भारतीय टीम लंदन के ओवल में 11 जून, 2017 को चैंपियंस ट्रॉफी के सेमी-फाइनल में जगह बनाने के लिए दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ असल में नॉकआउट मैच खेल रही थी. दो दिन पहले वह इसी मैदान पर श्रीलंका के खिलाफ मैच हार चुकी थी जिसके जीतने की कोई उम्मीद नहीं थी. सो, अब करो या मरो का मुकाबला था. दुनिया की नंबर एक वनडे टीम के खिलाफ इस मैच में बहुत कुछ दांव पर लगा था और मानो यही दबाव कम न हो, मीडिया में कप्तान और कोच (अनिल कुंबले) के बीच टकराव पर कोहराम मचा हुआ था. कप्तान विराट कोहली के लिए मैच की भारी अहमियत थी.
तीखी गेंदबाजी के दम पर भारत ने यह मैच आसानी से जीत लिया. और भारत के रन चेज की जिम्मेदारी विराट ने अपने कंधों पर उठाई, जैसा पूरे साल वे अक्सर करते रहे थे, और नाबाद 76 रनों पर मैच खत्म करके ही लौटे. इस आसान जीत का मानो कप्तान पर कोई असर ही न हो—वे तारीफों की बाढ़ में बह जाने वाले शख्स नहीं थे.
जून 2017 की 18 तारीख, ओवल, लंदन. भारत चैंपियंस ट्रॉफी पाकिस्तान के हाथों हार चुका था और विराट कोहली बगैर कोई रन बनाए पैवेलियन लौटे थे. मैच खत्म होने के कुछ ही पल बाद सोशल मीडिया पर कोहली को ट्रॉल किया जाने लगा और आगबबूला फै न तमाम किस्म की गाली-गलौज करने लगे. इतनी बुरी तरह नीचा दिखाने के लिए उनकी खूब लानत-मलानत की गई. इस हार से उनसे ज्यादा कोई दुखी नहीं था, पर एक दशक से ज्यादा वक्त से सबसे ऊंचे स्तर पर क्रिकेट खेलते आ रहे कोहली के लिए अपने प्रशंसकों का प्यार और नफरत कोई नई बात नहीं थी. वे बखूबी जानते थे कि हिंदुस्तान में क्रिकेटरों को एक दिन देवता की तरह सिर पर उठा लिया जाता है और अगले ही दिन शैतान की तरह दुत्कार दिया जाता है.
पता यह चला कि चैंपियंस ट्रॉफी विराट के लिए एक अपवाद भर थी, उस साल जो वैसे उनके लिए शानदार रहा था. 2017 के कैलेंडर में 2,818 अंतरराष्ट्रीय रन अब तक के इतिहास में तीसरे सबसे ज्यादा रन हैं—और कुमार संगकारा (2,868 रन, 2014 में) के रिकॉर्ड से महज 46 रन ही कम हैं; उन्होंने बतौर कप्तान एक के बाद एक लगातार नौ सीरीज जीती हैं; और पिछले 17 महीनों में छह बार 200 से ज्यादा रनों का स्कोर बनाया है. खेल के सभी फॉर्मेट में ऊंचे औसत के अलावा मैदान पर उनकी करामात और दबदबे का सबसे पक्का सबूत यह है कि वे कम ओवरों के दोनों फॉर्मेट की आइसीसी रैंकिंग में पहले नंबर पर काबिज हैं और टेस्ट में नं.2 पर (ऑस्ट्रेलिया के स्टीव स्मिथ के बाद) हैं. इसे अच्छी तरह समझने के लिए यह बताना काफी होगा कि दुनिया का कोई भी बल्लेबाज तीनों फॉर्मेट के आइसीसी टॉप 5 में शुमार नहीं है. कप्तान और कोच के बीच अनबन को भुलाया जा चुका है और साल का अंत किसी परीकथा की तरह शानदार शादी से हुआ है.
विराट कोहली का कायापलट
पर्थ, जनवरी 2012. ऑस्टेलियाई, जैसा वे अक्सर करते हैं, विराट को लगातार खिजाने में कामयाब हो गए थे. वे दर्शकों की छेड़छाड़ से तंग आ चुके थे और तभी उनका मुकाबला करने के लिए घटिया तरीके पर उतर आएः भीड़ के खास तौर पर शोर मचा रहे एक हिस्से की तरफ से उन्हें ''वॉन्कर" (नीच या घिनौना) कहा गया, तो उन्होंने भी जवाब में अपनी बीच की उंगली दिखा दी. गुस्से को नहीं संभाल पाना शुरुआती कोहली की खासियत थी और इस पर चिंता जाहिर की जाती थी कि यह कहीं इस होनहार के पूरी तरह खिलकर निखरने के रास्ते का रोड़ा न बन जाए.
दो महीने बीतते-बीतते कहानी पूरी तरह बदल गई. कोहली ने ढाका में पाकिस्तान के खिलाफ मैच में मैच-जिताऊ 183 रन बनाए थे. यह मैच आधी रात से कुछ पहले ही खत्म हुआ. मीडिया बड़ी तादाद में मौजूद था और मैच की अपनी रिपोर्ट भेजने से पहले कोहली के साउंडबाइट का इंतजार कर रहा था. मीरपुर में प्रेस कॉन्फ्रेंस की जगह पैवेलियन के बिल्कुल सामने की तरफ थी और मीडिया के अहाते में पहुंचने के लिए पूरा मैदान पार करना पड़ता है. मीडिया सेंटर की तरफ जाते हुए विराट रास्ते में अचानक रुके, मुड़े और स्टैंड में अपने फैंस के एक हिस्से की तरफ आहिस्ता-आहिस्ता दौडऩे लगे. कोई 2,000 दर्शक मैच के बाद भी रुके हुए थे और अब भी पूरे उत्साह से ''कोहली, कोहली" चिल्ला रहे थे. कई लोग यह देखकर हैरान रह गए कि विराट ने मीडिया का रुख करने से पहले अपने मुरीदों को तस्वीरों और ऑटोग्राफ से नवाजने का फैसला किया. बेशक, उन्हें अच्छी तरह पता था कि वे क्या कर रहे हैं और प्रेस कॉन्फ्रेंस के कमरे में दाखिल होते ही उन्होंने वहां इकट्ठा मीडिया के लोगों से माफी भी मांगी.
कायापलट शुरू हो चुका था.
मैदान की उस आक्रामक शख्सियत पर अब एक नई परिपक्वता, एक नया धैर्य और संयम परदा डालता मालूम देता था. नवंबर 2013 में अपना 200वां टेस्ट और अपना आखिरी अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने के बाद सचिन तेंडुलकर वानखेड़े स्टेडियम के ड्रेसिंग रूम में बैठे हुए थे, निपट अकेले, उस लम्हे के बारे में अपने में डूबे हुए. तो लीजिए खुद सचिन की जुबानी सुनिए कि उसके बाद क्या हुआ, ''जब मैं ड्रेसिंग रूम में बैठा था, तो देखा कि विराट मेरी तरफ चले आ रहे हैं. वे मेरे करीब पहुंचे तो मैंने देखा कि उनकी आंखों में आंसू थे और उन्होंने एक गिफ्ट मेरी तरफ बढ़ा दिया. जाहिर है, यह कोई ऐसी चीज थी जो उनके दिल के बहुत करीब थी. उन्होंने कहा कि यह उनके डैड ने उन्हें दी थी (अच्छी तकदीर के लिए पारिवारिक विरासत) और वे हमेशा यह सोचते रहते थे कि वे इसे किसके हाथों में सौंपेंगे. मैं अवाक् रह गया कि उन्होंने मुझे इतने दुर्लभ सम्मान के लायक समझा. हम गले मिले, मेरी घिग्घी बंधने लगी और मैंने विराट से कहा कि इससे पहले कि मैं रोने लगूं, आप यहां से चले जाएं."
यह कायापलट 2016-17 आते-आते पूरा हो चुका था, जब विराट ने खेल के तीनों फॉर्मेट में कप्तानी पूरी तरह संभाल ली. वे अब भी जमकर लोहा लेने वाले और बेबाकी से तुर्शी-ब-तुर्शी जवाब देने वाले शख्स थे. उन्हें ऑस्ट्रेलिया के कप्तान को बगैर इन शब्दों का इस्तेमाल किए धूर्त और बेईमान कहने में कोई झिझक नहीं हुई और न ही एम.एस. धोनी की आलोचना करने और टीम में उनकी जगह पर सवाल उठाने के लिए मीडिया को ललकारने में कोई डर महसूस हुआ. इस शख्स को अपनी टीम और सपोर्ट स्टाफ की बिना शर्त वफादारी हासिल है. रुखसत हो रहे कोच अनिल कुंबले के कटु और तीखे लफ्जों से वे हलकान नहीं हुए और न ही सोशल मीडिया पर कुंबले की विदाई से उपजी तीखी प्रतिक्रियाओं ने उनकी नींद हराम की. वे काफी सधे हुए और नपे-तुले थे जब उन्होंने मुझसे कहा, ''मुझे अपने कामों की जिम्मेदारी लेनी होती है, ठीक वैसे ही जैसे मैं अपनी कामयाबी का श्रेय लेता हूं... मीडिया को भी अपना काम करना होता है. उनका हक है कि वे मेरी आलोचना करें. भारतीय क्रिकेट टीम का कप्तान होने के नाते मेरा काम अपनी बेहतरीन काबिलियत से टीम की अगुआई करना है. जब तक मैं अपने काम को लेकर सच्चा हूं और हर बार भारत की अगुआई करते वन्न्त अच्छी से अच्छी तैयारी करता हूं, तब तक मुझे इस बात की कोई फिक्र नहीं है कि मेरे बारे में क्या लिखा और क्या कहा जा रहा है. मैं जानता हूं कि मैं कितनी कड़ी मेहनत करता हूं और जब तक मेरी तैयारी उस तरह चलती है जैसी मैं चाहता हूं, तो नतीजे जरूर आएंगे."
यह अपने आप में जबरदस्त भरोसा है. कुछ लोग गलती से इसे गुरूर समझ लेते हैं. मगर यही विराट के अफसाने को समझने की चाबी भी है. यह, और वह भी जिसे तेंडुलकर अपना ''हाशिये का विजन" कहते हैं, ''वह गेम को बहुत शानदार तरीके से पढ़ सकता है और पहले से अंदाज लगा लेता है कि खेल में आगे क्या होने वाला है. यही वह बात है जो उसे दूसरों से अलग करती है." सचिन अपनी पारी को बहुत बारीकी और सही रफ्तार से आगे बढ़ाने के अलावा एक किस्म से क्रिकेट में दूरंदेशी होने का श्रेय उन्हें दे रहे हो सकते हैं. वे आगे कहते हैं, ''यही वजह है कि वह रन चेज में इतना अच्छा है. वह समझ लेता है कि यह मैच कहां जा सकता है, जिससे उसे अपनी ताकत को सही जगह लगाने में मदद मिलती है."
यह हाशिये का विजन शानदार ढंग से उस वक्त भी दिखाई दिया जब भारत ने 27 मार्च, 2016 को मोहाली में हुए विश्व टी20 मैच में ऑस्ट्रेलिया के भारी-भरकम कुल रनों का पीछा किया और 16-20 नवंबर, 2017 को कोलकाता में श्रीलंका के खिलाफ पहले टेस्ट में भी. मोहाली में विराट ने, उनके हमवतन रविचंद्रन अश्विन के लफ्जों में, ''ऑस्ट्रेलियाई टोटल का मुकम्मल ढंग से पीछा किया" और कोलकाता में उस पिच पर, जो उनके गेंदबाजों के लिए मुश्किल थी, शतक लगाकर मैच का रुख तय कर दिया. खुद भारतीय क्रिकेट के आसमान के सबसे चमकते सितारों में एक, और सबसे तेज (52 मैच) 300 टेस्ट विकेट लेने का शानदार रिकॉर्ड अपने नाम कर चुके, अश्विन कहते हैं, ''यह ऐसा ही है मानो वे स्टेडियम के ग्रिड को एक गणितज्ञ की तरह जानते हैं. उन्हें पता है कि गैप कहां हैं और चेज करते वक्त वे मुकम्मल ढंग से रफ्तार बढ़ाते जाते हैं. वे हम सबसे के लिए रोल मॉडल हैं."
विराट कोहली के एक और मुरीद सौरभ गांगुली के लिए विराट और बाकियों में दिन की रोशनी का फर्क है. वे कहते हैं, ''टेस्ट क्रिकेट में हो सकता है स्टीव स्मिथ थोड़ा-सा आगे हों, पर जब आप खेल के सभी फॉर्मेट देखते हैं, तो यह विराट कोहली ही है." उनके हिसाब से विराट को बैटिंग करते देखना खुद को दावत देने की तरह है, सौरभ कहते हैं, ''वे उस किस्म के खिलाड़ी हैं जो फैंस को टेस्ट क्रिकेट की तरफ वापस ले आएगा." कई फॉर्मेट पर उनकी महारत का राज खोलते हुए सौरभ कहते हैं, ''उनके शॉट सेलेक्शन को करीब से देखिए. वे कभी स्लॉग नहीं करते. जब वे गेंद को ऊंचा उठाते भी हैं, तो वह पारंपरिक क्रिकेटिंग शॉट होता है. आप उन्हें फॉल्स स्ट्रोक खेलते हुए मुश्किल से ही कभी देखेंगे क्योंकि वे सहजता से रन बनाते हैं और तमाम फॉर्मेट में तेजी से स्कोर खड़ा करते हैं, वे कभी दबाव में नहीं आते. और वे तेजी से रन बनाते हैं, इसलिए उन्हें गेंद फेंकते वक्त गेंदबाज हमेशा दबाव में होता है. पेस और स्पिन दोनों के साथ वे बहुत सहज हैं. बाउंस उन्हें मुश्किल में नहीं डालता है, क्योंकि वे पुल शॉट खेल सकते हैं. मुझे लगता है, वे दक्षिण अफ्रीका में भी कामयाब होंगे."
खुद बेहतरीन क्रिकेटरों में एक डेविड वार्नर कहते हैं, ''उनका आत्मविश्वास ही उन्हें अलहदा और खास बनाता है. अगर वे 350 भी चेज कर रहे हों, तो वे जानते हैं कि वे कुछ ही ओवरों में मैच का रुख बदल सकते हैं और दबाव में नहीं आते हैं. जिस शख्स ने महज नौ साल में 50 इंटरनेशनल शतक बनाए हैं, वह बहुत अच्छा खिलाड़ी तो होगा ही."
बढ़ता कद, फिटनेस का कारोबार
विराट की विरासत के बारे में काफी कुछ लिखा जा चुका है, कि उनमें फिटनेस को लेकर कैसी दीवनगी है. मौजूदा भारतीय टीम जाहिर तौर पर क्षेत्ररक्षण के मामले में खेल के हर फॉर्मेट में दुनिया की सबसे बेहतरीन टीम है, जिसमें विराट का फिटनेस मंत्र इस युवा टीम के लिए मानो जीवन का दर्शन बन चुका है. हर दूसरे दिन वह सोशल मीडिया पर अपनी वर्कआउट की तस्वीर साझा करते हैं और ड्रेसिंग रूम में सब उनका अनुसरण करते हैं. फिटनेस में उनके मानक सिर्फ क्रिकेटर नहीं हैं, और वे क्रिस्टिनो रोनाल्डो या जस्टिन गैटिन या वेयड वान नेकर्क या गैरेथ बैले के समकक्ष लगते हैं.
उन्होंने अपने नियम बना रखे हैं, जिसमें सारे भारतीय क्रिकेटरों के लिए यो यो एन्डूयरेंस टेस्ट अनिवार्य है. विराट अब चाहते हैं कि फिटनेस के इस सफर में सारा देश उनके साथ हो. नवंबर में प्यूमा के साथ अपनी स्पोट्र्स और लाइफस्टाइल कंपनी वन8 की शुरुआत करते हुए उन्होंने कहा था, ''हम लोगों को बाहर निकलकर खेलने और खुद पर गर्व करने के लिए राजी कर सकें, तो हम भारत को स्वस्थ बना सकते हैं."
आठ साल के लिए 100 करोड़ रु. के इस सौदे ने विराट के भीतर के कारोबारी को भी बाहर ला दिया. कोला के विज्ञापन को यह कहते हुए उन्होंने इनकार कर दिया था कि उन्हें इस ''उत्पाद में यकीन नहीं है", शायद इसलिए कि यह फिटनेस के उनके सिद्धांत से मेल नहीं खाता, इसके बावजूद विराट आज 14.4 करोड़ डॉलर के साथ भारत का सबसे बड़ा ब्रान्ड हैं और उन्हें एक-दो साल के लिए किए जाने वाले करारों पर भरोसा नहीं है. एक शीर्ष भारतीय ब्रान्ड विशेषज्ञ कहते हैं, ''लंबे जुड़ाव का मतलब है कि वे ब्रान्ड के प्रचार को प्रभावित कर सकते हैं और अपने नजरिये के आधार पर उत्पाद को आकार दे सकते हैं." वे जानते हैं कि खेल में करियर छोटा होता है, जिसमें कुछ ही बेहतरीन पल होते हैं.. इस लिहाज से वे अपने मौजूदा प्रभाव का सही तरीके से इस्तेमाल कर रहे हैं. मौजूदा स्थिति का आकलन कर आदर्शवादी विराट उत्पादों के प्रचार पर अपनी पकड़ मजबूत बना रहे हैं, जिसका मतलब है कि अपनी पसंद को तरजीह देना और आकर्षक प्रस्तावों को ठुकरा देना.
अपने अंतरराष्ट्रीय करियर की सांध्यवेला में चल रहे धोनी के साथ उनके व्यवहार में संकोच और निष्पक्षता झलकती है. पूर्व कप्तान पर जब कभी मीडिया हमला करता है, तो विराट उनके बचाव में आगे आ जाते हैं. 8 नवंबर को प्रेस कॉन्फ्रेंस में वे बरस पड़े, ''मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि क्यों एमएसडी को निशाना बनाया जा रहा है." सौरभ कहते हैं, ''मैंने जो कुछ देखा था, यह उससे अलग है. मुझे यह देखकर अच्छा लगता है कि विराट किस तरह से धोनी का बचाव करते हैं."
चर्चित शादी और नई जिंदगी
कोहली आज एक सेलेब्रिटी हैं और उन्होंने अपनी व्यक्तिगत और पेशेवर जिंदगी के बीच स्पष्ट रेखा खींच रखी है. इटली के ट्यूसकेनी हेरिटेज रिसॉर्ट में अपनी शादी के शानदार, लेकिन निजी समारोह के उनके फैसले और इस पूरे आयोजन में मीडिया की पहुंच सीमित रखने से लेकर प्रतिबद्धता जताने के उनके तरीके तक में इसकी झलक दिखी. शादी के बाद उन्होंने अनगिनत प्रशंसकों और मीडिया के लिए अपने दरवाजे खोल दिएः दिल्ली और मुंबई में हुए दो रिसेप्शन में इटली में मीडिया की गैर-मौजूदगी की भरपाई कर दी. अपनी बल्लेबाजी की तरह अपनी जिंदगी में भी विराट समय का खासा क्चयाल रखते हैं. उनकी शादी उपलब्धि भरे साल के अंत में हुई, जब कप्तान और कोच का विवाद काफी पीछे छूट चुका था, वैसे भी यह वर्ष उनके पेशेवर जीवन का अब तक का सफलतम वर्ष साबित हुआ है और इस वर्ष की विदाई इससे बेहतर भला कैसे हो सकती थी.
नए साल में कठिन चुनौतियां सामने हैं. उपलब्धियों के बावजूद विराट की असली कहानी अभी सामने नहीं आई है. दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के दौरों में किसी एक में भी मिली जीत उनके आसपास अपराजेयता का आभामंडल रच देगी. क्या विराट को चुनौतियों का एहसास है? क्या वे यह जानते हैं कि अगले 12 महीने में विफलता कितनी भारी पड़ सकती है? अक्तूबर, 2017 के आखिर में आई दो रिपोर्ट, जिनमें कोहली के बारे में काफी कुछ लिखा गया था, से मुझे पता चला कि उन्हें इस बात का एहसास है. एक रिपोर्ट कोहली के दुनिया का शीर्ष स्पोट्र्स ब्रान्ड बनने से संबंधित थी, तो दूसरी रिपोर्ट अभिनेत्री और उनकी साझीदार अनुष्का शर्मा से उनके संभावित विवाह पर केंद्रित थी. दोनों ही मामलों में दिलचस्प यह है कि कोहली कुछ भी करें, उन्हें जायज ठहराया गया था. बेशक, वे कुछ कहते हैं या करते हैं, तो वह खबर बन जाती है. इसलिए जब यह पता चला कि वे अनुष्का से शादी कर सकते हैं, तो यह सारे मीडिया के लिए ब्रेकिंग न्यूज थी. और कुछ दिनों में ही पता चला कि कोहली ने भारत के सबसे कीमती ब्रान्ड के रूप में शाहरुख खान को बेदखल कर दिया. बहुत कुछ दांव पर लगा है और कोहली अपने कारोबार की ऊंच-नीच जानते हैं.
कोहली के बारे में अभी बहुत कुछ लिखा जाना है. पांच साल बाद क्या वे भारत के सबसे महान बल्लेबाज और सबसे शानदार कप्तान होंगे या फिर उनका पतन ऐसे निरंकुश के रूप में होगा जिसने किवंदती जैसे कुंबले के साथ बुरा बर्ताव किया? क्या उनके लिए यह मायने रखता है कि उन्हें हम आखिर किस रूप में देखते हैं? एक व्यक्ति के रूप में कोहली को क्या वाकई इसकी परवाह है? मेरा आकलन है कि वे असलियत में ऐसे नहीं हैं. ऐसा लगता है कि वे समय को पूरा जीते हैं, अपने जिम में, अपने प्रशिक्षण में, अपनी शादी में और 22 गज की पिच पर. मेरा आकलन है कि वे करोड़ों रुपए के प्रचार संबंधी करारों को यूं ही नहीं जाने देंगे. उन्हें अपनी जिम्मेदारियों का एहसास है, वे जब बल्लेबाजी करते हैं या अभ्यास कर रहे होते हैं तो पूरी तरह से एकाग्र होते हैं. मानो कोई मानवीय रोबोट हों. गुजरे दिनों के ऑल राउंडर इयान बाथम कहते हैं, ''विराट में अच्छी बात है कि वे जीतने के लिए खेलते हैं. हालात कैसे भी हों, वे मैच जीतना चाहेंगे. यही बात उन्हें खास बनाती है."
संध्या द्विवेदी