बोधगया ब्लास्ट: दहशत की दस्तक

महाबोधि मंदिर पर हुए हमलों की वजह से राज्य सरकार चौतरफा हमलों से घिरी. विपक्ष ने नीतीश पर तीखे किए हमले. आइबी ने हमले होने की आंशका पहले ही जता दी थी.

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अमिताभ श्रीवास्तव

  • पटना,
  • 16 जुलाई 2013,
  • अपडेटेड 7:05 PM IST

हल्के नीले रंग की वर्दी में सिक्योरिटी गार्ड रामधनी यादव महाबोधि मंदिर में पुलिस की बढ़ती उपस्थिति से परेशान हैं. रविवार को एक के बाद एक, दस धमाकों के बाद मंदिर की सुरक्षा के लिए बिहार मिलिट्री पुलिस के दो दर्जन कर्मियों को देखकर यादव का कहना है, ''उम्मीद है कि ये हमारी नौकरी नहीं लेंगे. '' गया जिले में बेला गांव के रामधनी यादव ने कई साल धनबाद में कोयला व्यापारी के गेटमैन की नौकरी करने के बाद इस साल मई में ही 4,000 रु. महीने की यह नौकरी हासिल की है.

धमाकों से पहले 42 वर्षीय यादव सहित 16 प्राइवेट सिक्योरिटी गार्ड को दो शिफ्ट पाली में महाबोधि मंदिर की सुरक्षा सौंपी गई थी. यह सभी सही ढंग से शिक्षित भी नहीं हैं. विश्व धरोहर स्थल महाबोधि मंदिर अक्तूबर, 2012 से आधिकारिक रूप से आतंकी हमले के खतरे की सूची में है.

बोधगया मंदिर प्रबंधक समिति (बीटीएमसी) को बोधगया मंदिर कानून 1949 के तहत महाबोधि मंदिर के प्रबंध की जिम्मेदारी मिली हुई है. उसने मंदिर की भीतरी सुरक्षा का ठेका मामूली-सी प्राइवेट सिक्योरिटी एजेंसी कोबरा को दे रखा था. यादव को भर्ती करते समय कोबरा ने उसे वर्दी और सोने की जगह देने के साथ-साथ सैल्यूट करना सिखाने के लिए एक दिन की ट्रेनिंग भी दी थी और इतनी सी ट्रेनिंग के बाद उन्हें मंदिर की भीतरी सुरक्षा पर तैनात कर दिया.

महाबोधि मंदिर की सुरक्षा के लिए कम वेतन और कमजोर ट्रेनिंग वाले सिक्योरिटी गार्ड की तैनाती तो इस बात की सिर्फ  एक मिसाल है कि सुरक्षा के ढांचे का लडख़ड़ाना बिहार सरकार के शिखर से शुरू हुआ और राज्य के गृह विभाग, पुलिस मुख्यालय, बोधगया पुलिस और बीटीएमसी तक ध्वस्त होता चला गया.

रविवार को धमाकों के कुछ घंटों के बाद नीतीश कुमार जब बोधगया पहुंचे तो वे जानते थे कि सुरक्षा कैसे भंग हुई. उन्होंने तुरंत सीआइएसएफ से सुरक्षा मांगी. नीतीश ने बोधगया में मीडिया से बातचीत में धमाकों को सुरक्षा में चूक का नतीजा मानने से इनकार कर दिया. लेकिन सवाल यह है कि खुफिया जानकारी मिलते ही उन्होंने सीआइएसएफ  की तैनाती की मांग क्यों नहीं की थी.

महाबोधि मंदिर केंद्र संरक्षित स्मारकों में शामिल नहीं है इसलिए उसकी सुरक्षा सीआइएसएफ को नहीं सौंपी गई है. इसके अलावा मंदिर का संचालन बीटीएमसी के हाथ में होने की वजह से मंदिर की सुरक्षा में भारत के पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) विभाग का कोई दखल नहीं है. बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी कहते हैं, ''नीतीश कुमार किसी और को दोष नहीं दे सकते. दोष उनका है. राज्य के गृह और पर्यटन मंत्री होने के नाते महाबोधि मंदिर की सुरक्षा की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री की है. '' नीतीश कुमार सरकार पहले से जानती थी कि महाबोधि मंदिर कितना खतरे में है और इंडियन मुजाहीद्दीन (आइएम) के आतंकी उसे निशाना बनाने के लिए कितने बेताब हैं.

अक्ïतूबर, 2012 में गया के तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक विनय कुमार को असद खान, इमरान खान, सईद फिरोज उर्फ हम्जा और इरफान मुस्तफा से पूछताछ के सिलसिले में दिल्ली बुलाया गया था. दिल्ली पुलिस ने इन चारों को अगस्त, 2012 में पुणे विस्फोट के सिलसिले में पकड़ा था. तब इन चारों ने कुबूल किया था कि उनके इंडियन मुजाहिद्दीन साथी सईद मकबूल उर्फ जुबैर ने म्यांमार में मुस्लिमों पर हो रही कथित ज्यादतियों का बदला लेने के लिए बोधगया में मंदिरों पर हमले की योजना बनाई थी. मकबूल तो हैदराबाद में गिरफ्तार हो गया लेकिन महाबोधि मंदिर पर इंडियन मुजाहिद्दीन के हमले की आशंका बनी रही क्योंकि यह भटकल बंधुओं की योजना में शामिल था. विनय कुमार ने इस बारे में सरकार को रिपोर्ट भेजी थी और इस साल मार्च में उनका गया से तबादला हो गया.

इंटेलीजेंस ब्यूरो ने इसी साल मार्च में दूसरी बार आतंकी हमले की संभावना की सूचना बिहार को दी थी. इसमें बताया गया था कि इंडियन मुजाहिद्दीन के दो आदमी भीड़ वाली जगहों पर बम धमाके करने के लिए राज्य में घुसे हैं और इसमें खासतौर पर पटना को निशाने पर बताया गया था. आइबी की गोपनीय सूचना में दावा किया गया था कि दोनों आतंकवादी सिरफिरे हैं और वे खून से लथपथ लाशों का मजा लेना चाहते हैं. रविवार को बोधगया में हुए सिलसिलेवार धमाकों से लगता है कि सूचना को गंभीरता से नहीं लिया गया.

पांच धमाके महाबोधि मंदिर परिसर के भीतर हुए, तीन तेरगर मठ में हुए जहां करीब 200 प्रशिक्षु भिक्षु रहते हैं और एक-एक धमाका 80 फुट की बुद्ध प्रतिमा के पास और बाइपास के करीब बस स्टैंड पर हुए. तीन बिना फटे और निष्क्रिय किए हुए बम भी बरामद हुए. इतने साल से बिहार सरकार ने महाबोधि मंदिर की सुरह्ना से पल्ला झड़े रखा. यह किसी को नहीं मालूम की मूल रूप से मंदिर की साफ-सफाई, मरम्मत, श्रद्धालुओं की देखभाल और सुरक्षा तथा मंदिर के भीतर सही ढंग से पूजा-अर्चना के लिए जिम्मेदार बीटीएमसी ने भीतरी सुरक्षा की जिम्मेदारी कब संभाली. बीटीएमसी के सदस्य अरविंद सिंह का कहना है, ''हमने तो प्राइवेट सिक्योरिटी गार्ड रखने की दशकों से चली आ रही परंपरा को ही निभाया है. कोबरा सिक्योरिटी एजेंसी को दो साल पहले रखा गया था. ''

बीटीएमसी में गया के जिला अधिकारी पदेन अध्यक्ष हैं. 8 सदस्यों को राज्य सरकार 3 साल के लिए मनोनीत करती है. उनमें 4 बौद्ध और 4 हिंदू होते हैं. इनमें शिव मंदिर के महंत के अलावा बाकि 3 हिंदू सदस्य राजनैतिक सिफारिश से आए हैं. अरविंद सिंह और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्रनाथ वर्मा की बहू कुमुद वर्मा जेडी (यू) और भोला मिश्रा बीजेपी के नेता हैं. मौजूदा समिति 2008 में गठित हुई थी. 2011 में उसे दूसरा कार्यकाल दे दिया गया.

पटना में एक वरिष्ठ आइपीएस अधिकारी ने कहा कि महाबोधि मंदिर की सुरक्षा नौसिखिए हाथों में सौंपना राज्य सरकार की बड़ी लापरवाही थी. आतंकी हमले की आशंका की पक्की सूचना मिलने के बाद भी सुरह्ना प्रबंध की जिम्मेदारी बीटीएमसी के हाथ में रखना सरकार और जिला प्रशासन की भयंकर भूल है. इसके लिए सिर्फ बीटीएमसी को बलि का बकरा नहीं बनाया जा सकता. जिन्होंने उसे नियुक्त किया था, असली जिम्मेदारी उन्हीं की बनती है.

बीटीएमसी की अक्षमता को साफ तौर पर उजागर करते हुए गया के पुलिस महानिरीक्षक नैय्यर हसनैन खान ने 3 जुलाई को सुरक्षा की समीक्षा के लिए हुई बैठक में सिफारिश की थी कि समिति के गार्ड्स को पूरी ट्रेनिंग दी जाए क्योंकि उन्हें मैटल डिटेक्टर पकडऩा भी नहीं आता. गया के एक पुलिस अधिकारी के अनुसार बीटीएमसी और गया जिला पुलिस ने सप्ताहांत के बाद खान के सुझावों पर अमल करने का फैसला किया था. लेकिन तब तक धमाके हो गए.

बिहार मंत्रिमंडल ने पुलिस मुख्यालय से राज्य के एटीएस के गठन का प्रस्ताव मिलने के करीब साढ़े चार साल बाद इसके गठन को 9 जुलाई को मंजूरी दी. बिहार एटीएस में 344 कर्मी होंगे. आइजी रैंक के एक अधिकारी के नेतृत्व में इसका बजट 15.3 करोड़ रु. सालाना होगा.

आतंकी हमलों की सूचना पर अमल करने के बारे में नीतीश सरकार बहुत हद तक नकारा साबित हुई है क्योंकि यह धारणा मजबूत थी कि इस्लामी आतंकी गुट बिहार में ही भर्ती करते हैं इसलिए उसे निशाना नहीं बनाएंगे. शायद इसीलिए मंदिर पर हमले के बारे में इंटेलीजेंस ब्यूरो की एकदम स्पष्ट चेतावनी मिलने के बावजूद बिहार सरकार सोती रही. जुलाई 2006 से विभिन्न सरकारी एजेंसियों ने बिहार में मधुबनी, किशनगंज और दरभंगा जिलों से विभिन्न आतंकी हमलों में भागीदारी के आरोप में 16 लोगों को गिरफ्तार किया है. इनमें से 11 पिछले दो साल में पकड़े गए हैं.

ऐसी आखिरी गिरफ्तारी एक साल पहले मई 2012 में हुई थी. बंगलुरू में चिन्नास्वामी स्टेडियम में धमाके के सिलसिले में कर्नाटक पुलिस ने कफील अख्तर को दरभंगा से पकड़ा था. मुख्यमंत्री ने उस गिरफ्तारी का कड़ा विरोध किया था. उनका आरोप था कि गिरफ्तारी से पहले कर्नाटक पुलिस ने स्थानीय पुलिस से संपर्क नहीं किया. नीतीश के इस विरोध से शायद उन्हें अल्पसंख्यक समुदाय से कुछ सहानुभूति मिली होगी. उसके बाद से बिहार में कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है. उसी महीने दरभंगा में बाढ़ समाइला के मकेनिकल इंजीनियर फसीह महमूद को आतंकी संपर्कों के आरोप में सऊदी अरब से पकड़ा गया था.

सिलसिलेवार धमाकों के तीन दिन बाद 15 सीसीटीवी कैमरों से धुंधली तस्वीरें मिली क्योंकि किसी में भी नाइटविजन नहीं था. पुलिस ने पांच लोगों को शक में पकड़ा. महाबोधि महावीर परिसर में लावारिस बैग में मिले मतदाता पहचान पत्र के आधार पर पुलिस ने रविवार को एक नौजवान को पकड़ा था. बैग में बौद्ध भिक्षुओं का गेरुआ परिधान सिवारा भी था. इस नौजवान ने अपना पहचानपत्र खोने का दावा किया और इसे औपचारिक रूप से गिरफ्तार नहीं किया गया. पटना से पकड़ी गई महिला सहित चार युवाओं ने रविवार की आधी रात को सिर्फ दो घंटे के लिए बोधगया में एक होटल में एक कमरा किराये पर लिया था. बाद में वे पटना लौट गए थे. इन पांचों को पूछताछ के बाद जाने दिया गया है. यानी अब भी एनआइए और बिहार पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला है.

शुरुआती दौर में अभी तक कोई कामयाबी नहीं मिल सकी है. राज्य प्रशासन बेहद सतर्क है और उसने इंडियन मुजाहिद्दीन का नाम नहीं लिया है. लेकिन बोधगया में मौजूद आंध्र प्रदेश एटीएस के अधिकारी ने इंडिया टुडे को बताया कि इस पूरी साजिश को अंजाम देने का तरीका इंडियन मुजाहिद्दीन जैसा ही है.

सीसीटीवी कैमरों से मिली तस्वीरों में नजर आ रहे लोगों की सही पहचान करने के लिए उन्हें अत्याधुनिक लेबोरेटरीज में भेजा जाना है. कैमरों में सिर्फ दो दिन की फुटेज रखने की क्षमता है और पुलिस के पास सिर्फ वही सुराग है.

रविवार को सुबह 5.30 से 5.58 के बीच हुए 10 धमाकों का एक ही मकसद था कि सुबह-सुबह जब बौद्ध अनुयायी प्रार्थना के लिए आएं तो खून-खराबा हो. तेरगर मठ में फटे तीन बम खेल के मैदान में लगाए गए थे, जहां नए भिक्षु फुटबॉल खेलते हैं. एक वरिष्ठ आइपीएस अधिकारी की नजर में धमाके कमजोर थे लेकिन सिरफिरे दिमागों की उपज थे. बिहार के पुलिस महानिदेशक अभयानंद ने कहा कि छानबीन लंबी चलेगी क्योंकि तमाम सुरागों को जोडऩा है और गैर जरूरी सूचनाओं को हटाना है. छानबीन में एक बड़ी कमी पर्याप्त सुरागों के अभाव की है. एनआइए बिना फटे निष्क्रिय बमों की जांच नहीं कर पाई है क्योंकि उन्हें कोर्ट में पेश करने के लिए रखा गया है और इनकी जांच के लिए कोर्ट की अनुमति चाहिए.

अभी तक उस मिनी गैस सिलिंडर के टुकड़ों में अमोनियम नाइट्रेड छिपा हुआ मिला है जिसमें बम रखा गया था. एनआइए को धमाकों से पहले और बाद में बोधगया आने-जाने वाली मोबाइल फोन कॉल का ब्यौरा मिल गया है. अभी उनकी छानबीन की जा रही है और उनमें से एक नंबर पर नजरें टिक गई हैं. जिससे नई दिल्ली के एक ही नंबर पर 40 एसएमएस भेजे गए थे. अब इस नंबर की जांच की जा रही है.

उन नंबरों की विशेष तौर पर पड़ताल की जा रही है जो धमाकों के बाद बंद पाए गए. छानबीन करने वालों का मानना है कि कम से कम 15 लोगों ने बम लगाए थे. अब तो धुंधली वीडियो फुटेज के अलावा मोबाइल फोन से मिले नतीजों का ही सहारा है.

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