अपने कुछ निकटवर्ती पार्टी विधायकों से हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने 25 अगस्त को विधानसभा के सत्र के आखिरी दिन विधायक दल की बैठक के दौरान कहा, ''मैं पार्टी में ही रहूंगा और पार्टी में ही जान दे दूंगा लेकिन पार्टी में रहकर अपमान बर्दाश्त नहीं करूंगा.'' बाद में विपक्षी नेताओं के साथ मुलाकात के दौरान वीरभद्र सिंह ने भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल से कहा कि मुझे अगली विधानसभा में आने की उम्मीद नहीं है. उन्होंने धूमल को यहां तक कह दिया, ''मैं अगले चुनाव में नहीं होऊंगा लेकिन आपको मेरी ओर से ढेर सारी शुभकामनाएं.''
इससे एक दिन पहले 83 वर्षीय वीरभद्र सिंह ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी, दोनों को संयुक्त रूप से प्रेषित पत्र में जमकर अपनी भड़ास निकाली. बहुत स्पष्ट रूप से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सुम्कू और पहाड़ी कांग्रेस नेताओं के एक समूह के समर्थन के दावे के बल पर ही मुख्यमंत्री कहते हैं, ''हमारे ही कुछ लोग इस तरह की अफवाह फैला रहे हैं कि कांग्रेस के लिए हिमाचल में सत्ता में रह पाना मुश्किल होगा.''
मुख्यमंत्री के करीबी पूर्व मंत्री हर्ष महाजन ने कहा कि विधानसभा चुनाव जीतने (अक्तूबर-नवंबर में होने की संभावना) प्रबल वास्तविक संभावना है लेकिन यह तभी मुमकिन हो पाएगा जब ''जीतने की क्षमत' के आधार पर टिकटों का वितरण हो और पार्टी संगठन में जल्द से जल्द पूरी तरह फेरबदल हो. महाजन ने कहा कि मुख्यमंत्री का पत्र पिछले एक साल से पार्टी हाइकमान की ओर से दिए गए आश्वासनों का सार मात्र है. राहुल गांधी के साथ घंटों बातचीत समेत विभिन्न बैठकों के कई दौर के बावजूद नतीजा 'ढाक के तीन पात' वाला साबित हुआ. वीरभद्र सिंह ने अपने एक करीबी से 26 अगस्त को कहा, ''हमारी बातें एक कान से सुन, दूसरी से निकाल दी गईं.''
हिमाचल प्रदेश के पार्टी प्रभारी कांग्रेस के महासचिव सुशील कुमार शिंदे के अगस्त में सप्ताह भर के राज्य के दौरे ने वीरभद्र सिंह के मामले को गंभीर बना दिया है. वैसे महाजन ने बताया कि ''हालांकि ज्यादातर विधायकों, जिनमें उनके विरोधी पूर्व कैबिनेट मंत्री कौल सिंह ठाकुर भी शामिल थे, ने मुख्यमंत्री और उनके किए जा रहे विकास का समर्थन किया.'' महाजन कहते हैं, ''वीरभद्र सिंह बहुत चिंतित हैं कि शिंदे ने कुछ सार्वजनिक बैठकों में उनके बारे में अप्रिय टिप्पणियों की अनुमति दी, जहां वे मौजूद नहीं थे.''
छह बार के मुख्यमंत्री और उम्र के 25वें साल में पहला चुनाव लडऩे वाले वीरभद्र सिंह कहते हैं, ''अपमान झेलने से बेहतर है घर बैठा रहूंगा.'' उन्होंने एक करीबी से कहा कि उनमें पार्टी के भितरघात करने वालों से लडऩे और कोर्ट के मामलों (कथित रूप से भ्रष्टाचार के मामलों में) से एक साथ लडऩे की ताकत नहीं रह गई है. हालांकि संन्यास का चोला पहनने का संकेत करने वाले वीरभद्र सिंह की इस मुहिम को राजनैतिक पर्यवेक्षक चीजों को अपने पक्ष में करने के लिए मुख्यमंत्री की दिल्ली पर दबाव बनाने की रणनीति का ही हिस्सा मानते हैं. जैसा कि एक विश्लेषक कहते हैं, ''कांग्रेस पार्टी को भी मालूम है कि वीरभद्र के बिना भारतीय जनता पार्टी के लिए रेड कारपेट बिछाने के समान होगा. पार्टी आलाकमान भी इससे वाकिफ है.''
अंशुमान तिवारी