कल्पना कीजिए कि आप जंगल में सैर कर रहे हैं और तभी आपको पता चलता है कि यहां के पेड़ चलते भी हैं. आपने सही सुना, एक ऐसा ही पेड़ है, जो कि पर्यटकों के बीच फेसम है. इसे प्यार से लोग 'चलने वाला पेड़' या 'वॉकिंग पाम' कहते हैं. यह पेड़ मध्य और दक्षिण अमेरिका के घने वनों में पाया जाता है, खासकर इक्वाडोर, कोस्टा रिका, कोलंबिया और ब्राजील जैसे देशों में. इस पेड़ का असली नाम है सोक्रेटिया एक्सोरिजा (Socratea Exorrhiza), लेकिन इसकी पहचान इसकी चलने की कहानी से है.
गाइडबुक और पुरानी कहानियों में यह दावा किया जाता रहा है कि यह ताड़ का पेड़ धीरे-धीरे बारिश में अपनी जगह बदलता है. कहा जाता है कि यह अच्छी धूप या ज्यादा मजबूत मिट्टी की तलाश में साल भर में कई मीटर तक चल लेता है. अक्सर कहा जाता है कि यह एक दिन में कुछ सेंटीमीटर या एक साल में कई मीटर की दूरी तय कर लेता है.
अब सवाल यह उठता है कि क्या सच में कोई पेड़ अपने 'पैरों' पर चलकर जंगल में घूम सकता है? इसका जवाब सीधा 'हां' या 'ना' में नहीं है, बल्कि यह कहानी एक मिथक और विज्ञान का दिलचस्प मेल है.
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चलने वाली कहानी में क्या सच है और क्या झूठ?
यह चलने वाली कहानी इस ताड़ के पेड़ की एक बहुत ही खास चीज से शुरू होती है, वो खास चीज कोई और नहीं इसकी जड़ें हैं. दरअसल ज्यादातर पेड़ों की जड़ें जमीन के अंदर मोटी और गहरी होती हैं, लेकिन सोक्रेटिया ताड़ की जड़ें थोड़ी अलग होती हैं. इसकी जड़ें जमीन से कुछ फीट ऊपर से शुरू होती हैं और खंभों की तरह नीचे मिट्टी में उतरती हैं.
दूर से देखने पर ऐसा लगता है जैसे पेड़ किसी डंडे या खंभे पर टिका हुआ है. वर्षावन की मिट्टी अक्सर गीली, नरम और अस्थिर होती है. सैद्धांतिक रूप से, जब मिट्टी खिसकती है या खराब होती है, तो यह खंभे वाली जड़ें पेड़ को सीधे खड़े रहने और परिस्थितियों के हिसाब से खुद को संभालने में मदद करती हैं.
यह पेड़ एक तरफ नई और मजबूत जड़ें उगाता है, ताकि उसे बेहतर धूप या स्थिर जमीन मिल सके और इस बीच पुरानी जड़ों को सड़ा देता है. इस पूरी प्रक्रिया में, पेड़ का तना धीरे से उस नई जड़ की तरफ 'झुक' जाता है. शुरुआती लोगों ने जब इस अनोखी हलचल को देखा, तो उन्हें लगा कि पेड़ अपनी जगह बदलकर चल रहा है.
लेकिन वैज्ञानिक सच क्या है? वैज्ञानिकों ने कई रिसर्च की हैं, पर उन्हें ऐसा कोई सबूत नहीं मिला जिससे यह साबित हो सके कि पेड़ वाकई में पूरी तरह से अपनी जड़ें उखाड़कर किसी जानवर की तरह आगे बढ़ता है. पेड़ वहीं टिका रहता है, जहां वह पहली बार उगा था. जड़ों की इस बदलाव वाली आदत से बस गति का भ्रम पैदा होता है. साफ शब्दों में कहें तो, 'चलने वाला पेड़' एक मिथक है, जो पेड़ की जड़ों की अनोखी बनावट की वजह से शुरू हुआ है. यह एक शानदार बदलाव है जिससे यह खुद को संभाल पाता है, लेकिन असली गति नहीं है.
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यह मिथक क्यों है इतना खास?
यह मिथक भले ही सच न हो, लेकिन इस कहानी के पीछे छिपा असली सच और भी ज्यादा रोचक है. इस किंवदंती के जिंदा रहने के कुछ कारण हैं. पहला, तने से निकली जड़ें दूर से किसी पैर की तरह दिखती हैं. दूसरा, जड़ों का मरना, नई जड़ों का उगना और मिट्टी का खिसकना. इन सब वजहों से लंबे समय में पेड़ की स्थिति थोड़ी बदल सकती है, जिससे 'चलने' का भ्रम पैदा होता है. तीसरा, चलते-फिरते पेड़ों की कहानियां रहस्य और जादू के प्रति हमारे गहरे लगाव को जगाती हैं, इसलिए ये तेजी से फैल जाती हैं.
असल में, यह सोक्रेटिया यह दिखाता है कि जीवन मुश्किल परिस्थितियों में कैसे ढल जाता है. इसकी लंबी जड़ें इसे नरम और गीली मिट्टी में गिरने से बचाती हैं, बिना गहरी और भारी जड़ों के तेज़ी से बढ़ने में मदद करती हैं और घने जंगल में भी अधिक से अधिक धूप लेने में सक्षम बनाती हैं. जो कि सिखाता है कि प्रकृति में हर चीज का अपना एक अनोखा तरीका होता है. भले ही यह पेड़ चलता न हो, लेकिन जिंदा रहने और ढलने की इसकी रणनीति किसी चमत्कार से कम नहीं है. यह मिथक वास्तव में परिस्थितियों के हिसाब से खुद को ढालने की शक्ति को उजागर करता है.
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