बदहाली के कगार पर खड़े बुंदेलखंड की हालत सुधारने के लिए पहले केंद्र से 1,695 करोड़ रु. की धनराशि आई. फिर यह ठीक से खर्च हो रही है या नहीं, इसे जांचने के लिए योजना आयोग की टीम आई. आने-जाने का सिलसिला जारी है, सिर्फ काम का सिलसिला कभी सुस्त तो कभी ठप्प पड़ा रहता है.
पिछले दिनों पैकेज धनराशि के तहत हुए कामों की पड़ताल के लिए दो दिवसीय दौरे पर बुंदेलखंड आई योजना आयोग की टीम को सिर्फ आंशिक कमियां नजर आईं तो केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री प्रदीप जैन आदित्य इस बात पर भड़क उठे. उन्होंने यहां तक कह दिया, ''मैं प्रधानमंत्री के सामने धरने पर बैठूंगा क्योंकि पूरा बुंदेलखंड पैकेज भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहा है. इसके तहत होने वाले कार्यों में जो अनियमितताएं बरती जा रही हैं, योजना आयोग की टीम भी जांच के दौरान उतनी ही लापरवाही बरत रही है. ''
दरअसल यह हश्र उस पैकेज का है, जिसे खुद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की पहल पर बुंदेलखंड की बदहाल सूरत को बदलने के लिए जारी किया गया था. अब तीन साल बाद यह पैकेज यहां की भौतिक जमीन पर दम तोड़ता नजर आ रहा है. उचित क्रियान्वयन के अभाव में योजनाएं गड़बडिय़ों का शिकार हैं. भ्रष्टाचार के आरोपी 21 प्रशासनिक अधिकारियों को निलंबित किए जाने के बाद भी गड़बडिय़ों का सिलसिला जारी है. और एक साल मियाद बढ़ाने के बाद भी तय समय पर कार्यों का निबटारा नहीं हो पा रहा.
पिछले दिनों योजना आयोग के सदस्य प्रो. अभिजीत सेन के साथ नेशनल रेनफेड एरिया एथॉरिटी (एनआरएए) के सीईओ जे.एस. सामरा बुंदेलखंड के सभी जिलों में पैकेज के तहत हो रहे कामों की पड़ताल करने आए तो स्थानीय निरीक्षण के दौरान उन्हें धांधली और भ्रष्टाचार को लेकर ग्रामीणों के गुस्से का सामना करना पड़ा. झांसी में कई कूप निर्माण में भारी खामियां नजर आईं. प्रो. सेन ने कहा, ''बुंदेलखंड पैकेज की धनराशि पर अधिकारियों ने ऐश की है. '' उनके मुताबिक यूपी से कहीं बेहतर काम मध्य प्रदेश वाले बुंदेलखंड में देखने को मिला है. जबकि सामरा को अपनी ही पीठ थपथपाने से फुरसत नहीं है. वे कहते हैं, ''काम की गति धीमी होने के कारण इसका व्यापक असर नहीं दिखाई दे रहा है. ''
पैकेज के तहत कुल 7,400 करोड़ रु. की रकम दी जानी है. यूपी वाले बुंदेलखंड में अभी तक कुल 67 फीसदी काम ही निबटाया जा सका है, जबकि म.प्र. के इलाके में काम की गति तेज है. वहां 77 फीसदी धनराशि खर्च की जा चुकी है. यूपी के लिए 1,695 करोड़ रु. स्वीकृत किए गए, जिनमें से अब तक महज 744 करोड़ रु. ही खर्च किए जा सके हैं. जबकि एमपी में 1,953 करोड़ रु. स्वीकृत हुए, जिनमें से 1,141 करोड़ रु. खर्च किए जा चुके हैं. इस सुस्त चाल के बारे में एक स्थानीय अधिकारी कहते हैं कि तीन साल पहले शुरू किए गए पैकेज के निर्माण कार्यों की लागत बढ़ जाने के कारण पैकेज के कामों में नुकसान का अंदेशा है.
बुंदेलखंड पैकेज को लेकर लगातार आवाज उठाने वाले समाजसेवी भानु सहाय कहते हैं, ''झांसी में इस पैकेज के तहत 44 किसानों को 10-10 बकरियां दी गई थीं. इस तरह कुल 440 बकरियां दी गईं, जिनमें से एक महीने के भीतर ही 304 बकरियों की मौत हो गई. लेकिन जिन किसानों की बकरियां मरी थीं, उन्हें अभी तक पूरा मुआवजा भी नहीं मिल पाया है. गायों की नस्ल सुधारने के लिए पैकेज में 100 करोड़ रु. का प्रावधान था, लेकिन यह राशि सिर्फ कागज पर ही नजर आ रही है. यही हश्र इस कूप निर्माण, चेकडैम, प्लांटेशन व अन्य योजनाओं का भी है.
केंद्रीय ग्रामीण राज्यमंत्री प्रदीप जैन बदहाल बुंदेलखंड के उससे भी ज्यादा बदहाल पैकेज के बारे में कहते हैं, ''योजना आयोग की टीम अधिकारियों के चश्मे से दौरा करती है, इसलिए उसे खामियां नजर नहीं आती हैं. पैकेज की दुर्दशा को लेकर हम प्रधानमंत्री से बात करेंगे. ''
संतोष पाठक