गुमनामी की जिंदगी जी रहा 'वंडर किड' बुधिया

महज चार वर्ष की उम्र में बिना रुके 65 किलोमीटर की दौड़ लगाकर विश्व का सबसे युवा मैराथन धावक बनने की ख्याति हासिल करने वाला बुधिया सिंह आज गुमनामी के अंधेरे में जी रहा है.

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लव रघुवंशी / IANS

  • नई दिल्ली,
  • 09 अप्रैल 2016,
  • अपडेटेड 7:39 PM IST

महज चार वर्ष की उम्र में बिना रुके 65 किलोमीटर की दौड़ लगाकर विश्व का सबसे युवा मैराथन धावक बनने की ख्याति हासिल करने वाला बुधिया सिंह आज गुमनामी के अंधेरे में जी रहा है.

अपनी उपलब्धि से सभी को हैरान करने वाले 'वंडर किड' बुधिया पर बनी हिंदी फिल्म 'दुरंतो' को 63वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ बाल फिल्म पुरस्कार से नवाजा गया. बीते कुछ समय में बुधिया सिर्फ इस फिल्म से चर्चा में आया. उसकी असल पहचान जिस चीज के लिए है, वह उससे दूर होता जा रहा है.

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7 घंटे में पुरी से भुवनेश्वर पहुंचा था बुधिया
पुरी से भुवनेश्वर की 65 किलोमीटर की यात्रा को साल 2006 में सात घंटे और दो मिनट में पार कर सुर्खियां बटोरने वाले बुधिया ने 'लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स' में जगह बनाई थी, लेकिन आज वह ओडिशा की गलियों में गुमनाम जीवन जी रहा है.

फिल्म से बना था सितारा
'दुरंतो' फिल्म में दर्शाया गया कि कैसे महज चार साल का बच्चा एक सितारा बन गया और फिर अचानक गिर कर कहीं गुम हो गया. ओडिशा के एक गरीब परिवार में 2002 को जन्मे बुधिया को उसकी मां ने एक व्यक्ति को मात्र 800 रुपये में बेच दिया. इसके बाद जूड़ो-कराटे के एक कोच बिरांची दास ने उसे गोद ले लिया.

बिरांची ने बुधिया को मैराथन धावक बनाने के लिए उसकी प्रतिभा को प्रशिक्षण देकर तराशा. उनके ही मार्गदर्शन का नतीजा था कि चार वर्ष की उम्र में उसने इतना बड़ा करिश्मा कर दिखाया.

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ओलंपिक पद जीतने की इच्छा
बुधिया का मैराथन दौड़ के लिए किया जाने वाला प्रशिक्षण ओडिशा सरकार के बाल कल्याण विभाग को रास नहीं आया और उन्होंने इस पर प्रतिबंध लगाकर उसे भुवनेश्वर के खेल छात्रावास में भेज दिया. हालांकि, वह अब भी ओलंपिंक पदक जीतने का इच्छुक है.

बुधिया को चाहिए निजी कोच
बुधिया ने बताया, 'मुझे अपने सपने को पूरा करने के लिए एक निजी कोच की जरूरत है. मुझे मैराथन के लिए प्रशिक्षण मिल रहा था, लेकिन मुझे 100-200 मीटर की दौड़ के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है.' चंद्रशेखरपुर के डीएवी विद्यालय में आठवीं कक्षा के छात्र बुधिया ने कहा कि उसे अपनी पढ़ाई पूरी करनी है और इसलिए वह केवल एक घंटे अभ्यास करता है. उसकी मां सुकांती सिंह की भी राज्य सरकार के खेल प्रशासन के खिलाफ यहीं शिकायत है.

सुकांती ने बताया, 'मेरे बेटे के लिए खेल छात्रावास में पोषक भोजन नहीं है. वह मुझसे बार-बार शिकायत करता है कि उसे छात्रावास में नहीं रहना. अगर कोई मेरे बेटे को प्रशिक्षण दे, तो मैं इसे छात्रावास छोड़ने के लिए कहूंगी.'

अधिकारियों ने हालांकि, इन सभी आलोचनाओं का खंडन किया. खेल निदेशक ए.के. जेना ने आईएएनएस को बताया, 'हम छात्रावास में रहने वाले सभी बच्चों को पर्याप्त सुविधाएं दे रहे हैं, तो कोचिंग मुहैया कराने की कोई समस्या नहीं है.'

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बुधिया को मेहनत की जरूरत
जेना ने आगे कहा, 'वह अब भी मैराथन के लिए तय की गई उम्र की अवधि तक नहीं पहुंचा है. उसे जिला और राज्य स्तर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना होगा, जिसके लिए उसे अभ्यास जारी रखना होगा. उसे अब भी कड़ी मेहनत करने की जरूरत है.'

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