तेलंगाना डायरीः सालों से किसान आत्महत्या का सिलसिला जारी और सत्ता बदलने का भी !

सरकारों और नेताओं की वादाखिलाफी की बानगी है नमरेटा गांव. यहां के स्थानीय लोग कहते हैं. मोदी की सरकार हो या फिर टीआरएस की सब कहते हैं कि किसानों की किस्मत बदलेगी लेकिन अब तक बदली नही, क्यों?

Advertisement
तेलंगाना का एक गांव तेलंगाना का एक गांव

संध्या द्विवेदी / मंजीत ठाकुर

  • ,
  • 04 दिसंबर 2018,
  • अपडेटेड 2:29 PM IST

सुजीत ठाकुर, नवगांव (तेलंगाना)। मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव को जीत का भरोसा इसलिए है क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके शाशन काल मे राज्य के किसानों की खुशहाली चरम पर है. हर किसान परिवार को 8000 रु. उनके शाशन काल मे दिए गए हैं. सिचाई के लिए बिजली मुफ्त दे रहे हैं. उनके खिलाफ चुनाव मैदान कांग्रेस की अगुवाई में डटी प्रजाकुटमी पार्टी किसानों के 2 लाख रु. तक के कर्ज माफी का वादा कर रही है. चुनाव में भाजपा खुद को और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को किसानों की सबसे बड़ी हितैषी बात रही है. एक दो नहीं बल्कि दर्जनों ऐसे काम भाजपा बात रही है जो मोदी ने किसानों की खुशहाली के लिए किया हैं.

Advertisement

किसानों के वोट हासिल करने के लिए हो रही इस सियासत या कहें तो तिलिस्म को समझने के लिए चलिए आप को ले चलते हैं नमरेटटा गांव. यह गांव दक्कन के पठार में राजधानी हैदराबाद से लगभग 100 किलोमीटर उत्तर स्थित है. इस गांव की चर्चा किसान आत्महत्या को लेकर होती हैं. आत्महत्या करने का सिलसिला चलता ही रहता है. गांव में काली मंदिर के पास एक छोटा सा लेकिन सुंदर सा पक्का मकान है. 19-20 साल का अनिल नाम का युवा उदास बैठा है. इसके पिता 2 एकड़ खेत के मालिक थे लेकिन वे 2014 में डेढ़ लाख के कर्ज तले दब गए.

कर्ज नहीं चुका पाने की वजह से बैंक वाले और सूदखोर (जिनसे उन्होंने कर्ज लिया था) उन पर दवाव बनाने लगे. थकहार कर उन्होंने आत्महत्या कर ली. यह कर्ज उन्होंने 2013 में कपास की फसल बर्बाद होने पर लिया था. 2014 में कम बारिश की वजह से फसल फिर बर्बाद हो गई और अनिल के पिता इलैय्या ने परेशान होकर आत्महत्या कर ली.

Advertisement

अनिल कहता है कि पिता की मौत के बाद सरकारी अफसर नेता सब आए. शोक जताया, मदद करने की बात की. काफी दौड़भाग के बाद 75 हजार रुपये माफ हुए लेकिन 75 हजार का कर्ज अभी भी है, जिसे हम चुका रहे हैं. अनिल गुस्से में है.

निराशा में वो यह कहने से चूकता नही है कि, अगर आने वाले समय मे फसल फिर बर्बाद हुई तो क्या मुझे भी वही करना होगा जो मेरे पिता ने किया था. तो क्या बाप की मौत के बाद कर्ज तले दबा बेटा भी आत्महत्या करने की सोच रहा है? अनिल की आंखों से आंसू की दो बूंद उसके चेहरे पर ढलक गई.

उसे ढांढस देकर भारी मन से हम पास के दूसरे घर गए. यह घर के.रमलू का है. उसने भी खेती के कर्ज से परेशान होकर आत्म हत्या कर ली थी. उस पर 3 लाख का कर्ज था. रमलू की बहू लावण्या कहती है किसानों की सुध कोई नही लेता. कई साल हो गए खेती करते. हम जैसे थे-जिस हाल में थे वैसा ही अब भी हैं.

मोदी की सरकार हो या फिर टीआरएस की सब कहते हैं कि किसानों की किस्मत बदलेगी लेकिन अब तक बदली नही, क्यों? इस गांव में एक घर और है जहां एक किसान ने आत्महत्या कर ली थी. इस गांव के आसपास ऐसे कई गांव है जहां कई किसान निराश होकर आत्महत्या कर चुके हैं. सालों से यही सिलसिला जारी है. सरकारें बदल रही हैं और किसान आत्महत्या कर रहे हैं.

Advertisement

रह पार्टी चुनाव से पहले इसी आत्महत्या को मुद्दा बनाती है लेकिन सत्ता पाते ही ये मुद्दा नहीं रहता. आखिर क्यों? इस तिलिस्म का राज क्या है? शायद इस तिलिस्म का राज जानने के लिए एक नजर काकातिया साम्राज्य पर डालें. इस राज्यवंश के राजा गणपति देव को पुत्र नहीं था. उन्हें एक पुत्री थी रुद्रमा. चूंकि उस समय अगर पुत्र नहीं होता तो राज्य सत्ता हाथ से निकल जाने की प्रथा थी सो गणपति देव ने यह जाहिर नहीं होने दिया कि उन्हें पुत्र नहीं है.

बेटी रुद्रमा का जब जन्म हुआ तो राजा ने घोषणा की की उन्हें पुत्र हुआ है जिसका नाम रुद्रदमन रखा गया. रुद्रमा का न सिर्फ नाम बदलकर रुद्रदमन किया गया बल्कि उसका लालन-पालन भी लड़को की तरह से किया गया. खैर, समय के साथ लोगों को यह पता चल गया कि जिसे वो रुद्रदमन समझ कर राजा मान रहे थे वो रुद्रमा है.

रुद्रमा देवी दक्षिण भारत की पहली महिला शाशक बनी जिसने राजा का रूप धारण कर शाशन किया. लोगों को इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता था कि साम्राज्य का मुखिया पुरुष हो या महिला, लोग सिर्फ अच्छा शासन चाहते थे. हां राजा गणपति देव के विरोधियों के लिए यह मौका था सत्ता हथियाने का सो खेल शुरू हुआ सत्ता हथियाने का और उसे बचाने का.

Advertisement

लगभग 750 साल बाद भी तेलंगाना में वही खेल चल रहा है बस नाम और रूप बदल गया है. 75 साल की वृद्ध सुधा रमलू कहती हैं, आज के सियासतदां वैसे ही रूप बदल रहे हैं जैसा रुद्रदमन का बदला गया था. राजा का रूप बदलने से ज्यादा जरूरी है किसानों के हालात बदलें. अन्न दाता पानी, खाद, बीज, दाम और सरकारी मदद की बाट जोहते-जोहते मौत का आलिंगन न कर बैठे.

***

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement