कल तक आंदोलन के जो मैदान आजाद थे, आज वहां कड़ा पहरा है. सिंघु बॉर्डर से लेकर टिकरी बॉर्डर तक सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम है. आंदोलन के रास्ते में प्रशासन ने कीलों की दीवारें उठा दी हैं. कांक्रीट से आंदोलन की किलेबंदी कर दी गई है. 26 जनवरी की घटना के बाद हर आंदोलनकारी को एक ही तराजू में तौलने का खेल शुरु हो चुका है. ऐसे में समाधान की राह फिलहाल दिखाई नहीं दे रही है. पीएम कह चुके हैं कि वो किसानों से केवल एक कॉल की दूरी पर हैं. लेकिन ये कॉल ना अभी तक आई है ना उधर से की गई है. ऐसे में जब 11 राउंड की बात फेल हो चुकी है. तब उम्मीदें प्रधानमंत्री पर टिक गई हैं. पूछा जा रहा है कि क्या अब इस मसले के हल की चाबी केवल पीएम के पास है?