गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने अड़ियल रुख अपनाने वाले अलगाववादियों पर कहा है कि हुर्रियत नेताओं का इंसानियत, कश्मीरियत और जम्हूरियत में कोई भरोसा नहीं है. इंसानियत, कश्मीरियत और जम्हूरियत की बात सबसे पहले तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने 2003 में की थी. हालांकि उस वक्त घाटी के हालात इतने खराब नहीं थे, जितने अभी. वाजपेई ने कहा था कि कश्मीर का भविष्य यहां की मूल प्रकृति यानी कश्मीरियत, मानवता यानी इंसानियत और लोकतंत्र यानी जम्हूरियत में है.
हिज्बुल आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से कश्मीर घाटी के हालात सामान्य नहीं हैं. बीते अप्रैल में पीएम मोदी ने भी कश्मीर में शांति के लिए बताए वाजपेयी के तीन सिद्धांतों को दोहराया था, और अब जब घाटी में हालात सामान्य करने की पहल के तहत राजनाथ सिंह सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के साथ कश्मीर गए और उन्हें हुर्रियत नेताओं की ओर से जिस तरह का जवाब मिला उससे साफ हो गया है कि अलगाववादी न तो कश्मीर का भला चाहते हैं, न ही मुल्क का. अलगाववादी नेताओं ने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल से बात तो दूर, उनसे मिलने से इनकार कर दिया.
हम बताते हैं कि राजनाथ सिंह ने अलगाववादियों के बारे में सही कहा है कि हुर्रियत को लोकतंत्र पर यकीन नहीं, इनमें जम्हूरियत नहीं. उनका रुख कश्मीरियत नहीं और इन अलगाववादियों में इंसानियत नहीं है.
1. अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी के बेटे नईम गिलानी पर घाटी में आतंकवाद की फंडिंग के आरोप लगे हैं. एनआईए विदेशों से घाटी के तमाम बैंक खातों में आतंकवादियों के लिए पैसे जमा होने की जांच कर रही है. ऐसे सबूत मिले हैं कि जम्मू-कश्मीर में हिंसा भड़काने के लिए हाफिज सईद के संगठन जमात-उद-दावा और लश्कर ने पाकिस्तान से भी पैसे भेजे हैं.
2. जुलाई के पहले हफ्ते में हिज्बुल का 'पोस्टर ब्वॉय' बुरहान वानी मारा गया तो हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी ने घाटी में बंद का आह्वान किया. यह बंद डेढ़ महीने से भी ज्यादा दिनों तक चला. हुर्रियत नेताओं ने घाटी में शांति बहाली के लिए कदम उठाने बजाय स्थानीय लोगों को भड़काने का काम किया जिससे आम जनजीवन पूरी तरह प्रभावित रहा.
3. गिलानी और उनकी हुर्रियत पर स्थानीय बेरोजगार युवकों को बहकाकर विरोध-प्रदर्शनों में शामिल करते हैं. ये प्रदर्शनकारी युवक सुरक्षाबलों पर पत्थरबाजी करते हैं. ये पत्थरबाज पैसे से खरीदे गए होते हैं. इनमें से ही कई युवकों ने खुलासा किया है कि एक दिन के लिए इन्हें 400 रुपये तक मिलते हैं. पुलिस को जांच में पता चला है कि हुर्रियत नेता गिलानी के समर्थक ये फंड स्थानीय व्यापारियों से इकट्ठा करते हैं. पाकिस्तान के आंतकी संगठन भी पत्थरबाजों को फंडिंग में मदद करते हैं.
4.श्रीनगर में शुक्रवार को जुमे की नमाज के बाद अक्सर पाकिस्तान के झंडे लहराए जाते हैं और भारत विरोधी तथा पाकिस्तान समर्थक नारे लगाए जाते हैं. हाल के दिनों में तो आतंकी संगठन आईएसआईएस के झंडे भी लहराए गए और उसके समर्थन में नारे लगाए गए. अलगाववादियों की होने वाली रैलियों में भी ऐसी घटनाएं सामने आती हैं. इन सभी घटनाओं को न सिर्फ अलगाववादियों का समर्थन रहता है, बल्कि ऐसी सभाओं में इन्हें शामिल भी देखा जा सकता है.
5. गिलानी और हुर्रियत ने नेताओं ने लोगों से 2014 में होने वाले जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव का बहिष्कार करने की अपील की थी. इनका तर्क था कि भारत सरकार बंदूक के दम पर राज्य में चुनाव करवा रही है. हालांकि इनकी अपील का स्थानीय जनता पर कोई असर नहीं हुआ और विधानसभा चुनाव में रिकॉर्ड 65 फीसदी से भी ज्यादा वोटिंग हुई जो बीते 25 साल में सबसे ज्यादा रही.
अड़ंगा क्यों डाल रही है हुर्रियत?
आखिर हुर्रियत के नेता कश्मीर में अमन की राह का रोड़ा क्यों बन रहे हैं. इसका जवाब है अलगाववादियों की वो सियासत, जिसके दम पर वो कश्मीर में अपना वजूद तलाशते हैं.
- इन नेताओं की पूरी सियासत अलगाववाद पर टिकी है.
- बात करने से ये संदेश जाएगा कि अमन की कोशिशों में सरकार आगे है.
- ये अलगाववादी नेता पाकिस्तान को नाराज करने का खतरा भी नहीं उठाना चाहते.
- अलगाववादी पाकिस्तान के साथ ही आतंकवादियों को नाराज करने का खतरा भी नहीं उठा सकते.
- ऐसे में इन्हें लगता है कि अगर वो सरकार की कोशिशों के साथ गए तो उनका अस्तितव ही मिट जाएगा.
पाकिस्तान से खासा है याराना
हुर्रियत के नेताओं ने दिल्ली से श्रीनगर पहुंचे तमाम दलों के नुमाइंदों से मिलने से इनकार कर दिया है. ये वही हुर्रियत के नेता हैं जो दिल्ली में पाकिस्तान के किसी नुमाइंदे के आने या पाकिस्तानी उच्चायोग के हर कार्यक्रम में शरीक होने दौड़े चले आते हैं. पाकिस्तानी उच्चायोग हर साल पाकिस्तान दिवस मनाता है. इस मौके पर कश्मीर के अलगाववादी नेताओं को भी न्योता देता है. ये अलगाववादी शायद ही कभी पाकिस्तानी उच्चायोग के न्योते को नजरअंदाज करते हों.
अमित रायकवार