भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने अपने व्यस्त कार्यक्रमों से समय निकाला और डिप्टी एडिटर उदय माहूरकर के साथ बातचीत की. उसी के चुनिंदा अंशः
त्रिपुरा में जीत के बावजूद भाजपा की रेटिंग में गिरावट आई है. पार्टी उन प्रमुख राज्यों में भी जहां वह सत्ता में है, कई उपचुनाव हार गई. क्यों?
आप ऐसा नहीं कर सकते कि कुछ उदाहरण ले लें और उसी की बिना पर विश्लेषण कर लें. कुल मिलाकर हमारा ग्राफ बढ़ा है. हमने एकाध सीट इधर और एकाध सीट उधर अपने मजबूत इलाकों में हारी भी है, तो हम इसकी वजहों का विश्लेषण करेंगे और सुधार के कदम उठाएंगे. 2019 में हम शानदार बहुमत के साथ दोबारा वापस आएंगे और इस साल के आखिर में चुनाव में जाने वाले तीन राज्य भी जीतेंगे.
विपरीत संकेतों के बावजूद इतने आत्मविश्वास की वजह?
दो मामलों में मोदी सरकार बिल्कुल अलग दिखाई देती है और इस देश के ज्यादातर लोग इसकी तारीफ कर रहे हैं. इस सरकार ने गरीबी और भ्रष्टाचार से लडऩे की जैसी हिम्मत दिखाई है, वैसी पहले की कम ही सरकारों ने दिखाई थी. हम ऊंचे और निचले दोनों स्तरों पर भ्रष्टाचार से लड़ रहे हैं. इसी हिम्मत की बदौलत मोदी सरकार हर साल तकरीबन 2 लाख करोड़ रु. तो बचा ही रही होगी देश की खातिर. उसने डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर सरीखी टेक्नोलॉजी का अपूर्व इस्तेमाल और दिल्ली में सत्ता के गलियारों से बिचौलियों का सफाया करके यह हिम्मत दिखाई है. यह कोई छोटी रकम नहीं, केंद्रीय बजट की करीब 10 फीसदी है. 30 करोड़ जन धन खातों के बगैर डीबीटी मुमकिन नहीं हुआ होता.
गरीब और दबे-कुचले लोगों को गरीबी के स्तर से ऊपर उठाने का हमारा संकल्प भी अभूतपूर्व है, जो मुद्रा, उज्ज्वला और स्टैंड-अप इंडिया सरीखी योजनाओं से दिखाई देता है. औसत भारतीय का गर्व का एहसास हमारे सत्ता में आने के बाद बढ़ गया है. मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद दुनिया के मंच पर भी भारत एक अलग ही धरातल पर खड़ा है.
नीरव मोदी और विजय माल्या के मामलों के बारे में क्या कहेंगे?
मोदी सरकार के बेदाग कार्यकाल में ये अपवाद हैं. यूपीए के हरेक घोटाले में जहां सत्ताधारी पार्टी के बड़े नेता शामिल थे, वहीं इन दोनों मामलों में ऐसा एक भी आरोप नहीं लगा है.
सरकार के खिलाफ सत्ता-विरोधी भावना है.
किसी भी गद्दीनशीन पार्टी को सत्ता-विरोधी भावना का सामना करना ही पड़ता है, पर हमारे सामने उसका बहुत छोटा-सा अंश भी नहीं है, जो 2014 में यूपीए के सामने थी.
पार्टी के भीतर और बाहर आपके ऊपर घमंडी होने का आरोप लगाया जा रहा है. कहा जा रहा है कि सलाह-मशविरे की प्रक्रिया को ताक पर रख दिया गया है. इसी की वजह से आपकी सहयोगी पार्टियां भी आपको छोड़कर जा रही हैं.
अनुशासन के साथ काम करने को घमंड के तौर पर नहीं देखा जा सकता. जहां तक सहयोगी दलों की बात है, तो सलाह-मशविरे की प्रक्रिया के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का इससे बड़ा सबूत और कोई नहीं हो सकता कि केंद्र में भी और उत्तर प्रदेश तथा असम सरीखे राज्यों में भी स्पष्ट बहुमत होने के बावजूद भाजपा ने अपने सहयोगी दलों को मंत्रिमंडल में शामिल किया है.
पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु सरीखे अछूते राज्यों में आपका कोई सहयोगी दल नहीं है. अब आंध्र प्रदेश भी इस फेहरिस्त में जुड़ गया है. ओडिशा में भी यही...
हमारे पास तमाम राज्यों की रणनीति तैयार है. हम इसे सही वक्त पर उजागर करेंगे. मैं आपको भरोसा दिला सकता हूं कि 2019 में हम पश्चिम बंगाल में 22 से ज्यादा सीटें जीतेंगे. वहां तृणमूल की बेउसूल हुकूमत और विपक्ष को दबाने के लिए रणनीति के तौर पर हिंसा के इस्तेमाल की वजह से नाराजगी बहुत ज्यादा है. हम ओडिशा में भी बहुत अच्छा प्रदर्शन करेंगे.
आप भाजपा के खिलाफ बन रहे महागठबंधन का मुकाबला करने के लिए क्या रणनीति अपनाएंगे?
महागठबंधन के बारे में हमें कुछ करने की जरूरत नहीं है. हमें हमारी पार्टी के ढांचे को मजबूत करना है और अपनी सरकार की योजनाओं के बूते पर सबसे गरीब लोगों तक पहुंचना है. मुझे लगता है कि नरेंद्र मोदी बनाम अन्य से हमें मदद मिलेगी. इससे मतदाताओं को पता चलेगा कि तमाम पार्टियां और नेता किस तरह उस एक शख्स के खिलाफ गिरोहबंद हो रहे हैं जो व्यवस्था को पारदर्शी बनाने के लिए इसे बदलने और उनके लिए, साधारण आदमी के लिए बराबरी का मैदान बनाने की कोशिश कर रहा है.
2019 के चुनावों को लेकर आपके मन में कोई डर है?
डर उन्हें होता है जो चुनौतियों के लिए तैयार नहीं होते. हमने 2019 के लिए 27 मई, 2014 से ही काम करना शुरू कर दिया था. बल्कि डर तो विरोधी दलों में साफ दिखाई दे रहा है, जिस तरह से वे हमारे खिलाफ एकजुट हो रहे हैं और महागठबंधन बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
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मंजीत ठाकुर