उत्तर प्रदेश के कानपुर में रानीघाट इलाके से सामने आया है, जहां उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (UPPCL) के सेवानिवृत्त सुपरिटेंडेंट इंजीनियर रमेश चंद्र और उनकी पत्नी नीलम को साइबर ठगों ने पूरे 70 दिनों तक डिजिटल अरेस्ट में रखा. इस दौरान ठगों ने उन्हें डर, धमकी और झूठे कानूनी मामलों में फंसाने का भय दिखाकर कुल 53 लाख रुपये की ठगी कर ली.
पीड़ित रमेश चंद्र ने ‘आज तक’ से बातचीत में बताया कि ठगी के बाद उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल गई. इलाज के लिए दिल्ली जाना था, लेकिन हालत यह हो गई कि जेब में एक पैसा भी नहीं बचा. उन्होंने भावुक होकर कहा कि वे जीवन में हमेशा मजबूत रहे, लेकिन बच्चों की सुरक्षा की धमकी ने उन्हें तोड़ दिया. फिलहाल उनके खाते में सिर्फ 11 हजार रुपये बचे हैं, जबकि वे गंभीर रूप से बीमार हैं.
रमेश चंद्र ने बताया कि उनकी दोनों किडनियां खराब हैं और उन्हें सप्ताह में दो बार डायलिसिस कराना पड़ता है. ठगी के बाद इलाज कराना भी मुश्किल हो गया है. बातचीत के दौरान वे बेहद कमजोर नजर आए और पत्नी नीलम का सहारा लेकर बोलते दिखे. नीलम ने बताया कि उन्होंने कभी अपना घर नहीं खरीदा और उम्मीद थी कि बच्चे पढ़-लिखकर घर बनाएंगे, लेकिन ठगों ने जीवनभर की ईमानदार कमाई लूट ली.
पीड़ित दंपती ने बताया कि ठगों ने सबसे पहले उन्हें यह कहकर डराया कि जेट एयरवेज के मालिक नरेश गोयल से जुड़े एक मामले में उनके खाते में 538 करोड़ रुपये ट्रांसफर हुए हैं और इसके बदले उन्हें 10 फीसदी कमीशन मिला है. इसके बाद उन्हें नजरबंद करने की बात कही गई और संपत्ति, शेयर, गहने व पीएफ फ्रीज करने की धमकी दी गई.
3 अक्टूबर को 21 लाख रुपये और 20 नवंबर को 23 लाख रुपये आरटीजीएस के जरिए ट्रांसफर कराए गए. अलग-अलग किस्तों में कुल 53 लाख रुपये ठगों के खातों में चले गए. ठगों ने भरोसा दिलाया कि जांच पूरी होने पर सुप्रीम कोर्ट उन्हें मुआवजा दिलाएगा. 70 दिनों तक दंपती को एक ही कमरे में रहने को मजबूर किया गया. मोबाइल पर लगातार वीडियो कॉल चलती रहती थी. टीवी देखने, किसी से मिलने और घर से बाहर निकलने तक पर पाबंदी थी. बैंक जाने पर भी वीडियो कॉल से निगरानी की जाती थी. बच्चों को नुकसान पहुंचाने की धमकी के चलते दंपती किसी से मदद नहीं मांग सके.
ठगों ने भरोसा दिलाया था कि जांच पूरी होने पर और निर्दोष साबित होने की स्थिति में सुप्रीम कोर्ट नुकसान की भरपाई करेगा. इसके बाद दोनों को एक ही कमरे में कैद कर दिया गया. बेड के सामने रखी कुर्सी पर मोबाइल रखा रहता था, जिस पर लगातार वीडियो कॉल चलती रहती थी. दूसरे कमरे में जाने तक पर रोक थी. पांच दिनों तक नौकरानी को अंदर आने नहीं दिया गया. टीवी देखने की मनाही थी और वॉशरूम या रसोई जाने के लिए भी अनुमति लेनी पड़ती थी. करीब एक महीने तक दोनों फ्लैट से बाहर नहीं निकले.
नीलम ने बताया कि जब वे बैंक से पैसे निकालने जाते थे, तब एक मोबाइल से वीडियो कॉल के जरिए निगरानी की जाती थी और दूसरे मोबाइल पर लगातार व्हाट्सएप चैट चलती रहती थी. बाहर निकलते समय उन्हें यह बताना होता था कि कौन-से रंग के कपड़े पहने हैं और किस व्यक्ति से मिलने जा रहे हैं. यहां तक कि अमेरिका में रहने वाले एक पुराने दोस्त की बेटी की शादी में शामिल होने के लिए भी ठगों से इजाजत लेनी पड़ी और किसी से बातचीत न करने की सख्त चेतावनी दी गई.
दंपती ने बताया कि 70 दिनों तक वे किसी से कुछ नहीं कह सके, क्योंकि ठगों ने धमकी दी थी कि उनके दोनों बेटों पर नजर रखी जा रही है. यदि किसी को जानकारी दी गई तो बेटों का भविष्य बर्बाद कर दिया जाएगा और बड़े बेटे को अमेरिका से वापस भेज दिया जाएगा. बच्चों की सुरक्षा के डर से वे चुप रहे.
रमेश ने बताया कि वीडियो कॉल के दौरान किसी का चेहरा साफ नजर नहीं आता था. कुछ लोग खुद को सर्विलांस अधिकारी बताते थे और संतोष, ए. अनंतराम व उमेश मच्छंदर जैसे नाम बताते थे. वे दिन-रात निगरानी का दावा करते थे और धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलते थे. खुद को सीबीआई अधिकारी बताने वाले एक युवक ने वीडियो कॉल पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई भी दिखाई, जिसमें पूरा माहौल अदालत जैसा ही नजर आ रहा था. यह मामला साइबर ठगी के बढ़ते और खतरनाक स्वरूप की चेतावनी है, जहां डर और तकनीक के जरिए लोगों को मानसिक रूप से कैद कर लिया जा रहा है.
सिमर चावला