उत्तराखंडः खतरे में है जंगल का राजा

यूं तो कॉर्बेट पार्क और उससे सटे इलाके बाघों की तादाद के हिसाब से सुखद अहसास कराते हैं. इसीलिए पर्यटक देश-विदेश से यहां घूमने आते हैं, लेकिन पिछले छह माह में यहां हर महीने औसतन दो बाघों की मौत हो रही है. अब तक 11 बाघ मौत की नींद सो चुके हैं.

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प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर

नंदलाल शर्मा

  • देहरादून ,
  • 23 जून 2017,
  • अपडेटेड 5:58 PM IST

उत्तराखंड वैसे तो अपनी खूबसूरत फिजा, तीर्थाटन और पर्यटन की वजह से देश और दुनिया में मशहूर है पर इसके अलावा जो एक और चीज़ है जिससे देवभूमि की पहचान होती है वो हैं इसके बाघ (टाइगर) जिनका आशियाना कहलाता है जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क, लाखों पर्यटक रोमांच का अनुभव करने के लिए कॉर्बेट की तरफ रुख करते हैं और उसकी एक झलक पाने के लिए बेताब भी रहते हैं. मगर अब जंगल के राजा पर मौत का साया दिनोंदिन मंडराता जा रहा है. ये सच है कि इंसानी शरीर में सिहरन पैदा करने वाले टाइगर अब खुद खतरे में हैं.

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6 महीने में 11 बाघ मौत के मुंह में
यूं तो कॉर्बेट पार्क और उससे सटे इलाके बाघों की तादाद के हिसाब से सुखद अहसास कराते हैं. इसीलिए पर्यटक देश-विदेश से यहां घूमने आते हैं, लेकिन पिछले छह माह में यहां हर महीने औसतन दो बाघों की मौत हो रही है. अब तक 11 बाघ मौत की नींद सो चुके हैं. इससे कॉर्बेट प्रशासन भी सवालों के घेरे में आ गया है. लगातार हो रही बाघों की मौत के बाद बाघों के संरक्षण पर सवाल खड़े होने लगे हैं.

बाघों की सुरक्षा पर करोड़ों खर्च-
नैनीताल जिले में कॉर्बेट पार्क को बाघों की राजधानी कहा जाता है. इनकी अच्छी तादाद के चलते यह क्षेत्र मशहूर है. बाघों के कारण ही साल दर साल सरकार को करोड़ों राजस्व मिलता है. बाघों की सुरक्षा के नाम पर करोड़ों रुपये का बजट हर साल आता है, लेकिन पिछले कुछ समय से बाघों की मौत ने रामनगर को सुर्खियों में ला दिया है. कभी आपसी संघर्ष में बाघ जान गंवा रहे हैं तो कभी संदिग्ध परिस्थितियों में बाघ के सड़े-गले शव बरामद हो रहे हैं. भले ही बाघों की मौत की वजह अलग-अलग हों, लेकिन बाघों का लगातार मरना कई सवाल खड़े कर रहा है. हालांकि कॉर्बेट के अधिकारी बाघों की मौत एक इत्तेफाक ही मानते हैं.

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सेही से भी हुई बाघ की मौत-
एक बाघ की मौत तो खुद जंगल में सेही (पहाड़ी भाषा में शोल कहा जाता है ) के हमले की वजह से हुई. इससे पूर्व भी कॉर्बेट में सेही के हमले में बाघ मारे जा चुके हैं. वन अधिकारियों के मुताबिक, जंगल में सेही अचानक बाघिन के सामने आ गई होगी या बाघिन ने उसे अपना शिकार बनाने का प्रयास किया होगा. इसी वजह से उसने खतरा भांपकर बचाव में अपने शरीर पर लगे तीरनुमा कांटे छोड़ दिए. यही कांटे बाघिन के शरीर पर जगह-जगह घुस गए जिससे घाव बनने के बाद संक्रमण हो गया. अधिक रक्तस्राव बाघिन की मौत की वजह बन गया. सेही के कांटे छह इंच से एक फीट तक होते हैं.

6 माह में मारे गए बाघों का डाटा-

1 जनवरी- कालाढूंगी रेंज- रामनगर वन प्रभाग.

19 जनवरी- देचौरी रेंज- रामनगर वन प्रभाग.

16 फरवरी- बैलपड़ाव रेंज- रामनगर वन प्रभाग.

22 फरवरी- बैलपड़ाव रेंज- रामनगर वन प्रभाग.

16 मार्च- बैलपड़ाव रेंज- तराई पश्चिमी वन प्रभाग.

31 मार्च- सर्पदुली रेंज- कॉर्बेट टाइगर रिजर्व.

14 अप्रैल- देचौरी रेंज- रामनगर वन प्रभाग.

01 मई- बैलपड़ाव रेंज- रामनगर वन प्रभाग.

02 मई- बिजरानी रेंज- कॉर्बेट टाइगर रिजर्व.

23 मई- कालागढ़ रेंज- कॉर्बेट टाइगर रिजर्व.

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17 जून- सर्पदुली रेंज- कॉर्बेट टाइगर रिजर्व.

 

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