2 से 5 लाख रुपये में लीक होते हैं PMO के गोपनीय दस्तावेज, जानिए कैसे चलता है पूरा खेल

क्या आप जानते हैं कि गोपनीय सरकारी सूचनाएं लीक करने का एक पूरा रैकेट है और हर तरह के दस्तावेज की अलग-अलग कीमतें हैं. दिल्ली का सुसंगठित सूचना नेटवर्क कारोबारियों को फायदा पहुंचाने के मकसद से सरकार की गोपनीय सूचनाएं लीक करता है.

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aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 04 मार्च 2015,
  • अपडेटेड 12:41 AM IST

क्या आप जानते हैं कि गोपनीय सरकारी सूचनाएं लीक करने का एक पूरा रैकेट है और हर तरह के दस्तावेज की अलग-अलग कीमतें हैं. दिल्ली का सुसंगठित सूचना नेटवर्क कारोबारियों को फायदा पहुंचाने के मकसद से सरकार की गोपनीय सूचनाएं लीक करता है. यह नेटवर्क फाइव स्टार होटलों, कॉफी की दुकानों और फार्महाउसों से चलता है. आपको बताते हैं कि कैसे मिलती है गोपनीय सूचनाएं और क्या होती है इस सूचना की कीमतः

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सूचना की कीमतः हर दस्तावेज की कीमत गोपनीयता के आधार पर तय होती है, गैर-वर्गीकृत पत्राचार से लेकर पीएमओ के दस्तावेज तक.

प्रधानमंत्री कार्यालय के दस्तावेजः 2-5 लाख रुपये.
रिपोर्ट, अनुमान, सर्वे, विभागीय बैठकों और मंत्री स्तर की बातचीत की जानकारियां: 50,000-1 लाख रुपये.
एक पेज की अधिसूचना या मीटिंग की रिपोर्टः 1,000 रुपये.

सूचना की जरूरत क्यों?
रणनीतिक जानकारियां: कारोबारी फैसलों की ताजा जानकारी के लिए नियोजकों द्वारा इस्तेमाल

बाधाएं हटानाः नियमित रूप से सूचनाएं मिलने से कंपनियों को प्रस्तावों का तेजी से अनुसरण करने में मदद मिलती है, खासकर किसी निजी कॉरपोरेट घरानों से संबंधित प्रस्तावों के मामले में या प्रतिस्पर्धा से जुड़े मामलों में.

समय पर दखलः नीति बनाने की प्रक्रिया विभाग के सेक्शन अफसर के स्तर से शुरू होती है और क्रमवार ढंग से कैबिनेट तक जाती है. कंपनी के अधिकारी अपने पक्ष में चीजों को बदलने की कोशिश करते हैं या हस्तक्षेप करने के लिए कंपनियों के उच्च स्तर के संपर्कों का इस्तेमाल करते हैं.

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बहस शुरू करनाः अगर कॉरपोरेट घराने नीतियों को प्रभावित करने में नाकाम रहते हैं तो वे सार्वजनिक राय तैयार करने की कोशिश करते हैं और सरकार पर दबाव डालने के लिए उद्योग के मंचों को सक्रिय करते हैं.

किसको होती है सूचना की जरूरत
तीसरे व चौथे श्रेणी के कर्मचारी कागजात की हाथ से या इलेक्ट्रॉनिक तरीके से कॉपी करते हैं. 5,000 रु. से 2.5 लाख रु. लेते हैं.

सरकार में रसूख रखने वालेः सरकारी संपर्क टीमें कॉरपोरेट घरानों में काम करती हैं. राजनैतिकों, नौकरशाहों, पत्रकारों और सरकारी विभागों में पहुंच रखने वाले किसी भी व्यक्ति के साथ नेटवर्क.

लॉबीइंग करने वाले या कंसल्टेंटः कागजात चुराने और नीतिगत फैसलों की जानकारी हासिल करने के लिए संपर्कों का इस्तेमाल करते हैं. अपने ग्राहकों को फायदे पहुंचाते हैं.

पत्रकारः खबरों के लिए कागजात हासिल करते हैं. कुछ पत्रकार बेहतर सौदों के लिए उन्हें बेच देते हैं. नकद या दूसरे रूप में भुगतान लेते हैं, जो सूचना की किस्म पर निर्भर करता है.

-संदीप उन्नीथन, अंशुमान तिवारी और कौशिक डेका

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