कांवड़ियों के लिए खास है वैद्यनाथ मंदिर स्थ‍ित 9वां ज्योतिर्लिंग

झारखंड के देवघर जिला स्थित वैद्यनाथ मंदिर 12 ज्योतिर्लिगों में नौवां ज्योतिर्लिंग है. वैसे तो वैद्यनाथ धाम में प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु आते हैं, परंतु भगवान शिव के सबसे प्रि‍य महीने सावन में यहां उनके लाखों भक्तों का हुजूम उमड़ता है. यहां प्रतिदिन करीब एक लाख भक्त आकर ज्योतिर्लिंग का जलाभिषेक करते हैं. इनकी संख्या सोमवार के दिन और बढ़ जाती है.

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aajtak.in

  • देवघर,
  • 20 जुलाई 2014,
  • अपडेटेड 3:30 PM IST

झारखंड के देवघर जिला स्थित वैद्यनाथ मंदिर 12 ज्योतिर्लिगों में नौवां ज्योतिर्लिंग है. वैसे तो वैद्यनाथ धाम में प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु आते हैं, परंतु भगवान शिव के सबसे प्रि‍य महीने सावन में यहां उनके लाखों भक्तों का हुजूम उमड़ता है. यहां प्रतिदिन करीब एक लाख भक्त आकर ज्योतिर्लिंग का जलाभिषेक करते हैं. इनकी संख्या सोमवार के दिन और बढ़ जाती है.

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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, लंकापति रावण ने यह ज्योतिर्लिंग यहां लाया था. शिव पुराण के अनुसार, शिव ने रावण को उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर मनोवांछित वरदान दिया था. रावण ने भगवान शिव को कैलाश पर्वत से अपने साथ लंका ले जाने की इच्छा व्यक्त की थी. भगवान शिव ने खुद लंका जाने से मना कर दिया, लेकिन अपने भक्त रावण को ज्योतिर्लिंग ले जाने की सलाह दी. साथ ही शर्त लगा दी कि इसे अगर रास्ते में कहीं धरती पर रखा, तो यह वहीं स्थापित हो जाएगा, वहां से कोई उसे उठा नहीं पाएगा.

इधर, भगवान विष्णु नहीं चाहते थे कि ज्योतिर्लिंग लंका पहुंचे. उन्होंने गंगा को रावण के पेट में समाने का अनुरोध किया. गंगा जैसे ही रावण के पेट में समाई, रावण को तीव्र लघुशंका लगी. वह सोचने लगा कि किसको ज्योतिर्लिंग सौंपकर वह लघुशंका से निवृत्त हो. उसी क्षण ग्वाले के वेश में भगवान विष्णु वहां प्रकट हुए. रावण ने ग्वाले को ज्योतिर्लिंग सौंप दिया और हिदायत दी कि जब तक वह न आए, तब तक ज्योतिर्लिंग को वह जमीन पर न रखे.

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रावण लघुशंका करने लगा, गंगा के प्रभाव से उसे निवृत्त होने में काफी देर लग गई. वह जब लौटा, तो ग्वाला ज्योतिर्लिंग को जमीन पर रखकर विलुप्त हो चुका था. इसके बाद रावण ने ज्योतिर्लिंग को उठाने की लाख कोशिश की, मगर सफल नहीं हो सका, उसे खाली हाथ लंका लौटना पड़ा. बाद में सभी देवी-देवताओं ने आकर उस ज्योतिर्लिंग को विधिवत स्थापित किया और पूजा-अर्चना की. काफी दिनों बाद बैजनाथ नामक एक चरवाहे को इस ज्योतिर्लिंग का दर्शन हुआ. वह प्रतिदिन इसकी पूजा करने लगा. इसी कारण इस ज्योतिर्लिग का नाम वैद्यनाथ हो गया.

देवघर के बालानंद संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. मोहनानंद मिश्र ने बताया, ‘इस ज्योतिर्लिंग की कथा विभिन्न पुराणों में वर्णित है, किंतु शिव पुराण में यह कथा विस्तृत रूप से है. वर्णित है कि वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं भगवान विष्णु ने की थी. जिस स्थान पर यह ज्योतिर्लिंग है, उसके अनेक नाम प्रचलित हैं. जैसे हरितकी वन, चिताभूमि, रणखंड, रावणेश्वर कानन, हृदयपीठ.’

सावन में कांवड़ लेकर वैद्यनाथ धाम जाने का बहुत महत्व है. शिव भक्त सुल्तानगंज में उत्तर वाहिनी गंगा से जल भरकर 105 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर यहां पहुंचते हैं और भगवान का जलाभिषेक करते हैं. सामान्यतया कांवड़ में जल भरकर चलने वाले भक्तों को ‘बम’ कहा जाता है, परंतु जो इस यात्रा को 24 घंटे में पूरा करते हैं वे ‘डाक बम’ कहलाते हैं.

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यहां आने वाले लोगों का मानना है कि भगवान शिव उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं, खासकर वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की उपासना का महत्व रोगमुक्ति और कामनाओं की पूर्ति के कारण है. मंदिर परिसर के चारों तरफ बाजार है, जहां बाबा को चढ़ाने के लिए बेलपत्र, फूल और प्रसाद मिल जाते हैं. यहां का मुख्य चढ़ावा चूड़ा, पेड़ा, चीनी का बना इलायची दाना आदि है, जिसे लोग यहां से प्रसाद स्वरूप खरीदकर अपने घर ले जाते हैं.

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