भोपाल। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कुर्सी को लेकर बयान दिया तो राजनीति शुरू हो गयी. शिवराज ने एक कार्यक्रम में कहा था कि 'मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कोई भी बैठ सकता है'. उनके बयान के कई मायने लगाए जाने लगे, वहीं विरोधी दल के नेता भी शिवराज पर चुटकी ले रहे हैं. कमलनाथ ने कहा, शिवराज अभी से हताश होने लगे हैं. वहीँ इसके जवाब में शिवराज ने भी tweet कर दिया. जिसमें उन्होंने अपने बयान को महज एक मजाक बताया.
दरअसल मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री निवास पर मुख्यमंत्रियों की बैठक में हिस्सा लेने के लिए बुधवार शाम को दिल्ली गए थे. खराब मौसम की वजह से वे रात को लौट नहीं पाए. वे सुबह ही भोपाल लौटे और सीधे आनंद संस्था के व्याख्यान कार्यक्रम में पहुंचे.
उन्होंने अपना भाषण समाप्त करते समय कहा कि आज झाबुआ और अलीराजपुर में कार्यक्रम हैं, जिस वजह से उन्हें स्वामी सुखबोधानंद गुरुजी से अनुमति लेकर जाना पड़ रहा है. मुख्यमंत्री ने जाते हुए सामने रखी कुर्सी पर इशारा करते हुए कहा कि अब ये माननीय मुख्यमंत्री लिखी कुर्सी खाली है, जिस पर कोई भी बैठ सकता है. इस बयान के बाद प्रदेश की सियासत में हलचल मच गई. बयान को लेकर हर कोई तरह तरह के कयास लगाने लगा. इस बीच सीएम ने भी ट्वीट कर इसे मजाक करार दिया.
यह कहा गया ट्वीट में
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने बयान को ट्वीट कर कहा है कि 'कार्यक्रम में मेरे लिए आरक्षित रखी गई कुर्सी को लेकर थोड़ा सा मजाक क्या कर लिया...कुछ मित्र अत्यंत आनंदित हो गए! ''चलो, मेरा आनंद व्याख्यान में जाना सफल हो गया.'' इससे पहले शिवराज ने एक अन्य ट्वीट में फिल्मी डायलॉग का सहारा लेते हुए विपक्षी नेताओं पर निशाना साधा.
उन्होंने लिखा "कुछ नेता प्रदेश में सिर्फ चुनाव के समय दिखते है, बाकी समय अपने तुगलकी महलों में बिताते हैं. उनको लगता है कि कॉमन मैन को क्या पता चलेगा...एक फिल्म में मैंने सुना था, नेवर
अंडरेस्टिमेट द पावर ऑफ कॉमन मैन... जनता को पता है कि कौन उनके साथ हमेशा रहा है, और हमेशा रहेगा"कमलनाथ ने ली सियासी चुटकी
कमलनाथ ने शिवराज के इस बयान के बाद उन पर चुटकी लेते हुए कहा था 'अब शिवराज सिंह को भी हकीकत समझ आने लगी है. इसलिए वो ऐसा बोलने लगे हैं. कमलनाथ ने कहा अभी चुनावों में वक्त है लेकिन शिवराज सिंह अभी से हताश होने लगे है.' इतनी जल्दी हार मान गए. वैसे कमलनाथ की ताजपोशी पर शिवराज ने बधाई देकर उन्हें अपना मित्र बताया था.
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संध्या द्विवेदी / मंजीत ठाकुर