नोटबंदी के बाद से बैंकों के बाहर लगी लंबी-लंबी कतारें तो सबको दिख रही हैं, लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है, जिस पर किसी का ध्यान नहीं गया. ये वर्ग है उन ट्रक ड्राइवरों का जो रोजाना सामान लेकर दिल्ली आते हैं लेकिन नोटबंदी के बाद से इन्हे रोजाना खुल्ले पैसे से ग्रीन टैक्स चुकाना पड़ रहा है नहीं तो ट्रक घंटो टोल नाकों पर खड़ा करना पड़ता है.
सबसे बड़ी समस्या उन ट्रक ड्राइवरों के सामने हैं, जिनको उनके मालिक हजार रुपये खर्चे के लिए दे रहे हैं, लेकिन जब वो दिल्ली की सीमा में दाखिल होते हैं तो ग्रीन टैक्स देते वक्त टोल कर्मचारी उनसे हजार रुपये के नोट लेने से मना कर देते हैं. दरअसल नोटबंदी के बाद से एमसीडी टोल तो नहीं वसूल रही, लेकिन कोर्ट के आदेश पर ग्रीन टैक्स जरुर लिया जा रहा है. बतौर ग्रीन टैक्स दिल्ली आने वाले ट्रकों को एक राशि जमा करानी होती है जो 700, 1300, 1400 और 2600 रूपये है.
हालांकि एमसीडी ग्रीन टैक्स के लिए 500 रुपये के पुराने नोटों को स्वीकार कर रही है, लेकिन समस्या तब आती है, जब ट्रक ड्राइवरों को 100 के नोटों की जरुरत पड़ती है. हालात ये हैं कि 100 रुपये के नोट के लिए कई बार ट्रक ड्राइवरों को लंबे वक्त तक इंतजार कराया जाता है, जिसके कारण वक्त पर वो सामान की डिलिवरी नहीं दे पा रहे.
नोटबंदी से एक ओर जहां निगम को संपत्ति करों के जरिए खासी रकम मिली है तो वहीं टोल टैक्स ना वसूलने के कारण 27 करोड़ रुपये का नुकसान भी हुआ है. इसके अलावा नोटबंदी के बाद से अब तक लगभग 18 करोड़ 66 लाख रुपये का ग्रीन टैक्स लिया जा चुका है, लेकिन इसमें से निगम को कोई राशि नहीं मिली, जिसके लिए एमसीडी कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती है.
रवीश पाल सिंह