ऑपरेशन घाघरा पार्ट-2: ड्रग स्मगलरों का तिलिस्म

आपको याद होगा हम 'वारदात' में आपके लिए 'ऑपरेशन घाघरा' की वो चौंकाने वाली कहानी लेकर आए थे, जिसमें ड्रग्स के धंधेबाज़ घाघरा, जूते, चप्पल या तौलिए जैसी किसी मामूली चीज़ में करोड़ों की ड्रग्स छिपा कर उनकी स्मगलिंग करते हुए पकड़े गए थे.

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aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 06 जून 2015,
  • अपडेटेड 5:57 AM IST

आपको याद होगा हम 'वारदात' में आपके लिए 'ऑपरेशन घाघरा' की वो चौंकाने वाली कहानी लेकर आए थे, जिसमें ड्रग्स के धंधेबाज़ घाघरा, जूते, चप्पल या तौलिए जैसी किसी मामूली चीज़ में करोड़ों की ड्रग्स छिपा कर उनकी स्मगलिंग करते हुए पकड़े गए थे. अब ऑपरेशन घाघरा 'पार्ट टू' में बात नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के एक ऐसे ऑपरेशन की, जिसमें नशे की सबसे ताज़ी खेप घाघरे की सूरत में पकड़ में आई.

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एक फैंसी घाघरे की क़ीमत आम तौर पर कितनी हो सकती है? आप कहेंगे यही दस से 15 हज़ार रुपए. वैसे तो शौक बड़ी चीज़ है. जिसकी कोई क़ीमत नहीं होती. पहनने वाले तो लाखों रुपए के घाघरे भी पहन लेते हैं. लेकिन अगर हम आपको किसी मामूली से घाघरे की क़ीमत ही करोड़ों में बताएं, तो इसे आप क्या कहेंगे?

यह धंधा है घाघरे में हेरोइन छिपाकर सप्लाई करने का. घाघरे में जरी के नीचे हेरोइन की स्ट्रिप को ऐसी बारीकी से छिपाया जाता है कि ऊपरी तौर पर देख कर कोई अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता कि इस नक्काशी और कढ़ाई के नीचे कोई चीज़ छिपाई भी जा सकती है. लेकिन हक़ीक़त यही है कि एक घाघरे के ज़री वर्क के नीचे छिपाई गई इस सफ़ेद रंग चीज़ की बदौलत ही इस मामूली से घाघरे की क़ीमत पूरे डेढ़ करोड़ रुपए तक पहुंच गई है. दरअसल, सफ़ेद रंग की ये स्ट्रिप मौत की वो खेप है, जिसे सात समंदर पार बैठे ड्रग स्मगलरों ने आगे अपने ग्राहकों तक पहुंचाने के लिए घाघरे के ज़रीवर्क के नीचे छिपा कर भेजा था. ये खेप है दुनिया से सबसे घातक नशों में से एक हेरोइन की. एनसीबी यानी नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के तेज़ तर्रार अफसरों ने ऐसे ही एक रैकेट का भंडाफोड़ किया है. एक खुफ़िया खबर की बदौलत एनसीबी के हाथ विदेश से भिजवाए गए इस नशीले घाघरे तक जा पहुंचे हैं. दिल्ली के एक कुरियर कंपनी के दफ्तर में विदेश से भिजवाई गई ये नशे की इस खेप को आगे मलेशिया भेजा जाना था. लेकिन इससे पहले कि ऐसा होता, घाघरे के धागे उधेड़ कर एनसीबी ने स्मगलरों की बखिया उधेड़ दी.

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ऐसे काम करता है नारकोटिक्स ब्यूरो
जगह: एनसीबी, दिल्ली
तारीख़: 13 मई, 2014
वक़्त: दोपहर के 02.00 बजे

अचानक ब्यूरो के मुख्यालय में टेलीफ़ोन की घंटी बजती है. दूसरी तरफ़ से फोन करने वाला शख्स ब्यूरो के अफ़सरों को कोई खुफ़िया ख़बर देता है और इसके साथ ही ड्रग्स के धंधेबाज़ों पर नकेल कसनेवाले इस महकमे के दफ्तर में हलचल मच जाती है.

इंस्पेक्टर उस जानकारी को फौरन दर्ज करते हैं और सुपरिटेंडेंट जोनल डायरेक्टर से मशविरा करने फौरन उनके चेंबर में जा पहुंचते हैं. इस दफ़्तर में मची हलचल और अफ़सरों के हरक़त में आने का मंज़र ये बताने के लिए काफ़ी है कि इस वक़्त नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के अफ़सरों को कोई ऐसी जानकारी हाथ लगी है, जिसके सिरे तक पहुंचना उनके लिए एक बड़ी चुनौती है. बहुत मुमकिन है कि एनसीबी के अफ़सरों को ये छोटी लेकिन अहम सी जानकारी किसी बड़े ड्रग कार्टेल तक पहुंचा दे.

अब ज़ोनल डायरेक्टर के इंस्ट्रक्शन पर फ़ौरन सुपरिंटेंडेंट की अगुवाई में महकमे के तेज़ तर्रार अफ़सरों की एक टीम तैयार की जाती है. इस टीम को अभी के अभी एक रेड पर निकलना है और चूंकि ये ख़बर नशे की खेप से जुड़ी है, इस रेड में ख़तरा भी कम नहीं है. कहने का मतलब ये कि नशे के सौदागर खुद को घिरता हुआ देखने पर किसी भी हद तक जा सकते हैं. लिहाज़ा, एक तरफ़ जहां नार्कोटिक्स के माहिर अफ़सरों की टीम ड्रग डिटेक्शन किट तैयार करने में जुट जाती है, वहीं दूसरी तरफ़ कुछ लोग असलहों के साथ अपनी हिफ़ाज़त की पूरी तैयारी कर लेते हैं.

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दरअसल, ड्रग डिटेक्शन किट के ज़रिए मौका ए वारदात पर ही नार्कोटिक्स के एक्सपर्ट बरामद किए गए ड्रग की जांच कर सकते हैं. इससे हाथों-हाथ ना सिर्फ़ तसल्ली हो जाती है, बल्कि ये भी पता चल जाता है कि बरामद की गई नशे की खेप आख़िर किस ड्रग की है और क्वालिटी क्या है? जबकि अस्लहों से ज़रूरत पड़ने पर धंधेबाज़ों को मुंह तोड़ जवाब दिया जा सकता है.

अब दफ़्तर में लास्ट मिनट ब्रीफिंग होती है और फिर फौरन ही टीम किसी ड्रग डीलर को इंटरसेप्ट करने के इरादे से अपने ठिकाने के लिए रवाना हो जाती है. ख़ास बात ये है कि इस टीम के चंद सीनियर अफ़सरों के अलावा ज़्यादातर मैंबर्स को अब तक ये पता नहीं है कि आख़िर रेड कब, कहां और कितने बजे होनेवाली है? क्योंकि कम से कम इनपुट शेयर करने से रेड के ज़्यादा से ज़्यादा कामयाब होने की गुंजाइश रहती है और तब एनसीबी की टीम आरके पुरम के रास्तों से होती हुई साउथ दिल्ली के पॉश इलाकों में से एक साकेत के लिए रवाना हो जाती है. आरके पुरम से साकेत की दूरी तकरीबन 9 किलोमीटर है और एनसीबी की टीम तकरीबन 12 मिनट में अपना ये सफ़र पूरा करती है और अब वक़्त है ऑपरेशन डेथ का.

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और अब कार्रवाई का वक्त
अब असली कार्रवाई यानी ऑपरेशन डेथ का वक़्त नज़दीक आ चुका है. एनसीबी के अफ़सरों को साकेत की सड़कों पर ही एक सफ़ेद रंग की कार नज़र आती है. अफ़सर इस कार को इंटरसेप्ट कर रोकने की कोशिश करते हैं. लेकिन जैसा कि शक होता है इस कार का ड्राइवर अफ़सरों की बात मान कर गाड़ी रोकने की बजाय उसे और तेज़ी से भगाने की कोशिश करता है.लेकिन पहले से तैयार एनसीबी की टीम आख़िरकार इस कार को रुकवाने में कामयाब हो जाती है.

और इससे पहले कि कार का ड्राइवर कोई और हरकत करे, एनसीबी के अफ़सर ड्राइवर को फौरन अपने कब्जे में कर उसे गाड़ी से नीचे उतार लेते हैं. अब तक के हालात तो यही इशारा कर रहे हैं कि एनसीबी के दफ्तर में आई खुफ़िया ख़बर बिल्कुल सही है और कार में कोई न कोई नशे की खेप ज़रूर है, जिसे छिपा कर कार का ड्राइवर कहीं डिलीवरी के लिए जा रहा है. एनसीबी के अफ़सर अब पूरी कार की बारीकी से तलाशी लेते हैं. कार में कई बैग हैं. इन बैगों से पुलिस को कुछ खास तो हाथ नहीं लगता. लेकिन कार में छिपा कर रखा गया एक पैकेट लगता है कुछ मिनटों की तलाशी के बाद कार में छिपा कर रखा गया एक पैकेट एनसीबी को ज़रूर मिल जाता है.

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जिस ख़ास तरीके से इस पैकेट को तैयार किया गया है, वो पहली ही नज़र में शक पैदा करता है. अब अफ़सर फौरन मौके पर ही अफ़सर इस पैकेट को खोलते हैं और अगले ही पल उनके हाथ लगता है कि मौत का वो सामान इंटरनेशनल मार्केट में जिसकी क़ीमत लाखों में हो सकती है. मौके पर ही एनसीबी के अफ़सर इस पैकेट से बरामद हुए माल की ड्रग डिटेक्शन किट की मदद से जांच करते हैं और आखिरकार उनका शक सही निकलता है. जी हां, इस पैकेट में हेरोइन है. तकरीबन ढाई सौ ग्राम इस हेरोइन की क़ीमत इंटरनेशन मार्केट में लाखों में हो सकती है.

इस ड्राइवर से हुई पूछताछ से अफ़सरों को ज़्यादा कुछ तो नहीं पता चला, लेकिन इसी कड़ी में उनके हाथ उस तौलिये तक ज़रूर जा पहुंचते हैं, जिसकी क़ीमत तकरीबन एक करोड़ 20 लाख रुपए है. दरअसल, छानबीन में ये पता चलता है कि कार से हेरोइन का साथ गिरफ्तार किया गया शख्स तो महज़ एक कैरियर भर था, जिसे किसी कुरियर कंपनी ने ये काम सौंपा था. उसे इस ड्रग कार्टेल के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी, लेकिन एनसीबी को इसे बहाने ये ज़रूर पता चल गया कि कुरियर कंपनियों के रास्ते दिल्ली में ड्रग्स की खेप मंगाई जाने लगी है. अब एनसीबी ने कुरियर कंपनियों पर अपनी निगाह पैनी की और जल्द ही उसके हाथ एक ऐसे पैकेट तक पहुंचे, जिसमें 1 करोड़ 20 लाख रुपए का तौलिया पैक था.

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