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क्या बच पाएगा अफगानिस्तान का इतिहास? तालिबान के निशाने पर ऐतिहासिक धरोहर

aajtak.in
  • काबुल,
  • 19 अगस्त 2021,
  • अपडेटेड 6:17 PM IST
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अफगानिस्तान के इतिहास और सांस्कृतिक-ऐतिहासिक धरोहरों पर तालिबान के बमों का खतरा बरकरार है. तालिबान ने पहले भी ऐतिहासिक इमारतों और धरोहरों को अपने तोप के गोलों और रॉकेट व ग्रेनेड से उड़ाया है. इस बार फिर खतरा मंडरा रहा है कि ये बची हुई प्राचीन धरोहरों को नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे. एक मीडिया साइट ने तो यहां तक लिखा है कि तालिबान के आने की खबरें अफगानिस्तान में पहले से थीं, इसलिए कई म्यूजियम अपने बेशकीमती ऐतिहासिक धरोहरों को दूसरी जगह भेजने और सुरक्षित करने में लग गए थे. 

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द आर्ट न्यूजपेपर ने लिखा है कि सबसे ज्यादा खतरा हेरात शहर को है. कई अफगानी कलाकारों ने अपने स्टूडियो बंद कर दिए हैं.  साल 2001 से ज्यादा खतरा इस बार अफगानिस्तान की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों को है. आइए जानते हैं कि तालिबान ने किन ऐतिहासिक धरोहरों को छलनी कर दिया या फिर अपने कब्जे में लेकर बैठै हैं. इनमें सबसे पहले और सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है बामियान के बुद्ध (The Giant Buddhas of Bamiyan). मार्च 2001 में तालिबानी लड़ाकों ने 7वीं सदी के बुद्ध की प्रतिमाओं को बम मारकर गिरा दिया था. 

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साल 1992 में तालिबान ने नेशनल म्यूजियम ऑफ अफगानिस्तान पर हमला किया. वहां से ऐतिहासिक चीजों की चोरी की. म्यूजियम में रखी गईं 1 लाख से ज्यादा ऐतिहासिक धरोहरों में 70 फीसदी या तो बर्बाद हो गईं या फिर उन्हें तालिबानी लड़ाके लूट ले गए. 

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साल 1998 में अफगानिस्तान के पुली खुमरी (Puli Khumri) पब्लिक लाइब्रेरी को तालिबान ने निशाना बनाया. यहां पर 55 हजार से ज्यादा किताबों और प्राचीन पांडुलिपियां रखी हुई थीं. ये अफगानी संस्कृति की पहचान हुआ करती थी. इतना ही नहीं साल 2001 में तालिबान ने एक बार फिर नेशनल म्यूजियम ऑफ अफगानिस्तान पर हमला किया. यहां से 2750 ऐतिहासिक कलाकृतियों को लूट ले गए. 

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अफगानिस्तान के घोर प्रांत के शाहरक जिले में स्थित जैम का मिनार (Minaret of Jam) इस समय तालिबान के कब्जे में है. इससे पहले साल 21 जुलाई 2018 में इस जगह पर तालिबान लड़ाकों और स्थानीय सेनाओं के साथ मुठभेड़ हुई थी. तब तालिबानियों ने इस मीनार के आसपास के जंगलों में आग लगा दी थी. जिसकी वजह से पास में स्थित एक मस्जिद जल गई थी. इस मीनार को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट में भी शामिल किया गया है. 

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अफगानिस्तान का हेरात शहर इस देश की सांस्कृतिक और ऐतिहासिकता की धरोहर है. लेकिन इस समय इस शहर पर तालिबान का कब्जा है. इस शहर को ऐतिहासिक तौर पर पर्ल ऑफ खोरासन (Pearl of Khorasan) कहते हैं. साल 1995 में तालिबान ने इस पर पहली बार कब्जा किया था. तब से लेकर इस जगह पर तालिबानियों और अफगानी फौजों के बीच संघर्ष होता रहता है. 

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अफगानिस्तान के बाल्ख (Balkh) में मौजूद हरे रंग के गुंबद वाला ऐतिहासिक मस्जिद पर भी तालिबानी बमों और रॉकेटों का असर हुआ. 1421 में बने इस खूबसूरत मस्जिद की दो मीनारें टूटी हुई हैं. कई जगहों पर रंग उतर चुके हैं. गुंबद का ऊपरी हिस्सा भी थोड़ा बहुत क्षतिग्रस्त है. इस समय इस जगह पर भी तालिबानियों का कब्जा है. 
 

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बंद-ए-अमीर नेशनल पार्क (Band-E-Amir National Park) यानी अफगानिस्तान का ग्रैंड कैन्यन. यह हिंदूकुश के पहाड़ों के निचले हिस्से में बसे बामियान प्रांत में है.  यहां पर छह बेहद गहरी झीलें मौजूद हैं. जो कभी पर्यटन स्थल हुआ करती थीं. यहां हजारों पर्यटक हर साल आते थे. इस समय यहां पर तालिबान लड़ाकों का कब्जा है. किसी भी पर्यटक का आना-जाना बंद है. 

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बाबर का बगीचा (Garden of Babur) काबुल में मौजूद है. इसे 1528 में पहले मुगल शासक बाबर की याद में बनाया गया था. कहा जाता है कि यहां पर बाबर का मकबरा है. बेहद खूबसूरत लोकेशन पर स्थित यह बगीचा आजकल आम लोगों के लिए बंद है. यहां पर तालिबानियों का कब्जा है. 1992 से 1996 के बीच अफगानी गृह युद्ध के समय यह बगीचा काफी ज्यादा बर्बाद हो गया था. जिसे बाद में बनाया गया. 

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तालिबानी लड़ाकों ने हाल ही में शिया नेता अब्दुल अली मजारी की प्रतिमा को तोड़ डाला. कहा जाता है कि अफगानी गृह युद्ध के समय मजारी ने तालिबानियों के खिलाफ संघर्ष किया था. 1996 में ही तालिबान ने मजारी को मार डाला था. उसके बाद उनकी याद में यह प्रतिमा बनाई गई थी. 

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