कोरोना की दूसरी लहर के चलते भारत में स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा गई हैं. अस्पतालों में ऑक्सीजन और बेड की कमी के चलते कोरोना संक्रमित लोगों का इलाज नहीं हो पा रहा है और मरीजों की जान जा रही है. कोविड-19 की विकट स्थिति से पैदा हुए हालात को लेकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने मोदी सरकार की नेतृत्व क्षमता पर सवाल खड़े किए हैं. कई अंतरराष्ट्रीय मैगजीन ने अपने कवर पेज पर श्मशानों में जलती लाशें, कब्रिस्तान की कतारें, अस्पताल के बाहर बदहवाश लोगों के चेहरों को दिखाते हुए भारत के संकट को बयां किया है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत सरकार ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया की रिपोर्ट्स को एकतरफा करार दिया है.
(फोटो-PTI)
इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में तैनात भारतीय राजदूतों और उच्चायुक्तों के साथ वर्चुअल बैठक में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने गुरुवार को कहा कि भारत को लेकर इंटरनेशनल मीडिया में एक तरफा रिपोर्टिंग चल रही है. कोरोना संकट से निपटने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सरकार को 'अयोग्य' करार देने के अंतरराष्ट्रीय मीडिया के नैरेटिव का जरूर जवाब दिया जाना चाहिए.
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असल में, दुनियाभर के प्रसिद्ध अखबारों मसलन न्यूयॉर्क टाइम्स, द गार्जियन, ली मोंडे, स्ट्रेट्स टाइम्स और अन्य टीवी चैनलों ने कोरोना संकट की अनदेखी करते हुए बड़ी चुनानी रैलियों और कुंभ मेला को रद्द नहीं करने को लेकर मोदी सरकार पर सवाल खड़े किए थे. इंटरनेशनल मीडिया में भारत सरकार की बढ़ती आलोचना के बीच विदेश मंत्री एस जयशंकर ने गुरुवार को भारतीय राजदूतों और उच्चायुक्तों के साथ यह बैठक की.
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अंतरराष्ट्रीय टीवी चैनलों ने कोरोना से निपटने में भारत की तैयारियों की कमी को उजागर करने के लिए दिल्ली और भारत के अन्य हिस्सों में अस्पताल के बाहर मरीजों और एंबुलेंस के इंतजार, श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार के विजुअल्स चलाए. 'द ऑस्ट्रेलियन' में छपी एक रिपोर्ट को लेकर कैनबरा स्थित भारतीय दूतावास ने कड़ा ऐतराज भी जताया था.
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गुरुवार को हुई बैठक में मौजूद अधिकारियों के अनुसार, यह बैठक जिन देशों ने मदद की है, उन देशों से ऑक्सीजन कंटेनर, कंसंट्रेटर्स, वेंटिलेटर, दवा और वैक्सीन सहित संसाधनों को जुटाने के लिए भारत के प्रयास के संदर्भ में थी. राजदूतों और उच्चायुक्तों के अलावा इस बैठक में राज्य मंत्री वी मुरलीधरन, विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला और कोविड-19 संकट से निपटने वाले अधिकारियों ने भी घंटे भर चली इस बैठक में हिस्सा लिया.
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रिपोर्ट के मुताबिक, बैठक में मौजूद अधिकारियों ने बताया कि यह मीटिंग दो बड़े मुद्दों को लेकर थी. पहला, उन सामग्रियों की खरीद को लेकर चर्चा की गई जिसकी कोरोना से निपटने में दरकार है. राजनयिकों का सवाल था कि इन सामग्रियों को भारत कैसे भेजा जाए, इसे लेकर कई सवाल थे. मसलन सीमा शुल्क और लॉजिस्टिक संबंधी औपचारिकताओं को लेकर भी चर्चा हुई.
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दूसरा सबसे बड़ा मुद्दा अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भारत की कोरोना संकट से जुड़ी खबरों को काउंटर करना था. बैठक में हिस्सा लेने वाले अधिकारियों ने बताया कि एस जयशंकर के संदेश का मतलब 'निगेटिव' खबरों को दबाना नहीं था बल्कि उनका जोर स्टोरी में सरकारी पक्ष को भी लेने पर था.
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बैठक में हिस्सा लेने वालों को बताया गया कि कोरोना की दूसरी लहर ऐसी नहीं थी, जिसे लेकर दुनिया के किसी पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट ने कोई भविष्यवाणी की थी. पिछले साल तो कई विकसित देशों में भी स्वास्थ्य ढांचा कोरोना की पहली लहर में चरमरा गया था.
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राजनयिक अधिकारियों को बताया गया कि ऑक्सीजन की कमी उत्पादन में कमी के कारण नहीं थी बल्कि उत्पादन की सीमित भौगोलिक परिस्थितियों और लंबी दूरी के कारण पैदा हुई थी. बैठक के प्रतिभागियों को यह भी बताया गया कि चुनावी रैलियों का कोरोना के मामलों में उछाल से कोई लेना-देना नहीं था.
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विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दलील दी कि दिल्ली और महाराष्ट्र में कोरोना के मामले ज्यादा हैं जबकि इन दोनों राज्यों में कोई चुनाव नहीं है. हालांकि, एस जयशंकर ने कुंभ मेले का जिक्र नहीं किया जिसे हरेक इंटरनेशनल मीडिया में कोरोना का 'सुपर स्प्रेडर' बताया गया. राजनयिक अधिकारियों ने भी कुंभ मेले और चुनावी रैलियों को लेकर कोई सवाल नहीं किए जहां सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ीं.
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रिपोर्ट के मुताबिक, विदेश मंत्री जयशंकर ने वैक्सीन मैत्री पर भी चर्चा नहीं की जिसके तहत भारत ने बाहरी देशों को 66 मिलियन टीके भेजे हैं. प्रतिभागियों में से किसी ने भी इस बारे में नहीं पूछा. 'द ऑस्ट्रेलियन' की रिपोर्ट का हवाला देते हुए राजनयिक अधिकारियों ने यह जरूर कहा कि हरेक मीडिया रिपोर्ट को काउंटर करने की जरूरत नहीं है. भारत के कोरोना संकट पर 'द ऑस्ट्रेलियन' की रिपोर्ट को लेकर ऑस्ट्रेलिया में डिप्टी हाई कमिश्नर की तरफ से लिखी चिट्टी को गैर जरूरी करार दिया गया.
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