जानिए कैसे बनता है रावण का विशालकाय पुतला?

सुभाष नगर मेट्रो स्टेशन के नीचे से राजौरी गार्डन मेट्रो स्टेशन तक रावण का सुपर मार्केट लगता है.  जहां हर साइज और वैरायटी के रावण , मेघनाथ और कुंभकरण अलग-अलग कीमतों में बिकते  हैं. यहां 5 फिट से लेकर 50 फिट तक के रावण रोड साइड पर बिकने के लिए मौजूद रहते हैं.

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ऐसे बनता है रावण का पुतला ऐसे बनता है रावण का पुतला

सुरभि गुप्ता / स्मिता ओझा

  • नई दिल्ली,
  • 29 सितंबर 2017,
  • अपडेटेड 6:56 PM IST

दशहरे के समय रावण, उसके भाई कुंभकरण और बेटे मेघनाद के दहन का चलन सदियों पुराना है. बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में रावण को जलाया जाता है, लोग इसे विजय दशमी भी कहते हैं. दिल्ली एनसीआर में भी जगह-जगह रावण दहन किया जाता है. लोग अपने हैसियत और बजट के अनुसार रावण खरीदते हैं और धूम-धड़ाके के साथ इसको जलाते हैं और हर छोटे-बड़े रावण की खरीदारी की जाती है दिल्ली एनसीआर के रावण के सुपर मार्केट सुभाष नगर से.

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सुभाष नगर मेट्रो स्टेशन के नीचे से राजौरी गार्डन मेट्रो स्टेशन तक रावण का सुपर मार्केट लगता है.  जहां हर साइज और वैरायटी के रावण , मेघनाथ और कुंभकरण अलग-अलग कीमतों में बिकते  हैं. यहां 5 फिट से लेकर 50 फिट तक के रावण रोड साइड पर बिकने के लिए मौजूद रहते हैं. इनको बनाने वाले कारीगर दो महीने पहले से ही यहां इकठा होना शुरू हो जाते हैं और यहीं पर सड़क किनारे रावण बनाया जाता है. कुछ लोग दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों से रावण बना कर यहां बेचने के लिए आते हैं, जिनकी कीमत उनके लागत के हिसाब से लगाई जाती है.

रावण का ये सुपर मार्केट एशिया में सबसे बड़ा है और यहां दूर-दूर से लोग रावण की खरीदारी करने आते हैं. सबसे दिलचस्प होता है रावण के विशालकाय पुतलों पर लिखा गया मैसेज, किसी में रावण को डॉन की उपाधि दी गई है तो किसी को बाहुबली बना दिया गया है. खूबसूरत चटकीले रंगों में दशानन और उसके भाई और बेटे कमाल लगते हैं और सबसे ज्यादा कमाल मूंछों का होता है, जिसे बनाने में ढाई से तीन घंटे लग जाते हैं.

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दशानन और उसके भाई कुंभकरण और मेघनाथ को बनाने में महीनों का समय और मेहनत लगती है. आइये आपको बताते हैं कि कहा और कैसे ये पुतले बनाये जाते हैं:

- पहले बांस की पतली लकड़ियों से पुतलों के अलग-अलग अंगों को आकर दिया जाता है, सिर, हाथ, पैर और धड़ अलग-अलग कर बनाये जाते हैं.

- एक बार जब अंगों का ढांचा तैयार हो जाता है. इस पर घर में बने अरारोट के गम में भीगी साड़ियों को चिपका दिया जाता है, ये साड़ी सूखने के बाद कड़ी हो जाती है तो उस पर रंगीन पेपर लगाया जाता है.

- रंगीन पेपर जब पूरी तरह सूख जाता है तो फिर उस पर पेंट का काम शुरू होता है. आंखों से लेकर दांतों तक, मूंछो से लेकर हाथों तक सभी रंगे जाते हैं, उसके बाद इन पुतलों को मुकुट और शस्त्रों से सजाया जाता है.

- खरीदार इनको अपनी सुविधा और जरूरत अनुसार खरीद कर अलग-अलग अंगों को लेकर जाते हैं और जलने से पहले इन्हें एकत्रित किया जाता है.

बुराई पर अच्छाई की जीत, असत्य पर सत्य की विजय और धर्म द्वारा अधर्म के नाश का प्रतीक विजय दशमी का पर्व सदियों से धूमधाम से मनाया जा रहा है. ये जरिया है आने वाली पीढ़ियों को याद दिलाने का कि बुराई चाहे जितना भी कोशिश क्यों ना कर ले उस की उम्र ज्यादा नहीं होती.

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