उत्तर प्रदेश के चुनावी महाभारत में 17 प्रतिशत मुसलमानों का वोट नतीजे पलटने की ताकत रखता है. इसलिए समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच में मुसलमानों के सबसे बड़े हमदर्द देखने की होड़ लग गई है. मुसलमानों का वोट पाने की सबसे पहली शर्त यह है उस पार्टी का बीजेपी से दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं हो. समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी दोनों आजकल एक दूसरे पर बीजेपी से मिले होने का आरोप लगा रहे हैं.
कुछ दिनों पहले मायावती ने अपनी रैली में कहा था कि मुसलमान समाजवादी पार्टी को वोट देकर अपना वोट बेकार न करें क्योंकि वहां परिवार के भीतर ही घमासान मचा हुआ है. उसके बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बहुजन समाज पार्टी को बीजेपी से मिला हुआ बताते हुए आरोप लगाया था कि मौका मिला तो एक बार फिर मायावती बीजेपी के साथ जाकर सरकार बनाने से नहीं चुकेंगी. अखिलेश यादव ने यह भी कहा था कि मायावती पहले भी तीन बार बीजेपी की मदद से सरकार बना चुकी हैं इसलिए मुस्लिम उन पर कतई भरोसा ना करें.
इस पलटवार से तिलमिला कर बहुजन समाज पार्टी की तरफ से नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने शुक्रवार को लखनऊ में प्रेस कांफ्रेंस करके कहा कि जिनके घर शीशे के होते हैं उन्हें दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकना चाहिए. बीजेपी के साथ सरकार बनाने के आरोपों की सफाई देते हुए नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने कहा कि बीएसपी ने सरकार बनाई जरूर थी लेकिन चलाई अपने शर्तों पर थी और RSS का एजेंडा बिल्कुल नहीं चलाने दिया था. बीएसपी ने सवाल उठाया कि समाजवादी पार्टी ने पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान मुसलमानों को आरक्षण देने की बात कही थी लेकिन वायदा पूरा नहीं किया.
नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने आरोप लगाया समाजवादी पार्टी के नेता बीजेपी से मिले हुए हैं और उसका सबूत यह है कि जब भी मुलायम सिंह के घर में कोई मांगलिक कार्यक्रम होते हैं तो नरेंद्र मोदी से लेकर तमाम भाजपाई नेता उनके घर पर दिखाई पड़ते हैं. नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने आरोप लगाया समाजवादी पार्टी का जन्म ही जनसंघ एवं भारतीय जनता पार्टी की मदद से हुआ है क्योंकि 1969 में जब मुलायम सिंह पहली बार जसवंतनगर से विधायक बने तो जनसंघ की मदद से ही बने थे. बीएसपी ने सवाल उठाया की 2012 के घोषणा पत्र में समाजवादी पार्टी ने वायदा किया था कि जेल में बंद बेकसूर मुसलमानों को रिहा किया जाएगा लेकिन यह वायदा भी झूठा निकला.
प्रियंका झा / बालकृष्ण