अभी जागना बाकी था और रजाई छोडऩे का मन तो खैर था ही नहीं. लेकिन पहले कौए की इतनी साफ कांव-कांव और उसके पीछे मुर्गे की बांग ने सुबह का मंजर देखने को ललचा दिया. बाहर निकले तो सात बजे इतनी चमकदार धूप निकल आई थी, जैसी किसी साफ दिन में दिल्ली में सुबह दस बजे जाकर दिख जाए तो भाग जानिए. आसमान इतना नीला कि एक साथी ने उसकी फोटो खींच ली और कहने लगे कि बच्चों को दिखाऊंगा कि असल में आसमानी नीला रंग होता कैसा है. कुदरत की इन छोटी-छोटी छटाओं ने मन को ऐसे संक्रमित कर लिया कि छोटे से अमरकंटक के सामने दिल्ली का विस्तार तुच्छ लगने लगा. हो भी क्यों न, आखिर मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले में ऊंचाई पर बसे इसी छोटे-से धार्मिक कस्बे से भारत की सबसे साफ नदियों में से एक नर्मदा का उद्गम होता है. आदि गुरु शंकराचार्य ने स्थापना दी थी कि यहां के छोटे से सूर्यकुंड से निकलकर ही नर्मदा हजार किमी का सफर तय कर अरब सागर में गिरती है. नर्मदा की यह यात्रा एक पूरी सभ्यता को पालने-पोसने के पुराने अफसाने जैसी है.
लेकिन 11 दिसंबर को यहां नदी की यात्रा नहीं, बल्कि नदी के लिए यात्रा शुरू होने वाली थी. हर तरफ नर्मदा को साफ रखने और उसे संवारने से जुड़े बैनर-पोस्टर लगे थे. मध्य प्रदेश सरकार के कई मंत्री और प्रशासन का अमला यहां डेरा जमाए था. खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक दिन पहले ही आकर अमरकंटक में जम गए, ताकि बाहर से आने वाले उनके मेहमानों की आवभगत में कोई कमी न रह जाए. नर्मदा सेवा यात्रा का मुख्य जलसा नदी किनारे के भव्य पंडाल में दोपहर बाद होना था, इसलिए सुबह के वक्त का इस्तेमाल मुख्यमंत्री ने सारे प्रमुख मंदिरों के दर्शन में कर लिया.
दोपहर दो बजे जलसा शुरू हुआ. मंच पर चौहान के अलावा गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी और आरएसएस के नेता भैयाजी जोशी मौजूद थे. धार्मिक बिरादरी की ओर से ऋषिकेश के स्वामी चिदानंद और अवधेशानंद गिरि विराजमान थे. नेताओं की बड़ी जमात के बीच पानी पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं के प्रतिनिधि के तौर पर राजेंद्र सिंह भी मंच पर थे. सामने पंडाल में अच्छी भीड़ थी और श्रोताओं का एक बड़ा हिस्सा उस आदिवासी समाज से भरा था, जो पारंपरिक रूप से बीजेपी का वोटर नहीं रहा है.
चौहान ने नदी की सेवा का जो खाका खींचा, उसका सार कुछ इस तरह से है. चूंकि नर्मदा ग्लेशियर से निकली नदी नहीं है और इसका का मुख्य स्रोत सतपुड़ा और विंध्याचल के घने जंगलों से रिसकर आने वाला पानी है, इसलिए नदी के दोनों तरफ एक-एक किमी दूर तक वृक्षारोपण किया जाएगा. ऐसा करने से मिट्टी का कटाव रुकेगा. नर्मदा किनारे के किसानों से कहा जाएगा कि वे खेती छोड़कर फलदार वृक्ष लगाएं. जो किसान खेती से बागबानी का रुख करेंगे, सरकार उन्हें तीन साल तक 20,000 रु. प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मुआवजा देगी. नर्मदा में गिरने वाले नालों पर वाटर ट्रीटमेंट प्लांट बनाए जाएंगे. इसके लिए प्रदेश सरकार 1,500 करोड़ रु. देगी. इसके अलावा लोगों को नर्मदा किनारे शौच के लिए जाने और नदी में शव प्रवाहित करने से भी रोका जाएगा. यात्रा 3,000 किमी का सफर पूरा करने के बाद अमरकंटक में ही 11 मई को पूर्ण होगी. चैहान ने इंडिया टुडे को बताया, ''हमारी कोशिश है कि मां नर्मदा के संरक्षण की कोशिश तभी शुरू कर दी जाए, जब इसमें प्रदूषण का ज्यादा खतरा नहीं है. प्रदूषण बढऩे के बाद हालात संभालना कठिन होता है.'' चौहान ने दो टूक लहजे में कहा कि नर्मदा नदी में अवैध खनन को पूरी तरह रोका जाएगा. लेकिन शिवराज उस जलसे में अवैध खनन रोकने की बात कह रहे थे, जिसके सूत्रधार उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी और मध्य प्रदेश में खनन के सबसे बड़े खिलाड़ी संजय पाठक थे. कार्यक्रम के अंत में पाठक ने ही धन्यवाद ज्ञापन भी किया. पाठक पहले कांग्रेस के नेता थे और पिछला विधानसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर जीते थे. लेकिन बाद में वे बीजेपी में आ गए और 2014 का उपचुनाव बीजेपी के टिकट से जीतकर मंत्री बन गए.
नर्मदा सेवा यात्रा के मंच पर ही परस्पर विपरीत हित वाले लोगों की यह मौजूदगी संकेत दे गई कि शब्दों को हकीकत में उतारने के लिए चौहान को भागीरथ प्रयास करने होंगे. राजेंद्र सिंह ने भी मुख्यमंत्री का ध्यान इस तरफ दिलाया. उन्होंने कहा, ''कई साल पहले आपके अफसर 113 छोटी नदियों को संवारने की योजना लेकर मुझसे मिले थे. बात काफी आगे बढ़ी थी, लेकिन बाद में पता नहीं चला कि काम कहां तक पहुंचा. उम्मीद है, इस बार लक्ष्य प्राप्ति का पूरा ध्यान रखा जाएगा.'' बाद में राजेंद्र सिंह ने इंडिया टुडे को बताया, ''अगर यह योजना ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने के लिए है तो इससे कोई फायदा नहीं होगा, लेकिन अगर शिवराज इसे लेकर गंभीर हैं तो फायदा होगा. अगर मुख्यमंत्री की कथनी-करनी एक नहीं हुई तो लोगों के साथ ही शिवराज को भी नुक्सान होगा. आखिर उनके वोटरों में उनकी छवि खराब होगी.'' नर्मदा यात्रा में पाठक की इतनी महत्पपूर्ण भूमिका से राजेंद्र सिंह सशंकित नजर आए. किसानों को प्रति हेक्टेयर 20,000 रु. मुआवजे को भी उन्होंने नाकाफी बताया. उन्होंने कहा कि किसानों को साथ लाने के लिए इससे कहीं ज्यादा मुआवजा तय करना पड़ेगा.
यानी नर्मदा को लेकर मध्य प्रदेश की शुरुआत तो अच्छी है, लेकिन अंजाम की राह कठिन है. सरकार को भी इस बात का अंदाजा है, तभी तो पूरी दुनिया में नर्मदा के साथ जिस महिला का नाम जुड़ गया है, उन मेधा पाटकर को इस कार्यक्रम में नहीं बुलाया गया. बाद में मेधा ने इंडिया टुडे से बातचीत में कहा, ''नर्मदा सेवा यात्रा पर मैं क्या कहूं? सरकार लगातार नदी पर बांध बनाती जा रही है. नदी में न्यूनतम जल प्रवाहित करने के प्रावधानों का पालन नहीं कर रही है. पाइपलाइन डालकर नर्मदा को लगातार खाली कर रही है. अवैध खनन रोकने की कोई कारगर कोशिश नहीं कर रही है. इन सब चीजों के बिना नर्मदा सेवा की बात करना नर्मदा का राजनीतिकरण करना ही है. नर्मदा के असली मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए यह ढकोसला है.'' मेधा ने कहा कि यह तो हुई नदी की बात, अब समाज की बात करते हैं. अगर सरकार इतनी मेहरबान है तो सरदार सरोवर, इंदिरा सागर और ओंकारेश्वर बांध के विस्थापितों के बारे में यात्रा में बात क्यों नहीं कर रही है?
मेधा ने बताया कि पिछले दिनों जब नर्मदा नदी को लेकर ग्रीन ट्रिब्यूनल में सुनवाई हो रही थी तब राज्य सरकार के एक अफसर ने नर्मदा सेवा यात्रा का जिक्र किया. इस पर ट्रिब्यूनल के एक विशेषज्ञ सदस्य ने पूछा कि फलों के पेड़ से भी कहीं भूमि का कटाव रुकता है? उम्मीद करनी चाहिए कि यात्रा के पांच महीने में शिवराज बाकी पहलुओं पर भी सोचेंगे और नर्मदा घाटी को अमरकंटक जैसी उजली सुबह देंगे, जिसमें धूमिल पत्ते भी चांदी से चमकते है.
पीयूष बबेले