अभी तो बसंत ही चल रहा है लेकिन बुंदलेखंड में पानी की इतनी किल्लत शुरू हो गई है कि प्रशासन को पानी की चोरी रोकने के लिए नदी पर पहरा बैठाना पड़ा है. टीकमगढ़ नगर पालिका ने जामुनी नदी पर बंदूकधारी गार्ड तैनात कर दिए क्योंकि उसे डर है कि उत्तर प्रदेश के किसान पानी चुरा सकते हैं. पालिका की अध्यक्ष लक्ष्मी गिरी कहती हैं, ''हमारी प्राथमिकता पीने का पानी मुहैया कराने की है. यही वजह है कि हमें इसकी निगरानी करनी पड़ रही है.''
टीकमगढ़ में इस साल 52 फीसदी से भी कम बरसात हुई है. यहां किसानों के जलाशयों से पानी लेने पर पहले ही पाबंदी लगा दी गई थी और खंभों में बिजली सप्लाई भी रोक दी गई जिस वजह से वे न के बराबर फसल की बुआई कर पाए. दरअसल जामुनी नदी के सूखने से पेयजल संकट पैदा हो गया था जिसके बाद उत्तर प्रदेश के ललितपुर स्थित जामुनी बांध से पानी छोड़ा गया. मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बीच 1974 में हुई संधि के तहत कुल भराव क्षेत्र का 17 फीसदी पानी मध्य प्रदेश को दिया जाता है.
बुंदेलखंड में एक तरफ फसलें सूख रहीं हैं तो दूसरी ओर बांधों के पानी के बंटवारे को लेकर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के किसानों के बीच संघर्ष की घटनाएं सामने आने लगीं हैं. नहर में छोड़े जा रहे पानी को पुलिस की निगरानी में उत्तर प्रदेश के रास्ते मध्य प्रदेश तक पहुंचाया जा रहा है. बेतवा प्रखंड के अधिशासी अभियंता एम.एल. अग्रवाल बताते हैं कि अनुबंध के तहत राजघाट बांध से 50 फीसदी और माताटीला बांध से 30 फीसदी पानी मध्य प्रदेश के जिलों को सिंचाई के लिए दिए जाने का नियम है. इसके मुताबिक, मध्य प्रदेश के लिए दतिया नहर में 2,200 क्यूसेक और भांडेर नहर में 900 क्यूसेक पानी छोड़ा जा रहा है. लेकिन, जब सूखा पड़ता है तो पानी को लेकर टकराव होने लगता है. ऐसे में उत्तर प्रदेश से होकर मध्य प्रदेश जाने वाली इन नहरों से उत्तर प्रदेश के किसान नहर काटकर पानी न चुरा लें, इसलिए सिंचाई विभाग के अधिकारियों और पुलिस को यहां पहरेदारी करनी पड़ रही है.
सिंचाई विभाग के एक अन्य अधिकारी कहते हैं कि इस बार सूखे से हालात इतने खराब हैं कि 22 साल बाद बुंदेलखंड के सबसे बड़े बांध राजघाट के डेड स्टोरेज वाटर (पानी की निचली सतह) से 10 टीएमसी पानी छोड़े जाने के लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेज दिया गया है.
मध्य प्रदेश की तरह ही उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के किसान भी पानी के लिए तरस रहे हैं. उत्तर प्रदेश के चिरगांव से बेतवा नहर मध्य प्रदेश की सीमा में दाखिल होती है. यहां के किसान रामनरेश को खेत के लिए पानी की सख्त जरूरत है और यह नहर उसके ही खेत से सटकर निकलती है, लेकिन वह इससे पानी नहीं ले सकता क्योंकि नहर में छोड़ा गया पानी अनुबंध के मुताबिक एमपी के हिस्से का है.
सामाजिक संस्था परमार्थ के प्रमुख संजय सिंह के मुताबिक, शिवपुरी जिले में कुएं सूख चुके हैं लेकिन मध्य प्रदेश सरकार ने जिले को अब तक सूखाग्रस्त घोषित नहीं किया है. दूसरे जिलों के हालात भी कुछ अलग नहीं हैं. पन्ना, छतरपुर, सागर, दतिया और टीकमगढ़ में सिंचाई के अभाव में फसलें चौपट हो गईं हैं. मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता दुर्गेश शर्मा सीहोर में किसान रैली करने पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहते हैं, ''सूखे से बरबाद किसान आत्महत्या कर रहे हैं लेकिन प्रधानमंत्री इस त्रासदी पर एक शब्द भी नहीं बोले.''
मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में बंटे बुंदेलखंड के किसानों के बीच पानी के बंटवारे को लेकर कड़वाहट बढ़ती जा रही है. हालांकि एक बात समान है कि दोनों ही ओर के खेतों में फसलें पकने से पहले ही सूखकर झडऩे लगी हैं और दोनों ही प्रदेशों के किसान मौत को गले लगा रहे हैं.
शुरैह नियाज़ी / संतोष पाठक