जब भी हम मध्य प्रदेश के पर्यटन की बात करते हैं, तो दिमाग में सबसे पहले खजुराहो के शानदार मंदिरों का ख्याल आता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि खजुराहो की अंतरराष्ट्रीय चमक-धमक से थोड़ी ही दूर पहाड़ियों और घने जंगलों के बीच एक ऐसा महल छिपा है, जो साढ़े तीन सौ सालों से बुंदेला राजाओं की शान की गवाही दे रहा है? हम बात कर रहे हैं 'द ओबेरॉय राजगढ़ पैलेस' की. यह सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि उस दौर की याद है जब बुंदेलखंड की इन पहाड़ियों से राजपूत राजा अपना शासन चलाया करते थे. आज भी इस महल की दीवारें और पुराने तालाब हमें उस सुनहरे दौर में ले जाते हैं, जो इतिहास की बड़ी किताबों में भले ही जगह न बना पाया हो, लेकिन अपनी मिट्टी में आज भी पूरी तरह जिंदा है.
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इतिहास के पन्नों में राजगढ़ की नींव
राजगढ़ की कहानी सत्रहवीं शताब्दी के आखिरी सालों से शुरू होती है. यह वह समय था, जब भारत में मुगल साम्राज्य अपनी जड़ें फैला रहा था और क्षेत्रीय राजपूत राजा अपनी ताकत और पहचान बचाने की कोशिश में जुटे थे. जानकारों और क्षेत्रीय कहानियों की मानें तो महाराजा हिंदूपत सिंह बुंदेला ने इस महल की नींव रखी थी. कहा जाता है कि महाराजा हिंदूपत एक दूरदर्शी राजा थे, जो जानते थे कि अगर अपना वजूद बचाना है, तो पहाड़ों से बेहतर कोई जगह नहीं हो सकती. उन्होंने राजगढ़ को न केवल रहने के लिए बनवाया, बल्कि इसे अपनी सत्ता और मजबूती के प्रतीक के तौर पर पेश किया. पहाड़ी की ऊंचाई पर बना यह महल राजा के उस आत्मविश्वास को दिखाता था, जिससे वे दूर-दूर तक फैले अपने साम्राज्य पर नजर रख सकते थे.
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पहाड़ों की गोद में रणनीतिक बनावट
राजगढ़ महल का स्थान चुनते समय बहुत दिमाग लगाया गया था. यह मणियागढ़ की उन पथरीली पहाड़ियों पर बसा है, जो विंध्य पर्वत श्रृंखला का हिस्सा हैं. राजाओं को पता था कि यहां के टेढ़े-मेढ़े रास्ते और घने जंगल दुश्मनों को रोकने में काफी मददगार साबित होंगे. इस पहाड़ी से नीचे के मैदानों का जो नजारा दिखता है, वह केवल सुंदरता के लिए नहीं था, बल्कि सुरक्षा के नजरिए से भी जरूरी था. यहां से दुश्मन की हर हरकत पर नजर रखी जा सकती थी. प्रकृति ने भी इस जगह का पूरा साथ दिया, चारों तरफ फैले साल और पलाश के जंगलों ने इसे एक प्राकृतिक सुरक्षा घेरा दे दिया था, जिससे यह किसी अभेद्य किले जैसा महसूस होता था.
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पानी की बचत और अनोखा स्थापत्य
बुंदेलखंड हमेशा से ही पानी की किल्लत वाला क्षेत्र रहा है, लेकिन राजगढ़ पैलेस की योजना इतनी सटीक थी कि यहां पानी की कभी कमी नहीं हुई. महल के अंदर आज भी एक पुराना तालाब मौजूद है जो बारिश के पानी को सहेजने के लिए बनाया गया था. यह दिखाता है कि उस समय के राजा मानसून और प्रकृति के चक्र को कितनी अच्छी तरह समझते थे. वहीं, अगर इसकी बनावट की बात करें, तो यह पत्थर का एक मजबूत ढांचा है. इसमें ऊंचे छज्जे, गुंबददार कमरे और बड़े-बड़े आंगन हैं, जो पहाड़ी की बनावट के हिसाब से बनाए गए हैं. यह कोई साधारण फौजी किला नहीं था, बल्कि एक ऐसा महल था जहां राजा अपना दरबार भी लगाते थे और सुकून से रहते भी थे.
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ओरछा जैसी चमक नहीं पर अपनी अलग पहचान
अक्सर लोग बुंदेलखंड के महलों की तुलना ओरछा की भव्यता से करते हैं, लेकिन राजगढ़ अपनी सादगी में ही खास है. ओरछा जहां एक विशाल साम्राज्य की राजधानी था, वहीं राजगढ़ एक क्षेत्रीय केंद्र के रूप में विकसित हुआ. शायद यही वजह है कि अंग्रेजों के समय के दस्तावेजों में इसका ज्यादा जिक्र नहीं मिलता, लेकिन इसकी यही गुमनामी इसके लिए वरदान साबित हुई. जहां बड़े-बड़े किले समय के साथ खंडहरों में तब्दील हो गए या ढहा दिए गए, राजगढ़ अपनी सादगी और मजबूती की वजह से पीढ़ियों तक रहने लायक बना रहा. यह एक जीवंत जगह बनी रही, जिसने स्थानीय शासन और लोगों के बीच अपनी अहमियत कभी कम नहीं होने दी.
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विरासत और प्रकृति का सुंदर मेल
आज के समय में राजगढ़ का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह इतिहास और प्रकृति के बीच की एक महत्वपूर्ण कड़ी है. एक तरफ खजुराहो के मंदिर हैं जो 10वीं-11वीं शताब्दी की कला दिखाते हैं और दूसरी तरफ राजगढ़ है जो उसके सदियों बाद की राजनीतिक ताकत का गवाह है. इसके पास ही पन्ना नेशनल पार्क के जंगल शुरू हो जाते हैं, जो कभी राजाओं के शिकारगाह हुआ करते थे. आज यह महल एक शांत प्रहरी की तरह खड़ा है. जो बताता है कि ऐतिहासिक धरोहरें सिर्फ पत्थर और सीमेंट से नहीं बनतीं, बल्कि वे भूगोल, परंपरा और समय के साथ तालमेल बिठाकर सदियों तक सीना तानकर खड़ी रहती हैं.
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