सुप्रीम कोर्ट ने केरल स्थित ऐतिहासिक सबरीमाला मंदिर में प्राचीन परंपरा के तहत मासिक धर्म की आयु वर्ग की महिलाओं का प्रवेश वर्जित करने की व्यवस्था पर सोमवार को सवाल उठाते हुए कहा कि भारतीय संविधान इस किस्म के किसी प्रतिबंध की इजाजत नहीं देता.
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति एन वी रमण की पी ने कहा,‘मंदिर धर्म के आधार के अलावा प्रवेश वर्जित नहीं कर सकता. जब तब आपको संवैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं हो, आप प्रवेश वर्जित नहीं कर सकते. हम इस पर आठ फरवरी को गौर करेंगे.’ न्यायालय वकीलों के संगठन यंग लॉयर्स एसोसिएशन की जनहित पर सुनवाई कर रहा था. इसमें सबरीमाला मंदिर में हर उम्र की महिलाओं और लड़कियों के प्रवेश की अनुमति मांगी है. इस मंदिर की परंपरा के अनुसार लड़कियों को तरूण अवस्था में पहुंचने के बाद परिसर में प्रवेश की अनुमति नहीं है.
हालांकि, रजोनिवृत्ति की अवस्था में पहुंचने वाली महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति है. इस याचिका में आज सुनवाई के दौरान पीठ ने सवाल किया कि मंदिर में महिलायें प्रवेश क्यों नहीं कर सकती. न्यायालय ने टिप्पणी की कि इस परंपरा को किसी संवैधानिक व्यवस्था का समर्थन प्राप्त नहीं है. न्यायालय ने सरकार से जानना चाहा है कि क्या यह सही है कि पिछले 1500 साल से महिलाओं को मंदिर परिसर में प्रवेश की अनुमति नहीं है.
पीठ ने टिप्पणी की कि यह सार्वजनिक मंदिर है और हर व्यक्ति को इसमें जाने का अधिकार होना चाहिए. अधिक से अधिक वहां धार्मिक प्रतिबंध हो सकता है लेकिन सामान्य प्रतिबंध नहीं. केरल सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के के वेणुगोपाल ने कहा कि रजोनिवृत्ति की अवस्था प्राप्त नहीं करने वाली महिलायें धार्मिक यात्रा, जो आमतौर पर 41 दिन की होती है, के दौरान शुद्धता बनाये नहीं रख सकती हैं.
आदर्श शुक्ला / BHASHA