अयोध्या केस: धवन बोले- बाबर विध्वंसक नहीं था, मस्जिद तो मीर बाकी ने बनाई

राम जन्मभूमि मामले में 37वें दिन मुस्लिम पक्ष की तरफ से वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने बहस की शुरुआत की. राजीव धवन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 के तहत मिली अपरिहार्य शक्तियों के तहत दोनों ही पक्षों की गतिविधियों को ध्यान में रखकर इस मामले का निपटारा करे.

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सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट

संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 05 अक्टूबर 2019,
  • अपडेटेड 12:09 AM IST

  • अयोध्या केस में 37वें दिन सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई
  •  मुस्लिम पक्ष की तरफ से राजीव धवन ने की शुरुआत

राम जन्मभूमि मामले में 37वें दिन मुस्लिम पक्ष की तरफ से वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने बहस की शुरुआत की. राजीव धवन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 के तहत मिली अपरिहार्य शक्तियों के तहत दोनों ही पक्षों कि गतिविधियों को ध्यान में रखकर इस मामले का निपटारा करे.

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राजीव धवन ने कहा, 'इस मामले में मस्जिद पर जबरन कब्जा किया गया. लोगों को धर्म के नाम पर उकसाया गया. रथ यात्रा निकाली गई. लंबित मामले में दबाव बनाया गया. मस्जिद ध्वस्त की गई और उस समय मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह ने एक दिन की जेल अवमानना के चलते काटी. अदालत से गुजारिश है कि तमाम घटनाओं को ध्यान में रखें.'

धवन ने कहा, 'हम कैसे देखते हैं कि इतिहास महत्वपूर्ण है. केके नय्यर के खिलाफ लगे आरोप पब्लिक डोमेन में हैं. गलत तरीके से आरोप लगाए गए एक व्यक्ति को भी वहां पर सोने तक की इजाजत नहीं थी. मस्जिद वह है जहां कोई अल्लाह का नाम लेता है. नमाज अदा करता है.'

क्या मस्जिद दैवीय है: जस्टिस बोबड़े

जस्टिस बोबड़े ने कहा कि क्या मस्जिद दैवीय है? इस पर धवन ने जवाब दिया कि यह हमेशा से ही दैवीय रहती है. इसके बाद जस्टिस बोबड़े ने पूछा कि क्या यह अल्लाह को समर्पित होती है? इस पर धवन ने कहा कि हम दिन में 5 बार नमाज पढ़ते हैं, अल्लाह का नाम लेते हैं, ये अल्लाह को समर्पित ही है.

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बहस को केंद्रित रखूंगा: धवन

राजीव धवन ने कहा कि टाइटल, लिमिटेशन और वक्फ पर ही बहस को केंद्रित रखूंगा. हिंदू पक्षकारों की बहस के दौरान कई बार टोकाटाकी कर चुके धवन की बहस में जब सीएस वैद्यनाथन ने टोका तो धवन ने आपत्ति जताते हुए बेंच से कहा, 'ये उचित नहीं, मैंने कभी वैद्यनाथन का नाम लेकर नहीं कहा. बहस करने का मेरा अपना स्टाइल है. मेरा ये स्टाइल कभी नहीं रहा. बहस का सबसे आदर्श स्टाइल बैरिस्टर स्टाइल है, जिसमें आपके हाथ नीचे रहते हैं और दिमाग व जबान चलती है.'

धवन ने जेठमलानी को किया याद

आगे राजीव धवन ने कहा कि राम जेठमलानी कहते थे कि वकील बेहतरीन अभिनेता होता है. इस नजरिए से नरसिम्हन आमिर खान की तरह मेथड एक्टर हैं. धवन ने मेथड एक्टर शब्द का मतलब समझाते हुए कहा कि इसका मतलब है परफेक्ट अभिनेता जिसे पता है कि कैमरे के मुताबिक कैसे कहां और किधर देखना है. धवन ने आखिर में ये भी जोड़ा कि उन्हें आमिर खान का अभिनय बहुत पसंद हैं.

लॉस्ट ग्रांट के मुद्दे पर पक्ष

धवन ने कहा कि वो सबूत और टाइटल यानी मालिकाना हक और लॉस्ट ग्रांट के मुद्दे पर अपना पक्ष रखेंगे. कानून की भाषा में लॉस्ट ग्रांट के जरिए किसी भी संपदा के मूल मालिक की पहचान होती है, जिसके कब्जे में विवादित संपत्ति लंबे समय तक रहे, लेकिन इस दौरान कुछ समय विवाद की वजह से कब्जे का सिलसिला टूट जाए.

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जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि क्या इस बात का कोई सबूत है कि बाबर ने बाबरी मस्जिद को कोई इमदाद दी हो. धवन ने कहा, 'उस दौर में इसका कोई सबूत हमारे पास नहीं है. सबूत मंदिर के दावेदारों के पास बची नहीं है, सिवाय कहानियों के.'

धवन ने कहा, '1855 में एक निहंग वहां आया और उसने वहां गुरु गोविंद सिंह की पूजा की और निशान लगा दिया था. बाद में सारी चीजें हटाई गईं. उसी दौरान बैरागियों ने रातोंरात वहां बाहर एक चबूतरा बना दिया और पूजा करने लगे.'

मुस्लिमों को भी दिया गया मुआवजा

धवन ने कहा, ब्रिटिश हुकूमत के गवर्नर जनरल और फैजाबाद के डिप्टी कमिश्नर ने भी पहले बाबर के फरमान के मुताबिक मस्जिद की देखभाल और रखरखाव के लिए रेंट फ्री गांव दिए फिर राजस्व वाले गांव दिए. आर्थिक मदद की वजह से ही दूसरे पक्ष का एडवर्स पजिशन नहीं हो सका. 1934 में मस्जिद पर हमले के बाद नुकसान की भरपाई और मस्जिद की साफ सफाई के लिए मुस्लिमों को मुआवजा भी दिया गया.'

बाबर कोई विध्वंसक नहीं था: धवन

राजीव धवन ने रेस ज्यूडिकाटा को लेकर दलील देते हुए कहा, 'जब 1934 में दंगा फसाद के बाद ही ये तय हो गया था कि हिंदू बाहर पूजा करेंगे तो 22/23 दिसंबर 1949 की रात हिंदू इमारत में कैसे गए? ट्रेसपासिंग की गई थी. संविधान के अनुच्छेद 12 के जरिए देश भर के सार्वजनिक संस्थान भी नियमित किए गए. 1934 में दंगों के दौरान इमारत को नुकसान पहुंचा और धारा 144 लगाई गई. ये बाबर पर मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने का इल्जाम लगाते हैं पर बाबर कोई विध्वंसक नहीं था. मस्जिद तो मीर बाकी ने बनाई, एक सूफी के कहने पर. है राम के वजूद पर हिंदोस्तां को नाज अहले नजर समझते हैं उसको इमाम ए हिन्द!'

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धवन ने फिर कहा, 'वैरागियों ने बाबरी मस्जिद पर हमला किया जिसके बाद उसके रेनोवेशन के लिए बड़ी रकम चहिए थी जिसके बाद कोर्ट के आदेश पर ग्रांट के जरिए वहां पर मरम्मत का काम कराया गया.' दरअसल राजीव धवन यह बताने के कोशिश कर रहे हैं कि वहां पर ग्रांट दी जाती थी.

SC पूछा-  ग्रांट को लेकर कोई दस्तावेज

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा बाबर के समय के वहां पर ग्रांट को लेकर कोई दस्तावेज है? इस पर धवन ने कहा कि हमारे पास इस बारे में कोई दस्तावेज नहीं है. धवन ने कहा कि बाबर के जरिए मस्जिद को अनुदान दिया जाता था जिसको लखनऊ के नवाबों के समय भी जारी रखा गया.

चबूतरे को मकसद के तहत बनाया गया: धवन

जस्टिस नजीर ने कहा कि अनुदान का मतलब यह है कि वह अनुदान सिर्फ मस्जिद के लिए थी ना कि पूरी जमीन के लिए. धवन ने कहा, '1885 में गैरकानूनी तरीके से चबूतरे को मस्जिद के पास बनाया गया. ट्रेवलर की स्टोरी है लेकिन उसमें चबूतरे के बारे में नहीं बताया गया है.' धवन ने कहा कि चबूतरे को मस्जिद के अंदरूनी हिस्से के एक मकसद के तहत बनाया गया.

जानना चाहते हैं कि 1885 से पहले वहां पर क्या हुआ: धवन

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जस्टिस चंद्रचूड़ ने राजीव धवन से पूछा, 'आप अपनी दलील में एडवर्स पजेशन की बात कह रहे हैं इसमें एडवर्स कब्जा कहां है, हिंदू और मुस्लिम दोनों ही वहां थे. दूसरे आप कह रहे हो कि मस्जिद हमने बनाई, और हम कब्जे में थे, लेकिन उससे पहले वहां हिंदुओं की जमीन थी जिसकी वजह से आप ने एडवर्स कब्जे की बात कर रहे हैं.'

इस पर धवन ने कहा, 'हिंदुओं को पहले ये बताना पड़ेगा कि पहले उनकी जमीन थी और उनका मंदिर था. धवन ने कहा कि हिंदुओं को पहले यह साबित करना होगा कि वहां मंदिर था उसके बाद साबित करना होगा कि मुस्लिमों ने उस पर कब्जा किया, हम जानना चाहते हैं कि 1885 से पहले वहां पर क्या हुआ?'

दरअसल, 1885 में पहली बार यह मामला कोर्ट में आया था जिसको लेकर मुस्लिम पक्ष का कहना है 1885 से पहले का कोई भी दस्तवेज कोर्ट को नहीं मानना चाहिए.

'बाहरी आंगन में पूजा के अधिकार को कोर्ट ने स्वीकार किया था''

धवन ने कहा, 'हिंदुओं ने पहले सिर्फ बाहरी आंगन में पूजा के अधिकार की मांग की जिसको कोर्ट ने स्वीकार भी किया. मस्जिद के बाहरी दीवार पर अल्लाह लिखा हुआ था. 1882 में मुस्लिम ने एक याचिका दाखिल की थी जिसमें कहा गया कि बाबरी मस्जिद के गेट के पास या बाबरी मस्जिद के अहाते में राम चबूतरा है जिसके किराया की मांग रघुबरदास से की गई थी, जिसको कोर्ट ने खारिज कर दिया था.'

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बाबरी मस्जिद के मुतावल्ली मोहम्मद अजगर ने इसको चैलेंज नहीं किया. जस्टिस नजीर ने पूछा कि कोर्ट ने किस आधार पर इसको खारिज किया था. धवन ने कहा कि वह इस बारे में चेक करके कोर्ट को बताएंगे.

37 वें दिन की सुनवाई के अंत में CJI जस्टिस रंजन गोगोई ने सभी पक्षों को कहा, '17 अक्टूबर तक बहस पूरी करे. 14 अक्टूबर को मुस्लिम पक्ष की ओर से राजीव धवन बहस जारी रखेंगे. बाकी सब पक्षकार 15-16 को दलीलें देंगे. 17 को सुनवाई पूरी होगी. पहले सुप्रीम कोर्ट इन सभी पक्षों को 18 अक्टूबर तक बहस पूरी करने के लिए कहा था यानी अब चार दिन ही सुनवाई होनी है.'

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