लखनऊ में भगवा रंग में रंग चुके हाइप्रोफाइल लाल बहादुर शास्त्री भवन यानी उत्तर प्रदेश सचिवालय के भूतल में दाहिनी कोने पर औद्योगिक विकास आयुक्त का कक्ष है. इसी कक्ष से सटा हुआ सभागार उसी तर्ज पर वार रूम में तब्दील हो चुका है जैसा कि अमूमन चुनाव के दिनों में सियासी पार्टियों के कार्यालय हो जाते हैं. यहां एक छत के नीचे औद्योगिक विकास, उद्योग बंधु, नेशनल इन्फॉर्मेशन सेंटर समेत कई विभागों के दो दर्जन से अधिक अधिकारी फरवरी में लखनऊ में होने वाली इन्वेस्टर्स समिट की तैयारियों के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं. सुबह नौ बजे मॉर्निंग मीटिंग के साथ वार रूम की सरगगर्मी शुरू होती है. पुराने कार्यों के फॉलोअप के साथ वॉर रूम के हर सदस्य को एक एजेंडा थमा दिया जाता है.
रात करीब आठ बजे अंतिम मीटिंग एजेंडे के काम पूरा कर रिपोर्ट देने के साथ समाप्त होती है. फरवरी की 21-22 तारीख को होने वाली इन्वेस्टर्स समिट के लिए वेबसाइट बनी है, जिसके जरिए मॉनिटरिंग की जा रही है. कौन-से निवेशक किस क्षेत्र में निवेश करने की इच्छा रखते हैं? उनकी और क्या जरूरतें हैं? न सिर्फ इनका ब्यौरा वेबसाइट पर है बल्कि निवेशक इस वेबसाइट के जरिए निवेश की सारी औपचारिकताएं भी पूरी कर सकेंगे. उन्हें सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने की भी जरूरत नहीं है.
वॉर रूम में मौजूद एक टीम यह पता लगाने में जुटी है कि कौन-से जिले में किस तरह के निवेश की संभावना है. निवेशकों के लिए एक प्रोजेक्ट फाइल तैयार हो रही है. यहीं एक फैसिलिटेशन डेस्क भी है जो निवेशकों के आते ही यह पता करेगी कि वह किस क्षेत्र में निवेश का इच्छुक है? सरकार से उसकी अपेक्षाएं क्या हैं? यह सारा काम ऑनलाइन होगा. प्रदेश में यह पहला मौका है जब निवेश को लेकर इतना बड़ा आयोजन किया जा रहा है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों (देखें बॉक्स) में कम से कम एक लाख करोड़ रु. के निवेश और पांच लाख नौकरियां जुटाने के शुरुआती लक्ष्य को लेकर समिट में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है.
रोड शो के जरिए माहौल
सत्ता संभालने के बाद निकाय चुनावों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के राजनैतिक कुशलता की पहली बड़ी परीक्षा हुई. पहली दिसंबर को आए नतीजों में जैसे ही 16 नगर निगमों में से 14 में भारतीय जनता पार्टी के मेयर जीते मुख्यमंत्री कार्यालय अचानक सक्रिय हो गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इन्वेस्टर्स समिट में मुख्य अतिथि के रूप में बुलाने का न्योता देने वाले पत्र को अंतिम रूप दिया जाने लगा. अगले दिन 2 दिसंबर को योगी आदित्यनाथ दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले. मोदी ने समिट में आने की जैसे ही हामी भरी लखनऊ में अधिकारी सरपट दौडऩे लगे. इसी दिन मुख्यमंत्री शाम छह बजे लखनऊ लौटते ही सीधे अपने दफ्तर ही पहुंचे और समिट की युद्धस्तर पर तैयारियों का आगाज किया. इससे पहले उन्होंने किसान ऋण माफी को सफलतापूर्वक लागू करने में बड़ी भूमिका निभाने वाले पूर्व अपर मुख्य सचिव (वित्त) आइएएस अधिकारी अनूप चंद्र पांडेय को अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास आयुक्त के पद पर तैनात कर समिट और निवेश की संभावना बढ़ाने की अहम जिम्मेदारी सौंप दी थी.
उत्तर प्रदेश में निवेशकों को प्रेरित करने के लिए 8 दिसंबर से लेकर 5 जनवरी तक दिल्ली, बेंगलुरू, हैदराबाद, अहमदाबाद, मुंबई और कोलकाता में रोड-शो की रणनीति तय की गई. 22 दिसंबर को मुंबई के रोडशो में मुख्यमंत्री मौजूद थे. यहां उद्योगपति रतन टाटा, मुकेश अंबानी, एचडीएफसी ग्रुप के चेयरमैन दीपक पारीख, हिंदुजा ग्रुप के अशोक हिंदुजा ने अदित्यनाथ से मिलकर प्रदेश में निवेश करने की इच्छा जताई. इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (आइआइए) के अध्यक्ष सुनील वैश्य कहते हैं, ''प्रदेश में योगी सरकार के लिए सबसे अनुकूल बात यह है कि केंद्र में भी उन्हीं की पार्टी की सरकार है. प्रदेश की पिछली सरकारों के दौरान ऐसा नहीं था. निवेश को जमीन पर उतारने के लिए इतना अनुकूल माहौल नहीं मिलेगा. यही योगी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती भी है.''
उद्योगपतियों की हिचक
सरकार को अभी कई चुनौतियों से भी पार पाना है (देखें बॉक्स). नवंबर में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में राज्य निवेश प्रोत्साहन बोर्ड गठित हुआ, जिसमें कई उद्योगपतियों भी हैं. 2 जनवरी को लखनऊ में बोर्ड की पहली बैठक हुई. इसमें इस बात के संकेत मिले कि आखिर उद्योगपति यूपी में निवेश करने में क्यों हिचकिचा रहे हैं? बैठक में मौजूद एक उद्योगपति ने समिट के आयोजन को जरूरी नहीं माना. उन्होंने बताया कि तमिलनाडु कोई इन्वेस्टर्स समिट नहीं करता इसके बावजूद वहां बड़ी संख्या में निवेशक जाते हैं. गिन्नी फिलामेंट्स के चेयरमैन शिशिर जयपुरिया ने बताया कि कानपुर में टेक्सटाइल इंडस्ट्री नहीं चल पा रही क्योंकि बिजली बहुत महंगी है. के.एम. शुगर मिल्स के चेयरमैन एल.के. झुनझुनवाला ने सरकार को बेकार नियमों को खत्म करने की सलाह दी. उन्होंने कहा, ''लैंड सीलिंग समेत कई तरह के परमिशन की अब जरूरत नहीं है.
सरकार को इसे तत्काल खत्म करना चाहिए. ये नियम निवेशकों के शोषण को बढ़ाते हैं.'' दुग्ध उत्पादन में अग्रणी पर इसके कारोबार में यूपी के काफी पीछे होने पर उद्योगपतियों ने चिंता जताई. डीसीएम श्रीराम लिमिटेड के चेयरमैन अजय एस. श्रीराम ने बताया, ''गुजरात में 50 प्रतिशत दूध की प्रोसेसिंग होती है जबकि यूपी में केवल 11 प्रतिशत की. प्रोसेसिंग मं् निवेश बढऩे से दूध का कारोबार भी गति पकड़ेगा.'' यूपी में नौकरशाह रहे और अब उद्योगपति बन चुके जगदीश खट्टर ने छोटे उद्योगों की वकालत करते हुए कहा, ''उद्योगों को बड़ी-बड़ी जमीन देने की बजाए छोटी-छोटी जमीन दी जाए ताकि सघन रूप से लघु एवं मध्यम उद्योग स्थापित हो सकें.'' जाहिर है, उद्योगपतियों की समस्याओं और चिंताओं को दूर किए बगैर निवेश की राह आसान नहीं.
आशीष मिश्र / संध्या द्विवेदी