डॉल्फ़िन के साथ तैरना, गोरिल्ला के साथ पेड़ों पर चढ़ना और फ़ुटबॉल मैच में विजयी गोल करना, ये सब 13 साल का माइकी स्ट्रैचन को बेहद पसंद है. यह बच्चा ये सब सिर्फ वीआर गेम्स के दौरान कर पाता है. वर्चुअल रियलिटी की मदद से वह अपना पूरा दिन नई-नई चीजें खोजने में बिताता है. क्योंकि, वह एक ऐसी दुर्लभ बीमारी से ग्रसित है, जिसके बारे में दुनिया के कोई डॉक्टर पता नहीं कर पाए हैं.
माइकी की स्वास्थ्य संबंधी जरूरतें इतनी जटिल हैं कि उसे दिन में कुछ घंटों को छोड़कर बाकी समय वेंटिलेटर पर रहना पड़ता है. वह विदेश यात्रा नहीं कर सकता, दोस्तों के साथ खेल नहीं सकता और स्कूल भी नहीं जा सकता.
वीआर गेम ने बच्चे की बदल दी है जिंदगी
मिरर की रिपोर्ट के मुातबिक, हैम्पशायर के फेयरहैम की रहने वाले माइकी की मां, 43 साल की शेवोन न्यूलैंड्स ने बताया कि वीआर में वह एक सामान्य किशोर की तरह व्यवहार करता है. इसने उसे जिंदगी जीने के लिए एक नई दुनिया खोल दी है और कुछ समय के लिए वह अपनी स्वास्थ्य समस्याओं को भूल जाता है. इसने उसकी जिंदगी बदल दी है.
नौ महीने की उम्र से सांस लेने में होती है परेशानी
माइकी की मां शेवोन और पिता जॉर्ज स्ट्रैचन ने बताया कि माइकी के जन्म के कुछ समय बाद ही उसे सांस लेने में तकलीफ होने लगी. डॉक्टरों ने हमें बताया कि वह कभी बैठ नहीं पाएगा या हमसे बात नहीं कर पाएगा, यह हमारे लिए बहुत दुखद था. शेवोन ने बताया कि नौ महीने की उम्र में, वे उसके गले में एक ट्यूब लगाने में कामयाब हुए जिससे उसे सांस लेने में मदद मिली.
उसकी हालत ऐसी है कि उसके साथ 24 घंटे किसी न किसी प्रशिक्षित व्यक्ति का होना जरूरी है क्योंकि उसकी सांस कभी भी रुक सकती है. उसके शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती रहे, इसके लिए उसे अक्सर वेंटिलेटर पर भी रखा जाता है. कई बार ऐसा हुआ है कि उनकी सांस की वो ट्यूब निकल गई और वे लगभग मर ही गया था.
खाना भी विशेष तरीके से दिया जाता है
शेवोन ने बताया कि पहली बार ऐसा तब हुआ जब उन्हें अस्पताल से घर लाया गया था और हमें खुद ही उन्हें होश में लाना पड़ा. उसकी आंतें ठीक से काम नहीं करतीं, इसलिए उसे एक विशेष प्रकार का भोजन सेंट्रल लाइन और स्टोमा के जरिए दिया जाता है. वो चल सकता हैं, लेकिन थोड़ी ही दूर क्योंकि वे जल्दी थक जाता है. इसलिए वो व्हीलचेयर का इस्तेमाल करता है.
शेवोन ने कहा कि अगर हम बाहर जाते हैं तो हमें ऑक्सीजन और एक इमरजेंसी बैग साथ ले जाना पड़ता है. उनके वायुमार्ग को साफ करने के लिए नेबुलाइज़र का इस्तेमाल किया जाता है. माइकी की हालत सबके लिए एक रहस्य बनी हुई है, इसलिए परिवार ने पूरी दुनिया में इसके जवाब खोजने की कोशिश की है. शेवोन ने कहा कि पिछले कई सालों में उसके सैकड़ों टेस्ट और जांच सर्जरी हुई हैं, लेकिन डॉक्टर अभी भी नहीं जानते कि उसे कौन सा सिंड्रोम है.
अब तक बीमारी का नहीं चल पाया पता
वह फिलहाल बोस्टन में चल रहे एक वैश्विक शोध - 100,000 जीन अध्ययन - का हिस्सा है. उन्होंने माइकी और हमारा खून लेकर चूहों और अन्य जीवों में डाला है ताकि देखा जा सके कि क्या होता है. वे कहते हैं कि उसे एक सिंड्रोम है, लेकिन उन्हें नहीं पता कि वह क्या है. उनका कहना है कि पता चलने पर शायद उसका नाम उसके नाम पर रख दिया जाएगा.
हम इस स्थिति में पहुंच चुके हैं कि अगर बीमारी का पता चल भी जाए, तो भी इसका कोई इलाज नहीं है और इससे माइकी की देखभाल के हमारे तरीके में कोई बदलाव नहीं आएगा. हम बस यही चाहते हैं कि उसे अच्छी से अच्छी जिंदगी मिले.
24 घंटे करनी होती है बच्चे की निगरानी
माइकी की हालत इतनी गंभीर है कि सोते समय भी चौबीसों घंटे उसकी निगरानी करनी पड़ती है. इसका मतलब है कि दंपति को कई बेचैन रातें गुजारनी पड़ती हैं, जो हफ्ते में तीन रातें बारी-बारी से उसकी देखभाल करते हैं. बाकी दिनों में विशेष रूप से प्रशिक्षित नर्सें उसकी देखभाल करती हैं.
माइकी बोल नहीं सकता, लेकिन वह मुंह से अजीब सी आवाजें निकालकर, मैकाटन सांकेतिक भाषा (जो संकेतों, प्रतीकों और भाषा का उपयोग करके सीखने या संवाद करने में कठिनाई वाले लोगों को खुद को व्यक्त करने में मदद करता है) का इस्तेमाल करके और मेटा क्वेस्ट 3 वीआर हेडसेट के माध्यम से संवाद करता है. वह एक प्रतिभाशाली डार्ट्स खिलाड़ी भी है और अपनी कठिनाइयों के बावजूद इस वीआर गेम्स के जूनियर लीग में प्रतिस्पर्धा कर रहा है.
aajtak.in