सबरीमाला मंदिर मे महिलाओं के प्रवेश संबंधी जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान त्रावणकोर देवासम बोर्ड की तरफ से दलील दी गई है कि जब मस्जिदों में भी महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी है. तब सिर्फ एक जनहित याचिका के आधार पर बिना किसी ठोस दलील के सिर्फ मंदिर मामले पर ही सुनवाई क्यों हो रही है? क्योंकि समानता के अधिकार के उल्लंघन का मामला मस्जिदो पर भी लागू होता है.
त्रावणकोर देवासम बोर्ड के वकील अभिषेक मनु सिंघवी की इस दलील के साथ ही सुप्रीम कोर्ट में सुने जा रहे सबरीमाला के अय्यप्पा स्वामी के मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी के मामले में एक नया मोड़ आ गया है. त्रावणकोर देवासम बोर्ड की तरफ से कहा गया कि रजस्वला अवस्था के दौरान महिलाओं की बात तो दूर, कई मस्जिदों में भी तो महिलाओं को जाने की इजाजत नहीं दी गई है.
सिंघवी ने कोर्ट से पूछा है कि देश के शिया मुस्लिम मुहर्रम में अपने शरीर को हथियारों के वार से लहूलुहान कर लेते हैं. देश में काली के कई ऐसे मंदिर हैं जहां त्वचा में कांटे चुभाए जाते हैं. श्रद्धालु त्वचा में कीलें चुभा कर खुद को लटकाते हैं. क्या सुप्रीम कोर्ट तरक्की पसंद होने के नाते इस पर भी रोक लगाएगी ?
त्रावणकोर देवासम बोर्ड ने 10 से 55 साल के बीच की उम्र वाली महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी को उचित बताते हुए कहा कि वहां कई ऐसी अनोखे रीति रिवाज और विधि विधान हैं जिसपर हिंदू ही नहीं गैर हिंदू जन भी आस्था रखते हैं. लिहाजा महज एक जनहित याचिका के आधार पर हिंदू धर्म को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की जा रही है.
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के दाखिले पर पाबंदी के मामले की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने त्रावणकोर देवासम बोर्ड से कहा है कि बोर्ड साबित करे कि यह पाबंदी धार्मिक विश्वास का अभिन्न अंग है.
कोर्ट ने पूछा है कि क्या सिर्फ रजस्वला अवस्था की वजह से महिलाएं मलिन हो जाती हैं? लिहाजा महिलाओं के मंदिर में दाखिले पर ही पाबंदी लगा देना उनके संवैधानिक अधिकारों और गरिमा के खिलाफ है.
कोर्ट ने बोर्ड को आड़े हाथों लेते हुए पूछा है कि केरल हाईकोर्ट में तो ये कहा गया था कि सबरीमाला के देव अय्यप्पा के मंदिर में सालाना उत्सव के शुरुआती पांच दिनों में महिलाओं के दाखिल होने की छूट है. मसलन कोई पाबन्दी नहीं. तो अब यहां विरोधाभासी बयान क्यों दिया जा रहा है?
बता दें कि केरल के पत्थनमथिट्टा जिले के पश्चिमी घाट की पहाड़ी पर स्थित सबरीमाला मंदिर के प्रबंधन की तरफ से शीर्ष अदालत मे यह दलील दी जाती रही है रजस्वला अवस्था की वजह से महिलाएं 'शुद्धता' बनाए नहीं रख सकती हैं, इसलिए 10 से 55 आयु वर्ग की महिलाओं का प्रवेश मंदिर में वर्जित है.
गौरतलब है कि इस मामले में नवंबर, 2016 को केरल सरकार ने न्यायालय को सूचित किया था कि वह ऐतिहासिक सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश के पक्ष में है. शुरूआत में राज्य की एलडीएफ सरकार ने 2007 में प्रगतिशील रूख अपनाते हुए मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की हिमायत की थी जिसे कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूडीएफ सरकार ने बदल दिया था.
विवेक पाठक / संजय शर्मा