टॉल्स्टॉय, पुश्किन और लेनिन... पुतिन को दिल्ली में मिलेंगी अपने देश की ये निशानियां

दिल्ली में भारत और रूस के पुराने सांस्कृतिक रिश्तों की झलक साफ दिखाई देती है. शहर की कुछ सड़कें, पार्क और सांस्कृतिक केंद्र आज भी सोवियत दौर की यादें संभाले हुए हैं. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे के दौरान, उन्हें दिल्ली की कई प्रमुख जगहों पर अपने देश से जुड़ी निशानियां देखने को मिल सकती हैं.

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भारत में रूस की सबसे बड़ी निशानी (Photo: Pexels) भारत में रूस की सबसे बड़ी निशानी (Photo: Pexels)

aajtak.in

  • नई दिल्ली ,
  • 05 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 12:40 PM IST

दिल्ली सिर्फ राजनीति और कूटनीति की राजधानी नहीं, यहां दुनिया के कई देशों की संस्कृतियां भी बसती हैं. रूस उनमें से एक है. सोवियत दौर से लेकर आज तक, दिल्ली की कई सड़कें, पार्क और मूर्तियां इस रिश्ते को जिंदा रखे हुए हैं. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन एक बार फिर भारत दौरे पर हैं. दिल्ली की गलियों में उन्हें अपने देश की कई यादें मिल जाएंगी. आइए, जानते हैं कि दिल्ली में रूस का कनेक्शन कहां-कहां देखने को मिलता है.

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साहित्य के दिग्गजों के नाम पर सड़कें और प्रतिमाएं

दिल्ली का दिल कहे जाने वाले इलाके में रूसी साहित्य की मजबूत छाप है. राजधानी में एक मशहूर सड़क 'टॉल्स्टॉय मार्ग' के नाम से है. यह सड़क बाराखंभा रोड से लेकर संसद मार्ग तक जाती है और इसका नाम 'वॉर एंड पीस' जैसे कालजयी उपन्यास लिखने वाले लियो टॉल्स्टॉय के नाम पर रखा गया है.

टॉल्स्टॉय मार्ग से कुछ ही दूरी पर मंडी हाउस के गोल चक्कर पर, रवींद्र भवन के ठीक आगे, आधुनिक रूसी साहित्य के जनक अलेक्जेंडर पुश्किन की प्रतिमा लगी है. पुश्किन की यह प्रतिमा 1988 में तब स्थापित की गई थी, जब तत्कालीन राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव भारत दौरे पर थे. इसके अलावा, मंडी हाउस से सटा हुआ फिरोजशाह रोड पर रूसी सांस्कृतिक केंद्र भी मौजूद है, जो दोनों देशों के सांस्कृतिक रिश्ते को जिंदा रखता है.

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चाणक्यपुरी: जहां खड़ा है लेनिन का इतिहास

दिल्ली में रूस की सबसे बड़ी निशानी चाणक्यपुरी इलाके में नजर आती है. यहां नेहरू पार्क में रूसी क्रांति के जनक व्लादिमीर लेनिन की एक मूर्ति स्थापित है. यह मूर्ति 1987 में रूस के तत्कालीन प्रधानमंत्री निकोलाई रियाजकोव की मौजूदगी में लगाई गई थी. यहीं पास में ही एक सड़क का नाम रूस के पूर्व राजदूत अलेक्जेंडर एम. कदाकिन के नाम पर रखा गया है.

हालांकि कदाकिन  2017 में गुजर गए थे. उन्हें हमेशा याद रखने के लिए ही 'ऑफिसर्स मेस रोड' का नाम बदलकर 'अलेक्जेंडर एम. कदाकिन रोड' कर दिया गया.

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राजघाट और पुतिन का पौधा

व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे का एक भावनात्मक पहलू राजघाट से भी जुड़ा है. इस बार भी पुतिन एक बार फिर महात्मा गांधी की समाधि पर श्रद्धांजलि देने जाएंगे. पुतिन 2001 में जब पहली बार भारत आए थे, तो उन्होंने राजघाट पर चंपा का पौधा लगाया था. हालांकि, अफसोस की बात यह है कि वह पौधा फल-फूल नहीं सका.  वे 2015 में भी राजघाट गए थे. यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस बार भी पुतिन दोनों देशों के रिश्तों की निशानी के तौर पर राजघाट पर कोई नया पौधा लगाते हैं या नहीं.

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