AGR पर सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट की कंपनियों और सरकार को फटकार- अदालत बंद कर दें?

AGR Issue सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू यानी AGR का बकाया चुकाने के मसले पर फिर से सुनवाई शुरू हुई. टेलीकॉम कंपनियों ने एजीआर चुकाने के लिए मोहलत मांगी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसमें देरी पर कंपनियों और सरकार को जमकर फटकार लगाई.

Advertisement
AGR बकाये के लिए मोहलत देने पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई AGR बकाये के लिए मोहलत देने पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

संजय शर्मा / अनीषा माथुर

  • नई दिल्ली,
  • 14 फरवरी 2020,
  • अपडेटेड 2:49 PM IST

  • टेलीकॉम कंपनियों के एजीआर बकाए पर सुनवाई
  • बकाया चुकाने में देरी पर टेलीकॉम कंपनियों को फटकार
  • सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए अवमानना का नोटिस दिया
  • टेलीकॉम कंपनियों को करीब 1.47 लाख करोड़ देने हैं

सुप्रीम कोर्ट ने एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू यानी AGR के बकाया चुकाने में देरी पर टेलीकॉम कंपनियों और सरकार को जमकर फटकार लगाई है. कोर्ट ने कहा कि उसे जो आदेश देना था दे चुका है और टेलीकॉम कंपनियों को पैसा चुकाना ही होगा. जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच ने कहा कि यह अवमानना का मामला है, क्या हमें अब सुप्रीम कोर्ट को बंद कर देना चाहिए?

Advertisement

यह टेलीकॉम कंपनियों के लिए एक बड़ा झटका है. गौरतलब है कि शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू यानी AGR के मसले पर फिर से सुनवाई शुरू हुई. टेलीकॉम कंपनियों ने एजीआर चुकाने के लिए मोहलत मांगी थी. अंतिम तिथ‍ि 23 जनवरी को बीत चुकी है. अदालत ने सरकार और कंपनियों के वरिष्ठ अफसरों को कोर्ट की अवमानना का नोटिस भी दिया है.

क्या कहा कोर्ट ने

जस्टिस अरुण मिश्रा ने याचिकाओं पर नाराजगी जताते हुए कहा, 'ये याचिकाएं दाखिल नहीं करनी चाहिए थीं. ये सब बकवास है. क्या सरकारी डेस्क अफसर सुप्रीम कोर्ट से बढ़कर है जिसने हमारे आदेश पर रोक लगा दी.  अभी तक एक पाई भी जमा नहीं की गई है. हम सरकार के डेस्क अफसर और टेलीकॉम कंपनियों  पर अवमानना की कार्रवाई करेंगे. क्या हम सुप्रीम कोर्ट को बंद कर दें ? क्या देश में कोई कानून बचा है? क्या ये मनी पॉवर नहीं है?'

Advertisement

सुप्रीम कोर्ट ने कड़े शब्दों में कहा कि इस प्रकार की मोहलत मांगने वाली याचिका दाख‍िल ही नहीं करनी चाहिए थी. ये सब शोर-शराबा कौन कर रहा ?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा-' हम इस मामले में बहुत कड़े शब्दों का इस्तेमाल करना चाहते हैं. यह पूरी तरह से बेवकूफी है. जो कहना था हमने कह दिया. आपको पैसा चुकाना ही होगा.'

यह टेलीकॉम कंपनियों के लिए एक बड़ा झटका है.  जस्टिस अरुण मिश्रा ने याचिकाओं पर नाराजगी जताते हुए कहा, 'ये याचिकाएं दाखिल नहीं करनी चाहिए थीं. ये सब बकवास है. क्या सरकारी डेस्क अफसर सुप्रीम कोर्ट से बढ़कर है जिसने हमारे आदेश पर रोक लगा दी.  अभी तक एक पाई भी जमा नहीं की गई है. हम सरकार के डेस्क अफसर और टेलीकॉम कंपनियों  पर अवमानना की कार्रवाई करेंगे. क्या हम सुप्रीम कोर्ट को बंद कर दें ? क्या देश में कोई कानून बचा है? क्या ये मनी पॉवर नहीं है?'

टेलीकॉम कंपनियों को अवमानना का नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने दूरसंचार विभाग के वरिष्ठ अफसरों को जवाब देने के लिए कहा कि उनके ख‍िलाफ अवमानना की कार्रवाई क्यों न की जाए. यही नहीं ऐसे अफसरों और सभी टेलीकॉम कंपनियों के सीएमडी को 17 मार्च को कोर्ट की अवमानना मामले की सुनवाई का सामना करना पड़ेगा. सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना के लिए एयरटेल और वोडफोन आइडिया जैसी कंपनियों को कारण बताओ नोटिस भी दिया है.

Advertisement

जस्टिस मिश्रा ने कहा, 'DoT ने ये नोटिफिकेशन कैसे जारी किया कि अभी भुगतान ना करने पर कंपनियों के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई नहीं करेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस के ज़रिए कोर्ट ने पूछा है कि क्यों ना उन कंपनियों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू की जाए.

सरकार को भी फटकार- देश में कानून का राज है या नहीं 

इस मसले पर देरी पर काफी नाराजगी दिखाते हुए जस्ट‍िस मिश्रा ने कहा-सरकार का टेबल पर बैठा एक अध‍िकारी हमारे आदेश को रोक देता है. इस देश में कोई कानून बचा है या नहीं ? उस अध‍िकारी को यहां बुलाएं.' कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से स्पष्टीकरण देने को कहा कि आख‍िर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करते हुए टेलीकॉम कंपनियों को  मोहलत कैसे दी.

भारती एयरटेल, वोडाफोनआइडिया और टाटा टेलीसर्विसेज ने नई याचिका दाख‍िल कर सुप्रीम कोर्ट से यह गुहार लगाई थी कि करीब 1.47 लाख करोड़ रुपये के एजीआर बकाया चुकाने के लिए उन्हें और मोहलत दी जाए. जस्ट‍िस अरुण मिश्रा, एस अब्दुल नजीर और एमआर शाह की पीठ ऐसी कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है.

इसे भी पढ़ें:  क्या है AGR जिसकी वजह से बर्बादी की कगार पर खड़ी हैं टेलीकॉम कंपनियां

क्या है मामला

Advertisement

गौरतलब है कि इसके पहले 16 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने एजीआर चुकाने के अपने आदेश पर पुनर्विचार करने की याचिका को खारिज कर दिया था. कोर्ट ने कहा था कि इसके लिए कोई 'वाजिब वजह' नहीं दिखती. पिछले साल अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि टेलीकॉम कंपनियों को एजीआर का बकाया दूरसंचार विभाग को देना ही होगा.

कितना देना है कंपनियों को

इस आदेश के मुताबिक एयरटेल को 21,682.13 करोड़ रुपये, वोडाफोन को 19,823.71, रिलायंस कम्युनिकेशंस को 16,456.47 करोड़ रुपये औरबीएसएनएल को 2,098.72 करोड़ रुपये देने हैं.

वोडाफोन को 6,438 करोड़ का घाटा

सरकार द्वारा वसूले जाने वाले एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) की वजह से कई टेलीकॉम कंपनियां बर्बादी की कगार पर पहुंच गई हैं. वोडाफोन आइडिया को दूसरी तिमाही में भारतीय कॉरपोरेट इतिहास का सबसे ज्यादा 50,921 करोड़ रुपये का बड़ा घाटा हुआ था. तीसरी तिमाही के लिए गुरुवार को जारी परिणाम के अनुसार वाडोफोन को 6,438.8 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है. कंपनी का लगातार छठे तिमाही भारी घाटा हुआ है.

इसी तरह एयरटेल को भी 23,045 करोड़ रुपये का बड़ा घाटा हुआ है. आखिर क्या है यह मसला, क्यों इससे तबाह हो रही हैं टेलीकॉम कंपनियां? आइए इसे समझते हैं.

क्या होता है AGR

Advertisement

एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) संचार मंत्रालय के दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा टेलीकॉम कंपनियों से लिया जाने वाला यूजेज और लाइसेंसिग फीस है. इसके दो हिस्से होते हैं- स्पेक्ट्रम यूजेज चार्ज और लाइसेंसिंग फीस, जो क्रमश 3-5 फीसदी और 8 फीसदी होता है.

क्या था विवाद

दूरसंचार विभाग कहता है कि AGR की गणना किसी टेलीकॉम कंपनी को होने वाले संपूर्ण आय या रेवेन्यू के आधार पर होनी चाहिए, जिसमें डिपॉजिट इंट्रेस्ट और एसेट बिक्री जैसे गैर टेलीकॉम स्रोत से हुई आय भी शामिल हो. दूसरी तरफ, टेलीकॉम कंपनियों का कहना था कि AGR की गणना सिर्फ टेलीकॉम सेवाओं से होने वाली आय के आधार पर होनी चाहिए.

साल 2005 में सेलुलर ऑपरेटर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (COAI) ने एजीआर की गणना के सरकारी परिभाषा को चुनौती दी थी, लेकिन तब दूरसंचार विवाद समाधान और अपील न्यायाधिकरण (TDSAT) ने सरकार के रुख को वैध मानते हुए कंपनियों की आय में सभी तरह की प्र‍ाप्तियों को शामिल माना था. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी संचार मंत्रालय के पक्ष में अपना निर्णय दिया.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement