प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में अब भिखारी नजर नहीं आएंगे. वाराणसी को भिखारी मुक्त बनाने के लिए एक एनजीओ ने पहल की है.
एनजीओ की ओर से कोशिश की जा रही है कि वाराणसी में जगह-जगह भीख मांगकर गुजारा करने वाले दीन-हीन लोगों को इस
धंधे से मुक्त कर रोजगार मुहैया कराया जाए. एनजीओ के मुताबिक, अभी तक 200 से ज्यादा भिखारियों को अलग-अलग तरह के रोजगार से
जोड़ा जा चुका है.
वाराणसी के रानीपुर क्षेत्र से संचालित 'सुमंगलम काशी' नामक संस्था ने पिछले चार सालों से अभी तक 200 भिखारियों को रोजगारपरक कार्यों से जोड़ा है. संस्था के सदस्यों ने बनारस में मंडुवाडीह रेलवे स्टेशन, वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन, वाराणसी सिटी रेलवे स्टेशन और रोडवेज बस स्टैंड सहित समूचे शहर में खोज-बीन कर भिखारियों की सूची तैयार की और भिखारियों को मांगना छोड़ कोई दूसरा रोजगार अपनाने को प्रेरित करना शुरू किया.
एनजीओ के प्रयासों से देखते-देखते 200 से ज्यादा भिखारियों ने भीख मांगना बंद कर दिया. 'सुमंगलम काशी' के अध्यक्ष शीतला प्रसाद यादव ने बताया कि काशी का स्वरूप देखने के लिए देश-दुनिया से हजारों पर्यटक आते रहते हैं. ये भिखारी उन्हें तंग किया करते हैं और इस कारण बाहर से आने वाले मेहमानों के दिलो-दिमाग में काशी की गलत छवि बनती है. इसी कारण हम भिखारियों का मांगने का धंधा छुड़ाने में लगे हुए हैं. उन्होंने बताया कि संस्था की ओर से एक नारा दिया गया है 'भिखारी मुक्त हो काशी अपनी'.
याद रहे कि दुनियाभर से काशी पहुंचने वाले पयर्टकों के मन में इस धर्मनगरी की बेहतर छवि बनाने की दिशा में यहां का प्रशासन भी सक्रिय हो चुका है. प्रधानमंत्री मोदी के स्वच्छता अभियान और गंगा सफाई अभियान के बाद यहां के प्रशासन की तरफ से काशी की छवि बेहतर बनाने के लिए 'सुबह-ए-बनारस' का दिलकश नजारा इंटरनेट के माध्यम से लोगों तक ऑनलाइन पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है.
इनपुट IANS
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