बिना कोडिंग जाने ही ऐप बना कर पैसे कमा सकते हैं आप, यहां जानें AI से ऐप बनाने का पूरा प्रोसेस

Vibe Coding के बारे में शायद अब तक आपने सुन रखा होगा. अगर नहीं सुना तो बता दें कि ये एक प्रोसेस है जिससे बिना प्रोग्रामिंग लैंग्वेज की जानकारी के आप एक वर्किंग ऐप तैयार कर सकते हैं और पैस भी कमा सकते हैं.

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ऐप बनाने के लिए अब कोडिंग जानना जरूरी नहीं (Photo: ITG) ऐप बनाने के लिए अब कोडिंग जानना जरूरी नहीं (Photo: ITG)

मुन्ज़िर अहमद

  • नई दिल्ली,
  • 03 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 2:45 PM IST

नोएडा की एक छोटी सी गली में रहने वाले 22 साल के रोहन का एक सपना था. एक ऐसा ऐप बनाने का सपना जो उसके शहर के छोटे-छोटे स्ट्रीट फूड वेंडर्स को ऑनलाइन ला सके. आइडिया शानदार था, लेकिन जब उसने इस बारे में पता किया तो उसके होश उड़ गए.

ऐप डेवलपर्स लाखों रुपये मांग रहे थे और कोडिंग सीखने में सालों लग जाते. रोहन जैसे लाखों युवा हर दिन अपने सपने को सिर्फ इसलिए दफन कर देते हैं क्योंकि उनके पास इंजीनियरिंग की डिग्री या लाखों का बजट नहीं होता. लेकिन अब, टेक्नोलॉजी की दुनिया में एक ऐसी सुनामी आई है जो इस पूरी तस्वीर को हमेशा के लिए बदलने वाली है.

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पहले की तरह मुश्किल नहीं ऐप डेवेलपमेंट

यह सुनामी है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और 'नो-कोड' (No-Code) डेवेलपमेंट की. यह कोई मामूली अपडेट नहीं, यह एक क्रांति की तरह है. सोचिए, अब आपको अपना ऐप बनाने के लिए Java, Python, या Swift जैसी डरावनी लगने वाली प्रोग्रामिंग लैंग्वेज के जाल में फंसने की कोई जरूरत नहीं है. AI आपका पर्सनल इंजीनियर, आपका डिजाइनर और आपका डेवेलपर, सब कुछ बनने के लिए तैयार है. बस आपको थोड़ा सब्र चाहिए और बढ़िया AI टूल्स की बेसिक सब्सक्रिप्शन.

इस कड़ी में हम आपको नो कोड और लो कोड ऐप डेवेलपमेंट के बारे में बता रहे हैं. अगली कड़ी में फुल स्केल ऐप बनाने के ट्रेडिशनल तरीकों के बारे में बताएंगे. क्योंकि ट्रेडिशनल तरीकों में आम तौर पर Android Studio, Xcode और Flutter जैसे टूल्स का इस्तेमाल होता है. हालांकि Cursor और Cloude Code जैसे AI कोड एडिटर की वजह से आप बिना प्रोग्रामिंग लैंग्वेज जाने ट्रेडिशनल तरीके से भी ऐप बना सकते हैं. 

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ट्रेडिशनल ऐप डेवेलपमेंट की सबसे बड़ी खासियत ये है कि इनके जरिए बनाए गए ऐप स्केलेबल होते हैं यानी ऐप पर करोड़ों यूजर्स आ रहे हैं तो भी कोई मुश्किल नहीं होती. लेकिन आज बता करेंगे लो कोड और नो कोड की जिसे वाइब कोडिंग भी कहा जाता है. 

No Code और Low Code

आइए, इस जादुई दुनिया की हर परत को खोलते हैं और समझते हैं कि कैसे आप भी एक ऐप डेवलपर बन सकते हैं. आखिर क्या है ये 'नो-कोड' की जादुई दुनिया?

कुछ लोग इसे 'Vibe Coding' जैसा नया नाम दे रहे हैं, लेकिन इंडस्ट्री में इसे नो-कोड (No-Code) और लो-कोड (Low-Code) के नाम से जाना जाता है.

नो-कोड: इसका मतलब है - 'जीरो' कोडिंग. एक भी लाइन कोड लिखे बिना, सिर्फ माउस से ड्रैग-एंड-ड्रॉप करके (तस्वीरों को खींचकर सही जगह रखने जैसा) पूरा ऐप बना लेना.

लो-कोड: इसमें 90% काम नो-कोड जैसा ही होता है, लेकिन कुछ खास फीचर्स के लिए आप छोटी-मोटी कोडिंग कर सकते हैं. हालांकि थोड़ी कोडिंग आपको AI ही सिखा देगा. इसे समझने के लिए किसी भी ऐप की बनावट को जानिए.

हर ऐप के दो मुख्य हिस्से होते हैं

फ्रंट-एंड (Front-end): यह ऐप का चेहरा है, यानी वो सब कुछ जो यूजर को अपनी मोबाइल स्क्रीन पर दिखता है. सुंदर बटन, आकर्षक तस्वीरें, मेन्यू, टेक्स्ट का स्टाइल - यह सब फ्रंट-एंड का हिस्सा है. इसका मकसद यूजर को एक शानदार एक्सपीरियंस (User Experience - UX) देना है. बेहतर, क्लीन और स्टाइलिश फ्रंट एंड रखना जरूरी है.

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बैक-एंड (Backend): यह ऐप का दिमाग और उसकी आत्मा है. यह पर्दे के पीछे का वो पावरफुल इंजन है जिसे यूजर कभी नहीं देखता. जब आप Instagram पर साइन-अप करते हैं, तो आपका नाम, ईमेल, पासवर्ड इसी बैकएंड में सिक्योर स्टोर होता है. जब आप कोई फोटो अपलोड करते हैं, तो वह इसी में जाकर सेव होती है.

यह पूरी तरह से लॉजिक, डेटाबेस और सर्वर का खेल है. पहले इन दोनों को बनाने और फिर इन्हें आपस में जोड़ने के लिए इंजीनियरों की एक पूरी फौज लगती थी. लेकिन अब AI ने इस पूरे सिस्टम को ऑटोमेट कर दिया है. यानी आप खुद फ्रंट एंड को बैकएंड से कनेक्ट कर सकते हैं. 

AI से ऐप बनाने की पूरी 'मास्टरक्लास'

स्टेप-बाय-स्टेप गाइड: अगर आप अपना पहला ऐप बनाने का मन बना चुके हैं, तो बस इन स्टेप्स को फॉलो करते जाइए. यहां टूल्स के नाम भी हैं जिनमे से कोई भी टूल आप यूज कर सकते हैं. 

स्टेप 1: आइडिया और प्लानिंग (Idea and Planning) यह सबसे इंपॉर्टेंट स्टेप है. सिर्फ एक ऐप बनाना है ये सोचना काफी नहीं है. खुद से ये पूछें कि आ ऐप से क्या प्रॉब्लम सॉल्व करना चाहते हैं. 

प्रॉब्लम: ये ऐप लोगों की कौन सी प्रॉब्लम सॉल्व करेगा? (जैसे रोहन स्ट्रीट फूड वालों को ग्राहक दिलाना चाहता था).

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फीचर्स: इसमें क्या-क्या खास फंक्शन होंगे? (यूजर प्रोफाइल, मेन्यू लिस्ट, ऑनलाइन पेमेंट, रेटिंग सिस्टम, मैप्स).

कमाई का मॉडल: ऐप पैसे कैसे कमाएगा? (सब्सक्रिप्शन से, विज्ञापनों से, या हर ऑर्डर पर कमीशन से?).

इस प्लानिंग के लिए आप ChatGPT या Gemini जैसे AI की मदद ले सकते हैं. बस अपना आइडिया बताएं और वह आपको फीचर्स और कमाई के मॉडल पर सजेशन दे सकता है. आपको इसके लिए लंबे प्रॉम्प्ट लिखने होंगे. 

स्टेप 2: AI से करवाएं शानदार डिजाइनिंग (UI/UX Design). अगर डिज़ाइन खराब है, तो यूजर ऐप को तुरंत डिलीट कर देगा. लेकिन अब आपको किसी महंगे UI/UX डिजाइनर की जरूरत नहीं.

ऐप डिजाइन कैसे करें: Magicpatterns, Uizard या Figma के AI प्लगइन्स का यूज क सकते हैं. इन वेबसाइट्स पर जाकर आप सिर्फ कमांड दे सकते हैं, जैसे, 'एक मॉडर्न फिटनेस ट्रैकर ऐप के लिए डैशबोर्ड स्क्रीन बनाओ जिसमें स्टेप्स, कैलोरी और हार्ट रेट दिखे'. 

इंस्पायर्ड डिजाइन: अपने पसंदीदा ऐप का स्क्रीनशॉट अपलोड करके भी AI को वैसा ही डिज़ाइन बनाने को कह सकते हैं. AI आपके लिए कलर्स, बटन्स और लेआउट का पूरा खाका तैयार कर देगा.

स्टेप 3: FlutterFlow, Bubble, या Adalo जैसे नो-कोड प्लेटफॉर्म्स इन दिनों बेहतरीन रिजल्ट्स दे रहे हैं. ये प्लेटफॉर्म एक विजुअल कैनवास की तरह होते हैं. आपने AI से जो बटन, टेक्स्ट बॉक्स या इमेज बनवाई थी, उसे बस माउस से खींचकर ऐप की स्क्रीन पर रखना होता है. हर बटन के पीछे आप 'वर्कफ्लो' सेट कर सकते हैं. जैसे, 'सबमिट' बटन पर क्लिक करने पर 'यूजर का डेटा सेव करो' और 'उसे होम पेज पर भेजो'. यह सब बिना एक भी लाइन कोड लिखे होता है. 

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FlutterFlow मोबाइल ऐप्स (Android/iOS) के लिए बेहतरीन है, जबकि Bubble कॉम्प्लेक्स वेब ऐप्स और वेबसाइट्स के लिए एक पावरहाउस माना जाता है.

बैकएंड सेटअप कैसे करें?

स्टेप 4: ये प्रोसेस फ्रंट एंड के मुकाबले थोड़ा मुश्किल है, लेकिन आपके पास ChatGPT और Gemini जैसे सब्सक्रिप्शन है तो आसानी से कर सकते हैं. आपको खुद से सर्वर या डेटाबेस नहीं बनाना है. Firebase और Supabase के टूटोरियल्स आपकी हेल्प कर सकते हैं.

आप बैकएंड के लिए गूगल का Firebase यूज कर सकते हैं. Supabase भी एक ऑप्शन है. इन्हे 'Backend-as-a-Service' (BaaS) प्लेटफॉर्म भी कहा जाता है. यानी, ये आपको बना बनाया, पावरफुल बैकएंड किराए पर देते हैं. बेसिक ऐप और कम यूजर्स के लिए आपको सब्सक्रिप्शन लेने की जरूरत नहीं है.

यहां आपको यूजर ऑथेंटिकेशन (साइन-अप, लॉग-इन), रियलटाइम डेटाबेस (जैसे ही कोई डेटा बदलता है, ऐप में तुरंत अपडेट हो जाता है), और फाइल स्टोरेज (यूजर की प्रोफाइल फोटो या अन्य फाइलें रखने के लिए) - यह सब कुछ पहले से ही तैयार मिलता है. आपको बस अपने FlutterFlow या Bubble ऐप को कुछ ही क्लिक्स में इनसे कनेक्ट करना होता है.

स्टेप 5: ऐप तैयार होने के बाद इन्हें गूगल प्ले स्टोर या ऐपल ऐप स्टोर पर लिस्ट करना होता है. आप चाहें तो सिर्फ APK फाइल एक्सपोर्ट करके खुद के Android फोन पर टेस्ट भी कर सकते हैं.

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क्या टेस्ट करें: ऐप को अलग-अलग फोन पर चलाकर देखें. क्या कोई बटन काम नहीं कर रहा? क्या ऐप धीमा चल रहा है या क्रैश हो रहा है?

जब आप पूरी तरह से सैटिस्फाई हो जाएं, तो आप इसे Google Play Store और Apple App Store पर पब्लिश कर सकते हैं. ये ऑप्शन भी आपको Flutter पर मिल जाता है. 

खर्चा कितना आएगा?

ट्रेडिशनल तरीके से तुलना यह सबसे बड़ा सवाल है. ट्रेडिशनल तरीके से एक ठीक-ठाक ऐप बनवाने में 5 लाख से 25 लाख रुपये तक का खर्च आता है. वहीं, नो-कोड और AI की दुनिया में आपका खर्च काफी कम हो जाता है.

शुरुआती खर्च: ज्यादातर टूल्स का एक फ्री-टियर होता है, यानी आप बिना पैसे दिए सीखना और ऐप बनाना शुरू कर सकते हैं.

मंथली खर्च: जब आपका ऐप बड़ा होने लगे और यूजर्स आने लगें, तो आपको इन प्लेटफॉर्म्स का पेड प्लान लेना पड़ता है, जो आमतौर पर लगभग 2,000 से 12,000 रुपये प्रति माह होता है.

क्या हैं लिमिटेशन्स?

अगर आप बड़े पैमाने पर यूजर्स ऑनबोर्डिंग कराना चाहते हैं तो मुश्किल हो सकती है. इसके लिए आपको ट्रेडिशनल मेथड यूज करना पड़ सकता है और बैकएंड और फ्रंटएंड इन्जीनियर्स की जरूरत पड़ेगी. अगली कड़ी में बताएंगे कि AI यूज करते हुए ट्रेडिशनल मेथड यानी Flutter पर कैसे ऐप बना सकते हैं. 

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