उरी हमले के बाद मोदी सरकार के सामने ये हैं विकल्प और जोखिम

भारत पाकिस्तान को आतंकी देश घोषि‍त कर विश्व बिरादरी में अलग-थलग किए जाने की एक और कोशि‍श कर सकता है.

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हमले में 17 जवान शहीद हुए हमले में 17 जवान शहीद हुए

लव रघुवंशी

  • नई दिल्ली,
  • 19 सितंबर 2016,
  • अपडेटेड 10:22 AM IST

उरी में सेना के कैंप पर हुए आतंकी हमले को लेकर नई दिल्ली में बैठकों का दौर जारी है. पाकिस्तान की सीमा से दाखि‍ल हुए आतंकियों के हमले में 17 जवानों की शहादत को लेकर देशवासियों की आंखे नम हैं. लोगों के बीच गुस्सा भी है. सियासी हुक्मरान निंदा और बयानबाजी कर रहे हैं तो जनता सरकार से किसी ठोस कार्रवाई की उम्मीद कर रही है. ऐसे में ढाई साल पहले आतंकवाद और पाकिस्तान को कड़ा सबक सिखाने के वादे के साथ सत्ता में आई केंद्र की मोदी सरकार के सामने क्या विकल्प हैं? क्या पाकिस्तान सरकार से बातचीत की जानी चाहिए या फिर पाकिस्तान पर हमला किया जाए? इसकी पड़ताल करना जरूरी है. हालांकि इन विकल्पों के साथ जोखिम भी हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

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सर्जिकल हमला
जैसा हमला अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को मारने के लिए किया था, भारत के पास भी विकल्प है कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में चल रहे आतंकी कैंपों पर हमले किए जाए. हालांकि, इसका सबसे बड़ा रिस्क है कि पड़ोसी देश के साथ एक और जंग छिड़ सकती है और यह पड़ोसी परमाणु हथियार से लैस है.

सीमा में घुसकर हमला
जून 2015 में मणि‍पुर में घात लगाकर किए गए हमले में सेना के 18 जवान शहीद हो गए थे. इसके बाद भारतीय सेना म्यांमार की सीमा में दाखिल हो गई और आतंकियों को मार गिराया गया. भारत पाकिस्तान में छिपे आतंकवादियों के खि‍लाफ इस तरह के विकल्प पर भी विचार कर सकता है लेकिन पाकिस्तान के हालात म्यांमार से अलग हैं और पाकिस्तान के खिलाफ कभी ऐसा किया नहीं किया गया है.

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आतंक के नाम पर अलग-थलग करना
भारत पाकिस्तान को आतंकी देश घोषि‍त कर विश्व बिरादरी में अलग-थलग किए जाने की एक और कोशि‍श कर सकता है. भारत हालांकि दशकों से इस तरह की कोशिश कर रहा है लेकिन इस दिशा में बड़ी कामयाबी नहीं मिली है. अब चूंकि आतंकवाद एक वैश्विक खतरे के तौर पर उभरा है, ऐसे में भारत को कूटनीतिक मोर्चे पर फायदा होने की गुंजाइश है.

द्व‍िपक्षीय बातचीत
भारत को पाकिस्तान के साथ दोबार बातचीत की शुरुआत करनी चाहिए. हालांकि, यह भारत के खिलाफ ही जा सकता है क्योंकि यह भारत की ही नीति है कि आतंकवाद और बातचीत एक साथ संभव नहीं है.

पिछले दरवाजे से बातचीत
जगजाहिर है कि पाकिस्तान में सत्ता पर वहां की सेना का दबदबा रहता है, ऐसे में पाकिस्तानी सेना से पिछले दरवाजे से बातचीत का विकल्प भी केंद्र सरकार के पास है. लेकिन पाकिस्तानी सेना की नीयत पर संदेह है कि वो शांति प्रक्रिया में भारत का कितना साथ देगी. यह वही सेना है, जिसने सरकार का तख्तापलट कर सत्ता हथि‍या ली थी.

आक्रामक रुख
2001 में भारतीय संसद पर हुए आतंकी हमले के बाद तत्कालीन वाजपेयी सरकार की ओर से शुरू किए 'ऑपरेशन पराक्रम' की तर्ज पर सीमाओं पर सुरक्षाबलों की तैनाती बढ़ा दी जानी चाहिए. पाकिस्तानी विमानों को अपने हवाई मार्ग से उड़ान की इजाजत बंद कर देनी चाहिए. इस्लामाबाद स्थ‍ित भारतीय उच्चायुक्त को वापस बुलाकर नई दिल्ली स्थ‍ित पाकिस्तानी मिशन को भी अपने देश चले जाने को कहना चाहिए. हालांकि इस कदम से घरेलू मोर्चे पर कुछ समय के लिए फायदा तो होगा, लंबे समय के लिए यह फायदेमंद नहीं होगा.

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बलूचिस्तान पर घेरा जाए
लाल किले की प्राचीर से पीएम मोदी ने बलूचिस्तान और पीओके का राग छेड़कर भारत की विदेश नीति में नया मोड़ लाने की कोशिश की है. बलूचिस्तान में भी पाकिस्तान के अत्याचार के खिलाफ आवाजें फिर से उठने लगी हैं. बलूचिस्तान के नेताओं ने भारत के नेतृत्व की इस पहल की सराहना भी की है. ऐसे में उरी हमले के बाद भारत के पास बलूचिस्तान को लेकर पाकिस्तान को एक बार फिर घेरने का विकल्प है. हालांकि, इसमें जोखिम यह है कि इससे भारत विरोधी माहौल बन सकता है और इससे पाकिस्तान के 'स्टेट' और 'नॉन-स्टेट एक्टर्स' मजबूत होकर उभरेंगे.

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