कानपुर के सियासी गलियारों में इन दिनों बीजेपी सांसद देवेंद्र सिंह भोले का 'मैं सबसे बड़ा बदमाश, मुझसे बड़ा कोई हिस्ट्रीशीटर नहीं' वाला बयान सुर्खियों में है. वह अब सीधे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दरबार तक पहुंच गया है.
भाजपा के क्षेत्रीय अध्यक्ष प्रकाश पाल ने पुष्टि की है कि इस पूरे विवाद की रिपोर्ट प्रदेश संगठन मंत्री, प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भेज दी गई है. उन्होंने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है. पार्टी के नेता जनता के लिए आदर्श बनें, एक-दूसरे से नहीं लड़ें. विपक्ष से लड़ाई लड़नी है, आपस में नहीं. प्रकाश पाल ने साफ कहा कि प्रदेश नेतृत्व को सुझाव दिया गया है कि दोनों नेताओं को बुलाकर उनकी बात सुनी जाए और जो भी गलती पर हो, उसे सख्त शब्दों में समझाया जाए.
दिशा की बैठक बनी अखाड़ा
दरअसल, यह पूरा विवाद जिला दिशा समिति की बैठक के दौरान भड़का था. यह वही बैठक होती है, जिसमें सांसद, विधायक और जिले के शीर्ष अधिकारी विकास कार्यों की समीक्षा करते हैं. लेकिन इस बार बैठक का माहौल अचानक बिगड़ गया. बैठक में बीजेपी के पूर्व सांसद और राज्य मंत्री प्रतिभा शुक्ला के पति अनिल शुक्ला वारसी ने सांसद भोले पर तीखे आरोप लगाए. उन्होंने कहा कि सांसद समिति का दुरुपयोग कर रहे हैं, अपने खास लोगों को शामिल करवा रहे हैं और आम जनता की आवाज दबा रहे हैं. वारसी ने तो यहां तक कह दिया कि भोले जनता को झूठे मुकदमों में फंसा रहे हैं, फैक्ट्री मालिकों से वसूली कर रहे हैं. इन्हें इलाज की जरूरत है, ये कानपुर देहात के गुंडों के चेयरमैन हैं.
भोले का पलटवार : मैं कानपुर देहात का सबसे बड़ा हिस्ट्रीशीटर हूं
वारसी के आरोपों के जवाब में सांसद देवेंद्र सिंह भोले ने जो कहा, वही बयान अब बवाल का कारण बना है. सांसद ने जवाबी वार में कहा, 'मुझसे बड़ा गुंडा कोई नहीं है… मैं कानपुर देहात का सबसे बड़ा हिस्ट्रीशीटर हूं.' उन्होंने कहा कि उनके ऊपर दर्ज सारे मुकदमे पिछली सरकारों की राजनीतिक साजिश का हिस्सा थे. जब मैं बीजेपी में नहीं था, तब विरोधी दलों ने मुझे दबाने की कोशिश में झूठे मुकदमे लिखवाए. लेकिन वही सरकारें बाद में मान गईं कि केस फर्जी थे और उन्हें खत्म भी कर दिया गया. भोले ने कहा कि वे हमेशा जनता की सेवा के लिए राजनीति में आए हैं, लेकिन कुछ लोग उनकी बढ़ती लोकप्रियता से घबरा गए हैं और अब छवि खराब करने की कोशिश कर रहे हैं. मेरे खिलाफ झूठ फैलाने वाले वही चेहरे हैं जिन्हें जनता ने पहले ही नकार दिया. मेरा रिकॉर्ड साफ है मैं जनता की भलाई के लिए लड़ता हूं, किसी के दबाव में नहीं झुकता.
अफसरों को बीच-बचाव करना पड़ा
जैसे-जैसे बहस बढ़ी, बैठक का माहौल बेकाबू हो गया. हंगामा इस कदर बढ़ा कि डीएम और एसपी को खुद बीच में आकर मामला शांत कराना पड़ा. बैठक रद्द करनी पड़ी और विकास से जुड़ी सारी चर्चाएं अधूरी रह गईं. बताया जा रहा है कि जब सांसद और पूर्व सांसद एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे थे, उस वक्त कुछ अधिकारी बैठक छोड़कर बाहर निकल आए ताकि मामला हाथापाई में न बदल जाए.
पुराना है वर्चस्व का झगड़ा
यह विवाद अचानक नहीं फूटा. भोले और वारसी के बीच टकराव की जड़ें कई साल पुरानी हैं. पूर्व सांसद अनिल शुक्ला वारसी, राज्य मंत्री प्रतिभा शुक्ला के पति हैं. दोनों का राजनीतिक प्रभाव कानपुर देहात के कई इलाकों में है, और यहीं से वर्चस्व की लड़ाई शुरू हुई थी. कुछ महीने पहले प्रतिभा शुक्ला ने जिले में भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ दुर्व्यवहार और अनदेखी के विरोध में धरना प्रदर्शन किया था. उस वक्त भी पार्टी के अंदर चर्चा थी कि यह धरना सांसद भोले के खिलाफ अप्रत्यक्ष नाराजगी का संकेत था.
'औकात दिखा देता' वाला वीडियो भी हुआ था वायरल
यह पहला मौका नहीं है जब वारसी ने भोले पर निशाना साधा हो. जुलाई में भी एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें अनिल शुक्ला वारसी कहते सुने गए कि अगर मेरी पत्नी मंत्री नहीं बनी होती, तो मैं खुद 2024 का चुनाव लड़ता और भोले सिंह को उनकी औकात दिखा देता. उनके आदमी थाने चलाते हैं, वसूली करते हैं और जिले में डर का माहौल बना रहे हैं. इस बयान ने तब भी पार्टी संगठन को असहज कर दिया था. इसी कड़ी में एक और वीडियो चर्चा में रहा, जिसमें वारसी डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक से फोन पर बातचीत में कह रहे थे कि आपको ब्राह्मणों की रक्षा के लिए बनाया गया है, लेकिन आप कुछ नहीं कर रहे. कहा जाता है कि डिप्टी सीएम ने बात पूरी सुने बिना ही फोन काट दिया था.
भाजपा में बढ़ती अंदरूनी कलह पर चिंतन
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, संगठन इस विवाद को बहुत गंभीरता से ले रहा है क्योंकि यह मामला न सिर्फ कानपुर देहात बल्कि पूरे प्रदेश में बीजेपी की छवि पर असर डाल सकता है. एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि सार्वजनिक मंच पर इस तरह का झगड़ा अनुशासनहीनता की श्रेणी में आता है. पार्टी अनुशासन सर्वोपरि है, चाहे व्यक्ति कितना भी बड़ा क्यों न हो. प्रदेश संगठन के एक पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि यह मामला सीधा मुख्यमंत्री तक गया है. सीएम योगी ऐसे मामलों में अनुशासन से कोई समझौता नहीं करते. दोनों पक्षों को लखनऊ बुलाया जा सकता है. आगे की कार्रवाई शीर्ष नेतृत्व तय करेगा.
अब सबकी नजरें सीएम योगी पर
इस पूरे विवाद का फाइनल फैसला अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाथ में है. योगी के सख्त अनुशासन और जीरो टॉलरेंस की नीति को देखते हुए यह तय माना जा रहा है कि वे इस मसले पर जल्द निर्णय लेंगे. प्रदेश संगठन में इस बात को लेकर चर्चा है कि पार्टी किसी भी कीमत पर “बदनाम बयानबाजी” को बढ़ावा नहीं देगी. सूत्रों के मुताबिक, मुख्यमंत्री योगी के दरबार में रिपोर्ट पहुंचने के बाद शीर्ष स्तर पर बातचीत शुरू हो चुकी है.
सिमर चावला