व्यंग्य: सूखे गोलगप्पे मांगने वालों पर लगेगी लगाम, मिसकॉल करना तक हुआ हराम

स्कूल के दिनों में जगदीशचंद्र माथुर का नाटक पढ़ा था रीढ़ की हड्डी. गोपाल प्रसाद अपने बेटे के लिए लड़की देखने आये हैं और लड़की के पिता से कहते हैं सरकार को खूबसूरती पर टैक्स लगाना चाहिए, और हर औरत पर छोड़ देना चाहिए कि वो अपनी खूबसूरती के स्टैण्डर्ड के हिसाब से टैक्स तय कर ले.

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आशीष मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 31 अक्टूबर 2014,
  • अपडेटेड 10:10 PM IST

स्कूल के दिनों में जगदीशचंद्र माथुर का नाटक पढ़ा था ‘रीढ़ की हड्डी’. गोपाल प्रसाद अपने बेटे के लिए लड़की देखने आये हैं और लड़की के पिता से कहते हैं 'सरकार को खूबसूरती पर टैक्स लगाना चाहिए, और हर औरत पर छोड़ देना चाहिए कि वो अपनी खूबसूरती के स्टैण्डर्ड के हिसाब से टैक्स तय कर ले.' आज अचानक इस नाटक की याद आ गई क्योंकि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की नई गाइडलाइन के मुताबिक पच्चीस हजार का औसत बैंक बैलेंस रखने वाले अब एक एटीएम से महीने भर में बस पांच बार ही मुफ्त पैसे निकाल सकेंगे, उसके बाद उन्हें एक तय राशि चुकानी पड़ेगी.

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अगर सीमाएं तय कर पैसे ही वसूलने हैं तो हमारे पास कई ऐसे सुझाव हैं जिन्हें अगर अपनाया जाए तो एसबीआई को नहीं पर हमें बड़ा सुकून और सरकार को बड़ा फायदा हो सकता है, सबके कारण भी गिना दिए जायेंगे. महीने के पांच ट्रांजेक्शन की तरह सबसे पहले तमाम गोलगप्पे खाने वाली लड़कियों के सूखी पापड़ी मांगने की सीमा तय कर देनी चाहिए. क्योंकि जितने रुपयों के मुफ्त गोलगप्पे, सूखी पापड़ी के नाम पर ये लडकियां खा जाती हैं उतने में पाकिस्तान जैसे किसी छोटे-मोटे देश का साल भर पेट पाला जा सकता है. साथ ही सीधा सा नियम भी होना चाहिए कि किसी लड़की ने अगर महीने में पांच बार से ज्यादा सूखी पापड़ी मांगी तो अगले तीन महीने तक उसके गोलगप्पे खाने पर रोक लगा देनी चाहिए.

उसके बाद मानवता पर सबसे बड़ा उपकार करते हुए एक खास चैनल पर बार-बार दिखाई जाने वाली 'सूर्यवंशम' फिल्म को दिखाने की एक सीमा तय कर देनी चाहिए, उसके बाद जब कभी वो फिल्म दिखाई जाए सरकार को उसके बदले एक मोटी रकम वसूलनी चाहिए और उसे उन तमाम लोगों के समुचित इलाज और पुनर्वास पर खर्च करना चाहिए जो ‘सूर्यवंशम’ देख-देखकर खुद को हीरा ठाकुर समझने लगे हैं.

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मेरे तमाम दोस्त जो कॉल करने की बजाय मिसकॉल देते हैं उनके मोबाइल पर मिसकॉल करने की एक सीमा तय कर देनी चाहिए, और अगर वो तय सीमा से ज्यादा बार मिसकॉल करें तो नियमानुसार उनसे लोकल इनकमिंग कॉल पर आईएसडी आउटगोइंग के पैसे वसूलने चाहिए.

ऐसे मौके पर मैं अपने उन रिश्तेदारों को कैसे भूल सकता हूं जो हर बार मिलने पर यही पूछते हैं कि 'बेटा इंजीनियरिंग तो कर ली, आजकल क्या कर रहे हो?' ऐसे लोगों को गिलोटिन पर चढ़ाना भी कम सजा होगी पर रिश्तेदार होने के चलते दया दिखाते हुए इनके सवालों के बीच एक साल का गैप तय करना न्यायसंगत होगा.

इनके अलावा वो पम्मी आंटी जो हमेशा यही बताती रहती हैं कि उनके बेटे की नौकरी 'कनेड्डा' में लग गई है वो अगर दिन में दो बार से ज्यादा हमें ये बात सुनाएं तो धार्मिक सीरियल्स की तरह आकाशवाणी के जरिये ये संदेश आना चाहिए कि 'तुम्हारा बेटा कनेड्डा में नहीं नोयडा में झक मार रहा है.'

व्हाट्सएप पर दो-दो किलोमीटर लंबे ज्ञान भरे मैसेज करने वालों से मैसेज की एक तय लंबाई से लंबा मैसेज होने पर मीटर के हिसाब से चार्ज करना चाहिए, सोशल नेट्वर्किंग साइट्स की बात करें तो प्रोफाइल पिक्चर पर टैग करने वालों और थोक के भाव कैंडी क्रश की रिक्वेस्ट भेजने वालों से तो उन्हें 'ब्लॉकाविभूषित' कर बचा जा सकता है पर बतख के मुंह जैसी सेल्फी डालने वालों के लिए फोटो अपलोड करने की सीमा तय कर देनी चाहिए, हफ्ते भर में अगर ये आठ सौ साठ से ज्यादा बतखमुखी सेल्फी डाल चुके हों तो इनकी फोटो के नीचे से लाइक का ऑप्शन ही हटा देना चाहिए, इसी तरह हैशटैग लगाने की भी सीमा तय कर देनी चाहिए कुछ लोग एक पोस्ट में इतने हैशटैग लगाते हैं कि पश्चाताप की आग में जकरबर्ग जलकर भर्र हो जाता है, इनसे हर हैशटैग की चवन्नी भी वसूलनी शुरू कर दी जाए तो हमारी विकासदर अमेरिका को एक महीने में ही पीछे छोड़ सकती है.

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