फंड भी रोकने की घोषणा कर दी. ट्रंप ने कहा कि अमेरिका चीन से कई गुना ज्यादा फंड देता है लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन चीन का बचाव कर रहा है.
क्या भारत ने इस जांच का समर्थन कर चीन को नाराज कर दिया है? ऑस्ट्रेलिया ऐसी नाराजगी पहले से ही झेल रहा है. ऑस्ट्रेलिया को चीन ने धमकी दी है कि वो वहां से जौ और बीफ का आयात बंद करने जा रहा है. ऑस्ट्रेलिया के लिए चिंता की बात है क्योंकि उसके जौ और बीफ का चीन सबसे बड़ा खरीददार है. लेकिन भारत के साथ ऐसी बात नहीं है.
भारत और चीन के बीच कारोबारी साझेदारी में नुकसान भारत का है. दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार में घाटा भारत का है क्योंकि भारत निर्यात की तुलना में चीन से आयात ज्यादा करता है. ट्रंप ने भी इसी आधार पर चीन के साथ ट्रेड वॉर छेड़ रखा है. ट्रंप का कहना है कि वो चीन से हर तरह के संबंध तोड़ सकते हैं. राष्ट्रपति ट्रंप ने तर्क दिया था कि अगर वो चीन से हर तरह का संबंध खत्म करते हैं तो इससे अमेरिका को हर साल 500 अरब डॉलर का फायदा होगा क्योंकि अमेरिका सालाना इतनी ही रकम का सामान चीन से खरीदता है.
भारत ने इससे पहले भी चीन के खिलाफ एक कदम उठाया था. पिछले महीने भारत ने चीन से होने वाले निवेश के ऑटोमैटिक रूट को बंद कर दिया था और अब कोई भी चीनी निवेश आने से पहले भारत सरकार की मंजूरी जरूरी है. भारत को डर था कि कोरोना वायरस की महामारी में भारतीय कंपनियों का कारोबार ठप पड़ा है और इसका फायदा उठाकर चीन सस्ते में टेकओवर ना कर ले.
अब इसी तरह की मांग यूरोप में भी चीन के खिलाफ उठ रही है. जर्मनी ने भी भारत की तरह से चीन से आने वाले निवेश के लिए नियम कड़े कर दिए हैं. भारत के इस कदम को चीन ने एकतरफा और विश्व व्यापार संगठन के नियमों के खिलाफ बताकर नाराजगी भी जताई थी.