यूरोप के तीन शहरों के नीचे जमीन में ज्वालामुखी धधक रहा है. कोरोना वायरस से जूझ रहे यूरोपीय देशों के लिए यह एक खतरनाक खबर है. जर्मनी के इन तीन शहरों के नीचे ज्वालामुखी की सक्रियता बहुत ज्यादा बढ़ गई है. जमीने के नीचे लावा का बहाव बहुत तेज हो गया है. ये हालात पूरे पश्चिमी यूरोप में है, लेकिन सबसे ज्यादा खतरा जर्मनी के तीन शहरों को है.
पूरे यूरोप से कलेक्ट किए गए डेटा के अनुसार यूरोप में धरती के नीचे ज्वालामुखीय सक्रियता (Volcanic Eruptions) बहुत ज्यादा बढ़ गई है. इसकी रिपोर्ट जियोफिजिकल जर्नल इंटरनेशनल में प्रकाशित हुई है. यूरोप के उत्तर-पश्चिमी हिस्से के नीचे जमीन में काफी ज्यादा हलचल देखी गई है.
जमीन के नीचे लावा के बहाव में आई तेजी की वजह से पश्चिमी-मध्य जर्मनी के तीन शहर खतरे में आ गए हैं. ये तीनों शहर जर्मनी की द आइफेल रीजन (The Eifel Region) में आते हैं. इन शहरों के नाम हैं- आशेन (Aachen), ट्रायर (Trier) और कोबलेंज (Koblenz).
द आइफेल रीजन हजारों सालों से ज्वालामुखीय गतिविधियों का केंद्र रहा है. आपको इस इलाके में कई गोलाकार छोटी-बड़ी झीलें देखने को मिलेंगी. जो हजारों साल पहले ज्वालामुखीय गतिविधियों से बनी थीं. इन्हें जर्मनी में मार्स (Maars) कहते हैं.
इन्हीं ज्वालामुखीय गतिविधियों की वजह से द आइफेल रीजन में सबसे बड़ी झील लाशेर सी (Laacher See) बनी थी. कहते हैं कि यहां 13 हजार साल पहले एक बहुत बड़ा विस्फोट हुआ था, जिसकी वजह से ये झील बनी.
इस स्टडी को करने वाले शोधकर्ता प्रोफेसर कॉर्न क्रीमर ने कहा कि यह विस्फोट इतना ताकतवर था जितना 1991 में ज्वालामुखी माउंट पिनाटुबो का विस्फोट था.
प्रोफेसर कॉर्न क्रीमर ने कहा कि दुनिया भर के ज्यादातर वैज्ञानिक ये मानते हैं कि द आइफेल रीजन में ज्वालमुखीय गतिविधियां खत्म हो गई हैं. लेकिन अगर सभी बिंदुओं पर गौर फरमाएं तो पता चलता है कि उत्तर-पश्चिम यूरोप की जमीन के नीचे कुछ बहुत भयावह हो रहा है.
प्रो. क्रीमर ने बताया कि द आइफेल रीजन में आने वाले देश लग्जमबर्ग, पूर्वी बेल्जियम, नीदरलैंड्स के दक्षिणी हिस्से लिमबर्ग की जमीन ऊपर उठ रही है. आइफेल रीजन में जमीन में हो रहा बदलाव इतना तेज है कि यह आसानी से पता चल रहा है.
प्रोफेसर क्रीमर कहते हैं कि हमारी स्टडी इस बात को प्रमाणित करती है कि लाशेर सी और आइफेल रीजन की जमीन के नीचे मैग्मा (उबलता हुआ लावा) लगातार बह रहा है. यानी आइफेल रीजन आज भी सक्रिय ज्वालमुखी के ऊपर बैठा है.
जमीन के नीचे लगातार बह रहे लावा की वजह से सिर्फ ज्वालामुखी ही नहीं फटेगा, बल्कि इस इलाके में भूकंप भी आ सकते हैं. या धरती को कई बार झटके लग सकते हैं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि ज्वालामुखी का फटना या भूकंप का आना निकट भविष्य में होगा. लेकिन हमें सतर्क रहने की जरूरत है.
आइफेल रीजन 5300 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. इसकी एक तरफ से लंबाई 100 किलोमीटर है. इस क्षेत्र में जर्मनी, बेल्जियम और लग्जमबर्ग तीन देश पूरी तरह से आते हैं. इसके अलावा कुछ अन्य यूरोपीय देशों के हिस्से जुड़ते हैं. (सभी फोटोःगेटी/मार्टिन शिल्डेन/जर्मनी टूरिज्म)