भारत के पड़ोसी नेपाल की स्थिति किसी से छिपी नहीं है. भले ही देश की साक्षरता दर 71.15% हो लेकिन बावजूद इसके मुल्क बेरोजगारी की मार झेल रहा है. रोजगार के लिए लोग पलायान करने और तमाम तरह की चुनौतियों का सामना करने को मजबूर हैं. नेपाल के युवाओं की स्थिति क्या है इसे हम स्काई न्यूज़ की उस खबर से समझ सकते हैं जिसमें बताया गया है कि रूस-यूक्रेन युद्ध में रूस की तरफ से भाड़े पर लड़ने के लिए रूस गए नेपाली लड़ाके वहां जानवरों से भी बदतर ज़िन्दगी जी रहे हैं.
जी हां सही सुन रहे हैं आप. रूस ने यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में लड़ने के लिए लगभग 2,000 नेपाली पुरुषों की भर्ती की है. गरीबी और बेरोजगारी से त्रस्त होकर यूक्रेन के खिलाफ लड़ने के लिए रूस गए नेपाली अब वापस अपने देश लौटने के लिए बेताब हैं.
35 वर्षीय गणेश का जिक्र करते हुए स्काई न्यूज़ ने बताया कि, डोनेट्स्क में यूक्रेन से साढ़े चार महीने तक लड़ते रहने के बाद जिंदा सलामत वापस अपने घर पहुंचा गणेश भले ही भाग्यशाली हो. मगर बाकी लोगों की स्थिति वैसी नहीं है. आज भी तमाम नेपाली युवक रूस में फंसे हैं. गणेश ने कहा है कि रूसी नेपालियों के साथ कुत्तों जैसा व्यवहार कर रहे हैं.
रूस में बिताए पलों को याद करते हुए गणेश ने कहा कि वह बहुत भयावह था. वहां लड़ाई आदमी से आदमी की नहीं थी. न ही गोली का जवाब गोली से दिया जा रहा था हम पर ड्रोन से हमला किया गया था जो कि बहुत ही डरावना था.
भारतीय सेना में 10 साल तक सेवा देने वाले गणेश ने ये भी बताया कि सैनिकों को दो सप्ताह के लिए मॉस्को के बाहर एक सैन्य अकादमी, अवनगार्ड प्रशिक्षण केंद्र में ले जाया गया था. भले ही गणेश के पास युद्ध का अनुभव रहा हो लेकिन बाकी लोगों अनुभवहीन थे. उन्होंने कुछ लोगों का वर्णन करते हुए कहा कि उन्होंने पहले कभी बंदूक नहीं पकड़ी थी.
बताया ये भी जा रहा है कि प्रशिक्षण केंद्र पहुंचने से पहले तक नेपाली लड़ाकों के लिए सब ठीक था. लेकिन जैसे ही उन लोगों का प्रशिक्षण पूरा हुआ रूस की सेना का उनके प्रति पूरा नजरिया बदल गया. और उन्हें युद्ध के मैदान में झोंक दिया गया. गणेश ने बताया कि, 'प्रशिक्षण के पहले दो सप्ताह तक जीवन अच्छा था. लेकिन एक बार जब हमें यूक्रेन भेजा गया, सब कुछ बदल गया. वहां हमारे पास पर्याप्त भोजन नहीं था साथ ही हमें रूसियों द्वारा मारा पीटा गया.
गणेश के हवाले से स्काई न्यूज़ ने ये भी कहा ही कि रूस के लिए नेपाली सैनिक सिर्फ चारा थे जिन्हें युद्ध के दौरान अग्रिम पंक्ति में खड़ा किया जाता था. जबकि रूसी सैनिक पीछे रहते थे. गणेश ने अपने कई साथियों को अपनी आंखों के सामने मरते और घायल होते हुए देखा. उसने ये भी बताया कि उस स्थिति में रूसी सैनिक उनकी कोई मदद नहीं करते थे.
बताते चलें कि नौकरी के लिहाज से नेपाल के हालात बहुत खराब हैं. युवा बेरोजगार हैं इसलिए वो उन एजेंट्स के जाल में आसानी से फंस जाते हैं जो उन्हें विदेश में मोटे वेतन की नौकरी दिलाने का प्रलोभन देते हैं.
मामले में रोचक तथ्य ये भी है कि कई नेपालियों ने भी इस बात का खुलासा किया है कि उन्हें रूस जाने के लिए स्टूडेंट या टूरिस्ट वीजा दिया जा रहा है. नेपाली सरकार भी इस पलायन को देखकर चिंतित है और ऐसे मामलों पर कार्रवाई कर रही है.
गौरतलब है कि नेपालियों के लिए रूस सहित विदेशी सेनाओं के लिए लड़ना पहले से ही अवैध था. लेकिन इस साल जनवरी में, सरकार ने अपने नागरिकों को काम के लिए रूस या यूक्रेन की यात्रा करने से प्रतिबंधित कर दिया और मॉस्को से भर्ती किए गए सभी नेपालियों को वापस भेजने के लिए कहा था.
चंद पैसों और एक बेहतर ज़िन्दगी जीने की आस लेकर लड़ने के लिए रूस गया गणेश तमाम यातनाएं झेलने के बाद वापस आ गया है. मगर अब भी रूस में कई ऐसे नेपाली लड़ाके फंसे हैं जो वापस अपने मुल्क लौटना तो चाहते हैं लेकिन वो इतनी बुरी तरह फंस गए हैं कि उनका अपने देश लौटना लगभग नामुमकिन है.
मामले में दुर्भाग्यपूर्ण ये है कि रूस के नाम पर ये गोली खाने को मजबूर है और वहां इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है.
बिलाल एम जाफ़री