DND टोल वसूली पर SC ने नहीं लगाई रोक, कहा- 3 महीने में याचिका का हो निपटारा

सुप्रीम कोर्ट से ये भी मांग की गई थी की टोल प्लाजा पर टोल वसूली बंद हो लेकिन कोर्ट ने कहा की 3 महीने में अगर हाईकोर्ट याचिका का निपटारा नहीं करता तो याचिकर्ता वापस सुप्रीम कोर्ट आ सकते हैं.

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प्रियंका झा / अहमद अजीम

  • नई दिल्ली,
  • 30 जून 2016,
  • अपडेटेड 4:50 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को डीएनडी टोल प्लाजा को खत्म करने की मांग वाली याचिका को 3 महीने में निपटाने का निर्देश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने फेडरेशन ऑफ नोएडा रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया.

सुप्रीम कोर्ट में दायर अर्जी में फेडरेशन ने कहा था की 2012 से उनकी जनहित याचिका हाई कोर्ट में लंबित है. अब तक 69 बार मामला सुनवाई के लिए हाई कोर्ट में लगा. तीन बार टोल प्लाजा पर टोल उगाही पर रोक लगाने की अर्जी लगाई गई लेकिन हाई कोर्ट ने अब तक उस पर कोई फैसला नहीं दिया है. आखिरकार फेडरेशन ने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले को जल्द निपटाने के लिए निर्देश जारी करने की मांग की.

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सुप्रीम कोर्ट से ये भी मांग की गई थी की टोल प्लाजा पर टोल वसूली बंद हो लेकिन कोर्ट ने कहा की 3 महीने में अगर हाईकोर्ट याचिका का निपटारा नहीं करता तो याचिकर्ता वापस सुप्रीम कोर्ट आ सकते हैं.

टोल वसूलने वाली कंपनी को हो रहा फायदा
हाईकोर्ट में दायर याचिका में फेडरेशन ने कहा है की टोल वसूलने वाली कंपनी नोएडा टोल ब्रिज कंपनी ने नोएडा अथॉरिटी के साथ 1997 में करार किया था. करार एकतरफा किया गया. जिससे हर हाल में टोल वसूलने वाली कंपनी को फायदा हो. पूरा करार एक घपला है. इस प्रोजेक्ट की लागत 407 करोड़ रुपये बताई गई. जबकि 6 दिसम्बर 2012 की ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक कंपनी को 581 करोड़ का फायदा हुआ.

एग्रीमेंट के आधार पर दायर की याचिका
याचिका में कहा गया है कि एग्रीमेंट के मुताबिक नोएडा अथॉरिटी ने कंपनी को 68 एकड़ जमीन अधिग्रहण करके दिया. किसानों को सारा पैसा अथॉरिटी ने दिया. इस जमीन पर कंपनी को महज 1 साल का 1 रुपये एकड़ के हिसाब से लीज रेंट अथॉरिटी को देना पड़ेगा. जो 30 साल बाद 50 रुपये प्रति एकड़ हो जायेगा. इस जमीन का कंपनी किसी भी तरह इस्तेमाल कर सकती है. दस साल या जब तक 16000 सवारी गाड़ी प्रति दिन का टारगेट टोल कंपनी हासिल नहीं कर लेती, नोएडा अथॉरिटी टोल रोड के आस-पास कोई और ब्रिज नहीं बना सकती. टोल वसूलने वाली कंपनी की आय और व्यय का कोई इंडिपेंडेंट ऑडिट नहीं होता. मेंटेनेंस पर कंपनी टोल रोड बनाने में आई लागत से ज्यादा रकम दिखाती है. तीस साल के रियायती समझौते को बढ़ाकर 100 साल का कर दिया गया है.

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लागत से 4 गुना ज्यादा वसूली
याचिकाकर्ता के मुताबिक अब तक कंपनी लागत से चार गुना ज्यादा पैसा वसूल चुकी है लेकिन फिर भी टोल प्लाजा चल रहा है. ये भी कहा गया है की खुद प्लानिंग कमीशन की एक रिपोर्ट कहती है की ये पूरा करार एक पब्लिक लूट है. करार कुछ ऐसा किया गया कि अगर आज नोएडा अथॉरिटी इस करार को खत्म करना चाहे तो उसे 53 हजार करोड़ कंपनी को देना होगा.

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